बेट द्वारका एक द्वीप है, जो ओखा तट (गुजरात) से लगभग 2.5 किलोमीटर अंदर समुद्र में है। यहीं भगवान श्रीकृष्ण का महल हुआ करता था। कालांतर में इस द्वीप का अधिकांश भाग समुद्र में समा गया। अभी जो भाग बचा है, उसका क्षेत्रफल लगभग 13 किलोमीटर है। इसे भगवान श्रीकृष्ण की नगरी कहा जाता है और यहीं है द्वारकाधीश मंदिर।
किसी भी समस्या का समाधान चुटकी बजाते ही हो जाता है अगर नीति और दिशा सही हो। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है बेट द्वारका। बेट द्वारका एक द्वीप है, जो ओखा तट (गुजरात) से लगभग 2.5 किलोमीटर अंदर समुद्र में है। यहीं भगवान श्रीकृष्ण का महल हुआ करता था। कालांतर में इस द्वीप का अधिकांश भाग समुद्र में समा गया। अभी जो भाग बचा है, उसका क्षेत्रफल लगभग 13 किलोमीटर है। इसे भगवान श्रीकृष्ण की नगरी कहा जाता है और यहीं है द्वारकाधीश मंदिर।
यह हिंदुओं के प्रमुख तीर्थस्थलोें में से एक है। इसके बाद भी वहां लगभग 90 प्रतिशत जनसंख्या मुसलमानों की हो गई है। इस तीर्थस्थल की सभी गतिविधियों पर एक तरह से मुसलमानों ने कब्जा ही कर लिया था। अभी ओखा से बेट द्वारका तक जितनी नावें चलती हैं, वे सभी मुसलमानों की हैं। यही लोग नाव चलाते हैं। ऐसे ही अन्य कार्यों पर भी इनकी मनमानी चलती है। सबसे बड़ी बात तो यह कि यहां से नशीले पदार्थों और हथियारों की तस्करी भी होती है।
इस कारण आंतरिक सुरक्षा को भी खतरा है। इसे देखते हुए सरकार ने ओखा तट से बेट द्वारका तक एक सिग्नेचर पुल बनाने का निर्णय लिया। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी भूमिका रही। पुल के डिजाइनर कंसल्टेंट आनंद शाह के अनुसार, ‘‘इस पुल की जरूरत बरसों से महसूस की जा रही थी, लेकिन पहले बन नहीं पाया। बाद में एक सामान्य पुल बनाने का निर्णय हुआ, लेकिन इसे लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने विशेष रुचि दिखाई। इसके बाद कई डिजाइन बनाए गए। प्रधानमंत्री ने कई बार डिजाइन में बदलाव कराया और उसी डिजाइन के अनुसार यह पुल बनाया गया।’’
डिजाइन को स्वीकृति मिलने के बाद 1 मार्च, 2018 को पुल का निर्माण शुरू हुआ। अब पुल तैयार हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी 25 फरवरी को इसका उद्घाटन करेंगे। 2.3 किलोमीटर लंबा यह पुल ओखा तट और बेट द्वारका को आपस में जोड़ता है। विश्व हिंदू परिषद्, सौराष्ट्र प्रांत (गुजरात) के धर्माचार्य संपर्क प्रमुख प्रवीण सिंह कंचवा कहते हैं, ‘‘इस पुल के माध्यम से कोई भी श्रद्धालु पांच से सात मिनट में ओखा से बेट द्वारका पहुंच सकता है। नाव से यही दूरी कम से कम 25 मिनट में पूरी होती है। ऊपर से नाव में खतरे भी बहुत अधिक हैं। ज्यादा पैसा कमाने के लिए नाविक नाव पर क्षमता से अधिक लोगों को बैठाते हैं। इस कारण कभी भी घटना-दुर्घटना होेने की संभावना रहती है। अब ऐसी कोई बात नहीं रहेगी।’’
इस पुल के बनने से सबसे अधिक प्रसन्न हैं श्री द्वारकाधीश मंदिर के न्यासी हेमंत सिंह मनुभाई वाढेर। वे कहते हैं, ‘‘30 वर्ष से इस पुल को बनाने की बात चल रही थी, लेकिन पहले की केंद्र सरकारों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस पुल को बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाए। इसलिए उनका अभिंनदन।’’ उन्होंने यह भी कहा,‘‘अब बेट द्वारका की स्थितियां बदल जाएंगी। सुविधाओं के अभाव के कारण यहां से हिंदू पलायन करते थे। मुसलमान मछुआरों ने इसका अनुचित लाभ उठाया। पुल के बनने से बेट द्वारका तक पहुंच आसान हो गई है। इससे श्रद्धालु भी बढ़ेंगे और उनके लिए सुविधाएं भी बढ़ेंगी। बहुत लोग यहां कारोबार करने आएंगे। क्षेत्र का विकास होगा।’’
89 फीट चौड़ा यह पुल 34 स्तंभों पर टिका है। ये सभी स्तंभ पानी में खड़े हैं। खंभे बांसुरी की शक्ल में बने हैं। पुल को बनाने में कंक्रीट और स्टील का उपयोग किया गया है। 962 करोड़ रु. की लागते से बने इस पुल पर गाड़ी, मोटर साइकिल से तो जा ही सकते हैं, पैदल चलने वाले यात्रियों के लिए अलग से रास्ता बनाया गया है। इस पुल से जाने वाले लोग स्वयं को भगवान श्रीकृष्ण से जोड़ पाएं, इसके लिए कई उपाय किए गए हैं। पुल की दीवारों पर कई स्थानों पर मोर पंख अंकित हैं। इसके साथ ही हर तीन-चार मीटर पर पत्थरों पर गीता के श्लोक भी लिखे गए हैं। बगल में इनके भावार्थ गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी में हैं। ‘विष्णुसहस्रनाम’ भी स्थान-स्थान पर अंकित है, ताकि भक्त आते-जाते भगवान विष्णु के 1,000 नामों का जाप कर सकते हैं। पुल के कुछ हिस्सों पर भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को भी चित्रित किया गया है। पुल पर प्रकाश की आधुनिकतम व्यवस्था की गई है। बिजली के लिए सौर ऊर्जा के संयंत्र लगाए गए हैं, जो 1,000 मेगावाट बिजली पैदा कर सकते हैं।
इस संयंत्र से जो अतिरिक्त बिजली पैदा होगी, वह आम उपभोक्ताओें के काम आएगी। यह पुल जहां श्रद्धालुओं को उनके भगवान तक पहुंचाने का साधन बनेगा, वहीं इसके जरिए पर्यावरण रक्षा का संदेश भी दिया गया है। पुल को ऐसे स्थान पर बनाया गया है, जहां समुद्री जीव न के बराबर रहते हैं। इसके लिए लंबे समय तक विशेषज्ञों ने उस स्थान का अध्ययन किया। उनकी स्वीकृति मिलने के बाद ही पुल बनाने का कार्य शुरू हुआ।
द्वारका के सामाजिक कार्यकर्ता भरतभाई त्रिवेदी कहते हैं, ‘‘पुल न रहने से बेट द्वारका में रहने वाले लोगों को बड़ी परेशानी होती थी। रात में नावें बंद हो जाती हैं। ऐसे में कोई बीमार हो जाता, तो उसे द्वारका के किसी अस्पताल तक लाने में कम से कम 3,000 रु. खर्च करने पड़ते थे। एक गरीब आदमी के लिए इतना पैसा जुटा पाना आसान नहीं है। इस कारण बहुत सारे लोग चिकित्सा के अभाव में असमय ही इस दुनिया से चल बसते थे। अब बेट द्वारका के लोगों का जीवन आसान हो जाएगा। ऐसे ही आम श्रद्धालुओं को भी बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता था।’’
बेट द्वारका में अतिक्रमण विरोधी अभियान
ओखा बंदरगाह से लगभग सात समुद्री मील दूर है बेट द्वारका। यह स्थान द्वारका जिले में पड़ता है। यहां से पाकिस्तान अधिक दूर नहीं है। कराची बंदरगाह बिल्कुल नजदीक है। इस कारण यह द्वीप राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ही संवदेनशील है। यहां रहने वाले अधिकतर लोग मछुआरे हैं। मछुआरों में भी करीब 95 प्रतिशत मुसलमान हैं। कुछ दशक पहले ये मछुआरे बेट द्वारका में बसने लगे। धीरे-धीरे इन लोगों ने सरकारी जमीन पर कब्जा करके घर, दुकान, मस्जिद, मजार और मदरसे बना लिए। देखते ही देखते पूरा द्वीप मुस्लिम-बहुल हो गया। इसके बाद तो वहां हर वह कार्य होने लगा, जिसे गैर-कानूनी कहते हैं।
यही कारण है कि अक्तूबर, 2022 में गुजरात सरकार को वहां अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाना पड़ा। द्वारका के पुलिस अधीक्षक नीतेश पांडेय के अनुसार, ‘‘अक्तूबर, 2022 में बेट द्वारका में अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया गया। इसमें 262 अवैध निर्माणों को तोड़ा गया। इसके बाद वहां पुलिस की तैनाती की गई है। अब निरंतर वहां की देखरेख की जाती है।’’ बेट द्वारका के कुछ लोगों ने बताया कि अतिक्रमण विरोधी अभियान के बाद बेट द्वारका में अवैध रूप से रहने वाले बहुत सारे मुसलमान निकल चुके हैं। अब वहां की स्थिति बदलने लगी है। आशा है कि शीघ्र ही बेट द्वारका अपने पुराने वैभव को प्राप्त करेगी।
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