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जनमानस में बढ़ा मानस-प्रेम

25 जनवरी, 2024 की सुबह तक इसे 12 लाख से अधिक लोगों ने सर्च किया, 65,000 से अधिक ने पढ़ा और 53,000 से अधिक लोगों ने डाउनलोड किया। गीता प्रेस 15 भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित करती है।

by WEB DESK
Mar 2, 2024, 08:25 pm IST
in भारत, उत्तर प्रदेश, धर्म-संस्कृति
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अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर बनने के बाद से गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित श्रीरामचरितमानस, अयोध्या दर्शन, अयोध्या महात्म्य और श्रीमद्भगवद्गीता की मांग अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई है

डॉ. संतोष कुमार तिवारी
लेखक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं

अयोध्या में श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा की तारीख तय होने के बाद से गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित श्रीरामचरितमानस की मांग तेजी से बढ़ी है। 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा के बाद तो इसकी मांग इतनी बढ़ गई कि गीता प्रेस को कहना पड़ा कि इतनी अधिक प्रतियां तुरंत छापना और उनकी बाइंडिंग करा कर भेजना उसके लिए संभव नहीं है। गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस की बढ़ती मांग को देखते हुए गीता प्रेस ने 16 जनवरी, 2024 को अपनी वेबसाइट पर सीमित समय के लिए श्रीरामचरितमानस (दस भाषाओं में), अयोध्या दर्शन तथा अयोध्या महात्म्य पुस्तकें मुफ्त डाउनलोड करने की इजाजत25 जनवरी, 2024 की सुबह तक इसे 12 लाख से अधिक लोगों ने सर्च किया, 65,000 से अधिक ने पढ़ा और 53,000 से अधिक लोगों ने डाउनलोड किया। गीता प्रेस 15 भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित करती है। दे दी।

गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी ने बताया कि पिछले वर्ष तक प्रतिमाह श्रीरामचरितमानस की औसतन 75,000 प्रतियां प्रकाशित की जा रही थीं, जिसे इस वर्ष बढ़ा कर एक लाख कर दिया गया है। फिर भी इसकी जितनी मांग है, गीता प्रेस उसे पूरा करने में असमर्थ है। अभी हाल में जयपुर से अचानक श्रीरामचरितमानस की 50,000 प्रतियों की मांग आई। इसी तरह, भागलपुर से 10,000 प्रतियां मांगी गई। लालमणि तिवारी ने यह भी बताया कि हमारे पास पुस्तकों के रख-रखाव आदि के लिए स्थान भी पर्याप्त नहीं है।

यह बढ़ती मांग श्रीरामचरितमानस तक ही सीमित नहीं है। श्रीहनुमानचालीसा और सुन्दर काण्ड की मांग भी बहुत बढ़ गई है। कुछ दिन पहले गुजरात से श्रीमद्भगवद्गीता की 50 लाख प्रतियों की मांग आई। इतनी प्रतियां तुरंत छापना और बाइंडिंग करा कर भेजना किसी भी प्रेस के लिए एवरेस्ट पर चढ़ने जैसा मुश्किल काम है। धार्मिक पुस्तकों की बढ़ती मांग का एक कारण यह है कि धर्म की ओर लोगों का रुझान तेजी से बढ़ा है।

‘अयोध्या दर्शन’ पुस्तक में छपे कुछ ऐतिहासिक चित्र

दूसरा कारण यह है कि लोगों को समझ में आने लगा है कि इन पुस्तकों को पढ़ कर और उनके अनुसार आचरण करके अपने जीवन और परिवार में सुधार लाया जा सकता है तथा अधिक सकारात्मक ऊर्जा के साथ जीवन जिया जा सकता है।

तीसरा कारण, इन पुस्तकों के प्रति नवयुवकों की भी रुचि काफी बढ़ी है।

चौथा कारण, अब लोग उपहार स्वरूप श्रीरामचरितमानस भेंट करने लगे हैं। और सबसे बड़ा कारण यह है कि गीता प्रेस को धार्मिक-आध्यात्मिक पुस्तकों के मूल पाठ की शुद्धता के लिए जाना जाता है।

सनातन धर्म की इन पुस्तकों को कोई भी छाप सकता है इसलिए इन्हें अन्य प्रकाशक छापते भी हैं। लेकिन गीता प्रेस की पुस्तकों की छपाई आकर्षक तो होती ही है, बाइंडिंग बहुत अच्छी होती है और मूल्य भी कम होता है। इसके बावजूद, गीता प्रेस का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है। श्रीरामचरितमानस के अतिरिक्त जिन दो अन्य पुस्तकों के मुफ्त डाउनलोड की अनुमति गीता प्रेस ने दी है, वे हैं- अयोध्या दर्शन तथा अयोध्या महात्म्य।

अयोध्या नाम क्यों पड़ा?

अयोध्या दर्शन में ‘कल्याण’ के आदि संपादक श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार (1892-1971) का एक लेख है- ‘दशरथ के समय की अयोध्या’। इस लेख में बताया गया है कि दशरथ जी के समय में इस नगर का नाम इसलिए ‘अयोध्या’ पड़ा, क्योंकि वहां कोई भी शत्रु युद्ध के लिए नहीं आ सकता था। ‘अयोध्या दर्शन’ पुस्तक के अब तक इस पुस्तक के कई संस्करण निकल चुके हैं और लगभग एक लाख प्रतियां छप चुकी हैं। इस पुस्तक में 100 से अधिक पृष्ठ हैं और मूल्य 25 रुपये है। अयोध्या मंदिर ट्रस्ट ने प्राण प्रतिष्ठा के दिन आए सभी अतिथियों को प्रसाद के साथ अयोध्या दर्शन पुस्तक देने के लिए इसकी दस हजार प्रतियां मंगाई थीं।

हनुमानगढ़ी की महिमा

इस पुस्तक में अयोध्या स्थित हनुमानगढ़ी के बारे में श्री भागीरथराम मिश्र ‘ब्रह्मचारी’ और श्री राम दुबे का एक लेख है। इस लेख में बताया गया है कि एक बार लखनऊ और फैजाबाद के प्रशासक नवाब मंसूर अली का एक पुत्र किसी भयंकर रोग से पीड़ित हो गया। बड़े-बड़े वैद्यों और हकीमों के इलाज से भी जब वह ठीक नहीं हुआ, तब वह हनुमानगढ़ी में श्री हनुमानजी के शरण में आया और उसे भीषण रोग से मुक्ति मिल गई। नवाब ने श्रद्धा से 52 बीघा जमीन मंदिर को दान कर दी और साधुओं की सुविधा के लिए इमली का एक विशाल बाग लगवा दिया। आज भी हिंदुओं के साथ मुसलमान भी इस मंदिर में आकर श्रद्धापूर्वक पूजा-भेंट अर्पित करते हैं। हनुमानगढ़ी की स्थापना स्वामी अभयारामदास जी ने की थी, जो एक सिद्ध महात्मा थे।

अयोध्या महात्म्य

इस पुस्तक में अयोध्या यात्रा-दर्शन आदि का महात्म्य, अयोध्या तीर्थ सर्वोत्कृष्ट क्यों है, सरयू नदी की उत्पत्ति का इतिहास और उसके महात्म्य आदि के बारे में बताया गया है। इसमें यह भी बताया गया है कि अयोध्या देवी के अनुग्रह से किस प्रकार पांच महापपियों का उद्धार हुआ। 500 से अधिक पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य मात्र 100 रुपये है। अयोध्या दर्शन तथा अयोध्या महात्म्य, दोनों ही पुस्तकों में भगवान श्रीराम और अयोध्या से जुड़े अनेक स्थानों के मनमोहक रंगीन चित्र भी हैं।

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