पाकिस्तान में एक महिला ने एक ड्रेस पहनी, जिसमें अरबी में “हलवा” लिखा हुआ था। मगर कट्टरपंथियों की भीड़ ने उसे घेर लिया और उसके खिलाफ सर तन से जुदा का नारा लगाने लगे। यह सब इतना अचानक हुआ कि महिला को ही सोचने का समय नहीं मिला और देखते ही देखते वह उस भीड़ से घिर गयी, जो केवल अरबी में कुछ लिखा होने के कारण यह समझ रही थी कि महिला ने कुरआन का अपमान कर दिया है।
भीड़ इस सीमा तक उग्र थी कि जिस दुकान में महिला छिपी हुई थी, उस दुकान के गैर-मुस्लिम मालिक के अनुसार उनकी दुकान में चाकू लेकर लोग घुस आए थे। एक वीडियो में उस गैर-मुस्लिम दुकानदार का डर भी दिख रहा है, जिसमें वह कह रहे हैं कि वह तो खुद ही अल्पसंख्यक हैं, वह क्या बोलें, मगर बाद में उनका कहना था कि जब तक पुलिस नहीं आई थी, तब तक उनकी दुकान में ही एक मौलवी छुरी लेकर आ गया था।
साधारण व्यक्ति जो अरबी नहीं समझता है, उसका उग्र होना तो तब भी कट्टरपंथी समाज में समझ में आता है, मगर मौलवी का छुरी लेकर पहुंचना? यह चौंकाता है। यह इसलिए चौंकाता है, क्योंकि ये वह लोग होते हैं, जिनके जिम्मे मजहबी तालीम आदि देना होता है, जिनके ऊपर लोगों को यकीन होता है कि इन्हें कम से कम यह पता होगा कि लिखा क्या है?
मगर अरबी में “हलवा” लिखा गया है, क्या यह समझ नहीं आया और भीड़ एकत्र हो गयी? जो भीड़ थी, क्या उसमें से किसी ने भी यह पढ़ने का प्रयास नहीं किया या फिर उन्हें अरबी समझाई ही नहीं जाती है? यह सारी चिंताएं पाकिस्तान के लोग कर रहे हैं। इस मामले से यह भी स्पष्ट होता है कि वहां पर गैर-मुस्लिमों की क्या स्थिति होगी क्योंकि कोई भी अपने अनुमान से ही यह अफवाह उड़ा सकता है और उड़ाता भी है कि “बेअदबी हो गयी और अब सिर तन से जुदा किया जाना चाहिए!”
बेअदबी का आरोप झेल रहे पाकिस्तानी ईसाई फ़राज़ परवेज़ ने इस मामले पर एक्स पर पोस्ट करते हुए एक आदमी का वीडियो पोस्ट किया, जिसमें वह यह कहता हुआ नजर आ रहा है कि वह पढ़ा लिखा नहीं है, मगर उसे यकीन था कि जो लिखा गया वह कुरआन था।
यह घटना इसलिए और भी डराने वाली है क्योंकि इसमें उस भाषा की अज्ञानता को लेकर महिला पर हमला कर दिया था, जिसमें कुरआन लिखा गया है और उसे कोई यह समझता ही नहीं है। किसी को यह पता ही नहीं है कि आखिर अरबी में लिखा क्या है?
इसे लेकर पाकिस्तान में भी कई लोग सोशल मीडिया पर विरोध में उतर आए हैं और कह रहे हैं कि यह कैसी जहालत हो रही है। पाकिस्तानी यूट्यूबर कमर चीमा ने अपने एक शो में बैरिस्टर हामिद बशानी से इस मामले पर बात की। बैरिस्टर हामिद का यह कहना था कि यह जो भी हो रहा है, वह कट्टरपंथ और जाहिलपने का मिश्रण है। इससे यह साबित होता है कि हमारे यहाँ कट्टरपंथ बढ़ रहा है और अब कोई रोकता नहीं है भीड़ को। कोई यह नहीं कहने आता कि यदि किसी ने यह पहना है तो दूसरे लोग क्यों सवाल उठा रहे हैं।
बैरिस्टर बशानी कुछ भी कहें, मगर पाकिस्तान की इस जहालत के पीछे पाकिस्तान के बनने के असली कारण के बारे में बात करने से शायद बशानी भी हिचकें। दरअसल जब कोई मुल्क अपनी मजहबी पहचान को लेकर अपना रूप पाता है तो वह अपनी मजहबी पहचान को और भी ज्यादा कट्टर करता जाता है, जिससे वही उस पहचान का असली दावेदार बन सके और पाकिस्तान में भी यही हो रहा है,
उसका निर्माण ही भारत की हिन्दू पहचान से पीछा छुड़ाने और मजहबी पहचान को पुख्ता करने के आधार पर हुआ था। इसलिए वह अपनी मजहबी पहचान को और पुख्ता करने के लिए लगातार नए मापदंड स्थापित करेगा, फिर चाहे अकादमिक हो या फिर उन्मादी भीड़ का इस तरह केवल अरबी भाषा को लेकर घेर लेना, और वह भी वह भाषा जो उनके मूल की नहीं है।
क्योंकि पाकिस्तान के फैशन मीडिया के सोशल मीडिया हैंडल द्वारा कुवैत के उस डिज़ाईनर का वक्तव्य प्रकाशित हुआ है, जिसमें उसने यह स्पष्ट किया है कि हमारा कोई भी लेनादेना पाकिस्तान में हुई घटना से नहीं है। हम केवल कुवैत में काम करते हैं, हम पूरे विश्व में काम नहीं करते। कृपया हमें सन्देश भेजना बंद करें।
हम अरबी शब्दों और अक्षरों को विभिन्न फोंट्स में प्रयोग करते हैं क्योंकि यह हमारी भाषा है!”
पाकिस्तान के साथ दरअसल समस्या यही है कि अपनी मूल जड़ों की भाषा से उन्हें घृणा है, क्योंकि उनकी नई मजहबी पहचान उस भाषा और संस्कृति को नकार कर ही बनी है और जिस भाषा और तहजीब को वह अपनी मानते हैं, उसके बारे में उन्हें जानकारी नहीं है। कुवैत के डिज़ाईनर ने यह कहा है कि अरबी उनकी भाषा है, और वे अपनी भाषा को कई तरीके से लिखते हैं।
मगर मजहब के नाम पर अपनी ही जमीन का विभाजन कर पाकिस्तान बनाने वाले लोग कथित अपनी भाषा में लिखी इबारत ही नहीं पहचानते हैं! यह पहचान पर दावे की लड़ाई है।
परन्तु सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह कि पीड़ित महिला को उस भीड़ से माफी मांगनी पड़ी, जिसने कुछ न समझते हुए उस पर हमला किया था और वह भीड़ कब फिर अनियंत्रित हो जाए पता नहीं!
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