तालिबानी लड़ाकों की हुकूमत को उनके ही गढ़ में चुनौती दी जा रही है। यह बात अटपटी भले लगे पर यह सोलह आने सच है। पाकिस्तान की जिहादी सरकार की मदद से अफगानिस्तान की कुर्सी पर जा बैठे लड़ाके तालिबान ने देश में लड़कियों की तालीम पर ताला लगा दिया था। कट्टर इस्लामी हुकूमत ने फरमान दिया था कि छठी क्लास से आगे लड़कियों को तालीम न दी जाए क्योंकि इस्लाम में यह प्रतिबंधित है। बेचारी पढ़ने की इच्छा रखने वाली लाखों लड़कियों के लिए तालीम के दरवाजे क्या बंद कर दिए गए, उनके भविष्य को लेकर अंधेरा छाता गया। ऐसे में कुछ पढ़ी—लिखी महिलाओं ने हिम्मत की और कुछ बच्चियों को लेकर भूमिगत ‘स्कूल’ चलाने का बीड़ा उठाया।
अफगानिस्तान के अंदर, जमीन के नीचे चलाए जा रहे इस स्कूल में फिलहाल 150 लड़कियां पढ़ रही हैं। दिलचस्प बात है कि इस स्कूल को असरदार स्थानीय लोगों का समर्थन प्राप्त है। उन हिम्मती महिलाओं का उद्देश्य है कि ज्यादा नहीं तो जितनी भी लड़कियों को वे पढ़ा पाएं फिलहाल उतना ही काफी है। हैरानी की बात है कि तालिबानी लड़ाका प्रशासन को बहुत लंबे वक्त तक इस स्कूल की भनक तक नहीं लग पाई!
तालिबान के खौफ को चुनौती देने वाली यह महिला है 33 वर्षीया रोया अजीमी। यही हैं जो साल 2022 से लगातार काबुल में अपने भूमिगत स्कूल में बच्चियों को तालीम देती आ रही हैं। रोया इस काम में अकेली नहीं हैं, रोया के साथ 6 और हिम्मती महिलाएं हैं। ये सब मिलकर ही 150 बच्चियों को पढ़ा रही हैं जिनकी उम्र 9 से लेकर 18 साल के बीच है।
पता चला कि जाने कैसे इस स्कूल की भनक एक तालिबानी मुल्ला को लग गई। उसने फिर आगे खबर कर दी। फिर हुआं यूं कि तालिबान की मजहबी मामले देखने वाली कमेटी हरकत में आई और तहकीकात करने के लिए कमेटी के लोग स्कूल को ‘देखने’ के लिए भेजे। वे जब स्कूल में दाखिल होने लगे, तो स्कूल के आसपास बसे जोशीले पड़ोसियों ने स्कूल को घेरकर कमेटी का अंदर जाना मुश्किल बना दिया। पड़ोसी लोगों ने कहा कि यहां कोई स्कूल—विस्कूल नहीं चलता, यहां तो लड़कियों के लिए ‘सिलाई—कढ़ाई का स्कूल’ चलता है। वे अड़ गए और कमेटी वालों को अंदर जाने ही नहीं दिया।
जोया अजीमी को जब पता चला तो उन्होंने कुछ दिन के लिए वहां स्कूल चलाना बंद कर दिया। लेकिन थोड़े दिनों बाद किसी और जगह स्कूल चलाने लगीं। रोया को पता है कि पकड़ी गईं तो मुल्ला—मौलवियों के हाथों उनकी खैर न रहेगी, लेकिन इस हिम्मती महिला ने उसकी परवाह नहीं की। वे कहती हैं, जो होगा देखेंगे लेकिन लड़कियों को अनपढ़ नहीं रखेंगे। उनका हौसला ऐसा है कि अगर उन्हें दूसरी जगह पर भी स्कूल बंद करना पड़ा तो वे उसे तीसरी जगह चालू रखने को तैयार हैं।
अफगानिस्तान में अगस्त 2021 से पहले लड़कियां लड़कों के साथ ही कालेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ा करती थीं। उन्हें उच्च शिक्षा मिल रही थी और वे दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलने के सपने बुना करती थीं। लेकिन इस्लामवादी तालिबान ने उनके सब सपने तोड़ डाले इस्लाम का हवाला देकर। इस्लामिक देशों का संगठन ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन भी लड़ाकों की सरकार से बच्चियों की तालीम शुरू करने को कह चुका है लेकिन तालिबान तो इस्लाम का पहरेदार है, वह ऐसी ‘पश्चिमी सोच’ को कैसे मानता।
गोली से उड़ा दिए जाने का खतरा मोल लेते हुए भी रोया कहती हैं कि उनके किसी बात को लेकर भय नहीं। उनका मानना है कि लड़कियों की तालीम न मजहब के विरुद्ध है, न आस्था या कल्चर के। अरे, तालीम लेना तो फख्र की बात है।
आखिर रोया में यह हिम्मत और तालीम के लिए समर्पण आया कहां से? इस बात पर रोया ने बताया कि अपनी तालीम के लिए भी उनको काफी मुश्किलों को झेलना पड़ा था। रोया के अपने नातेदार कट्टर मजहबी सोच वाले थे। वे नहीं चा चाहते थे कि रोया तालीम पाए। लेकिन रोया की अम्मी ने ठान ली कि वह तो पढ़ेगी, उन्होने नातेदारों के विरोध की भी परवाह नहीं है। लेकिन नातेदारों ने राजी होते हुए भी शर्त लगा दी कि रोया बुरके में ही रहकर यह करेगी। रोया पढ़ने लगी और फारसी भाषा के साहित्य की तालीम ली।
अफगानिस्तान में अगस्त 2021 से पहले लड़कियां लड़कों के साथ ही कालेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ा करती थीं। उन्हें उच्च शिक्षा मिल रही थी और वे दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलने के सपने बुना करती थीं। लेकिन इस्लामवादी तालिबान ने उनके सब सपने तोड़ डाले इस्लाम का हवाला देकर। इस्लामिक देशों का संगठन ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन भी लड़ाकों की सरकार से बच्चियों की तालीम शुरू करने को कह चुका है लेकिन तालिबान तो इस्लाम का पहरेदार है, वह ऐसी ‘पश्चिमी सोच’ को कैसे मानता।
तालिबान ने महिलाओं पर एक के बाद एक पाबंदियां लगाई हुई हैं। उनकी जिंदगी पशुओं से भी बदतर बना दी गई है। लेकिन रोया जैसी महिलाएं हैं जो दबी—कुचली प्रताड़ित महिलाओं में हौसला जगाने की कोशिश कर रही हैं।
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