‘स्वयंसेवक गमले के नहीं, वन के फूल हैं’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत बिहार प्रवास पर रहे। इस दौरान उन्होंने कई कार्यक्रमों में भाग लिया और स्वयंसेवकों का मार्गदर्शन किया

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WEB DESK

गत दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत बिहार प्रवास पर रहे। इस दौरान उन्होंने कई कार्यक्रमों में भाग लिया और स्वयंसेवकों का मार्गदर्शन किया। 3 मार्च को पटना के राजेंद्र नगर स्थित शाखा मैदान में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि अनुकूल परिस्थितियों में विश्राम करने वाला हार जाता है, जबकि अपनी गति बढ़ाकर कार्य करने वाले को विजयश्री मिलती है।

खरगोश और कछुए की कहानी का सारांश यही है। उन्होंने कहा कि आज देश में अनुकूल वातावरण है, लेकिन हमारा लक्ष्य अभी दूर है। यह समय अपनी गति बढ़ाकर जीत प्राप्त करने का है। उन्होंने कहा कि संघ के स्वयंसेवक गमले के पुष्प नहीं, बल्कि वन के फूल हैं, जो अपने पोषण की व्यवस्था स्वयं करते हैं।

स्वयंसेवकों को यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी दशा बदली है, लेकिन दिशा नहीं। हमें विनम्रता और शील नहीं छोड़ना चाहिए। हम लोग बलशाली हो सकते हैं, परंतु उन्मुक्त नहीं। उन्होंने स्वयंसेवकों से आग्रह किया कि वे अपने लिए चार कार्य तय करें।

पहला कार्य है शाखा की नित्य साधना, दूसरा है शाखा से प्राप्त शिक्षा के आधार पर अपना आचरण रखना, तीसरा है जैसा समाज चाहिए उस अनुरूप अनुशासन के साथ प्रामाणिकता से आचरण और चौथा कार्य है भोग नहीं, बल्कि त्याग का सिद्धांत व्यवहार में उतारना।

उन्होंने कहा कि शताब्दी वर्ष के अवसर पर पांच करणीय कार्य निश्चित किए जाते हैं- पहला सामाजिक समरसता, दूसरा कुटुंब प्रबोधन, तीसरा स्वदेशी, चौथा पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता और पांचवां नागरिक कर्तव्य-बोध का जागरण। इस अवसर पर दक्षिण बिहार प्रांत के संघचालक श्री राजकुमार सिन्हा और महानगर संघचालक डॉ. राजीव कुमार सिंह भी उपस्थित थे।

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