देहरादून। कुमायूं का प्रवेश द्वार और राज्य का दूसरा बड़ा महानगर हल्द्वानी भी अब कट्टरपंथियों की नजरों में है। बनभूलपुरा हिंसा के बाद से ये तस्वीर भी अब साफ हो गई है कि कुछ संस्थाएं हल्द्वानी शहर की शांत फिजा में जहर घोलने का काम कर रही हैं।
हल्द्वानी बनभूलपुरा हिंसा के पीछे राजनीतिक, व्यापारिक कारण तो हैं ही साथ ही साथ यहां कट्टरपंथी जिहादियों के मंसूबे भी सामने आने लगे हैं। हिंसा के दौरान जिस तरह से पाकिस्तान से संचालित ट्विटर गैंग ने खेल खेला और उसके समर्थन में देश भर के कट्टरपंथी मुस्लिमों ने जहर उगला उससे ये बात साबित हो गई कि हिंसा भड़काने की ये सोची-समझी साजिश थी। उत्तराखंड पुलिस ने एक भू माफिया के खिलाफ कार्रवाई की थी जिसे हिंदू मुस्लिम दंगे का रूप देने की असफल कोशिश की गई। हिंदू पत्रकारों, महिला पुलिस कर्मियों को चुन-चुनकर निशाना बनाया गया। बनभूलपुरा थाने को आग लगाकर फूंक दिया। नैनीताल पुलिस ने हिंसा के मुख्य आरोपी अब्दुल मलिक सहित 36 आरोपियों पर uapa एक्ट के तहत कार्रवाई की है और 16 अन्य सगीन धाराएं भी लगाई गई हैं।
हल्द्वानी की हो रही है घेराबंदी, सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे
हल्द्वानी कारोबारी शहर है, यहां सरकारी जमीनों को मुस्लिम समुदाय बीते कुछ समय से अवैध कब्जा कर रहा है। गौलापार बागजाला की 104 हेक्टेयर वन भूमि की पट्टा लीज खत्म हो गई, वहां पचास रुपये में स्टांप पेपर पर जमीन की बिक्री हो रही है। ऐसी खबर है कि वनविभाग इसे अब खाली करवाने जा रहा है। गौला नदी किनारे नदी श्रेणी की जमीन पर मुस्लिम आबादी ने बसावट कर ली है। रेलवे की जमीन पर कथित अवैध कब्जे का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। सरकार की नजूल की जमीन बिना रजिस्ट्री के बेची जा रही थी, तभी बनभूलपुरा में हिंसा हुई। मंडी के सामने बनभूलपुरा से लगती हुई जोशी विहार कॉलोनी में बीस साल पहले हिंदू बहुसंख्यक थे, अब यहां मुस्लिम बहुसंख्यक हो गए हैं और इसका नाम भी राजा गेट कॉलोनी हो गया है।
बनभूलपुरा में रहने वाले पुराने मुस्लिम लोग भी इस बात से हैरान हैं कि आखिर ये कौन लोग हैं जो यहां आकर बस रहे है ? बताया जाता है कि यूपी-बिहार से बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी यहां आकर बस रही है और अब्दुल मलिक जैसे भू माफिया उन्हें सरकारी जमीनों पर बसाते रहे हैं। ऐसी भी जानकारी है कि रेलवे बस्ती में रोहिंग्या मुस्लमान और बंग्लादेशी मुस्लमान भी बसे हुए हैं, ये भाषा और पहनावे से पकड़ में आते हैं। इन अवैध कब्जेदारों के राशन कार्ड, आधार कार्ड, आयुष्मान कार्ड जैसे दस्तावेज बनाने का काम स्थानीय पार्षद इसलिए करते हैं क्योंकि उनका वोट बैंक मजबूत होता है। यहां मुख्य रूप से कांग्रेस और सपा की राजनीति चलती है, हल्द्वानी हिंसा मामले में इन दिनों पार्टियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में है।
हल्द्वानी में अवैध मजारों के जरिए जमीन कब्जाने की रणनीति
देवभूमि उत्तराखंड में एक योजनाबद्ध तरीके से अवैध मजारें बनाकर सरकारी जमीनों पर कब्जा कर वहां से मजहबी गतिविधियों का संचालन किया जा रहा है। उत्तराखंड सरकार ने इन्हें ध्वस्त कर इन पर अंकुश तो लगाया है, किंतु अभी भी बहुत से अवैध प्रतीक हैं जिन्हे हटाया जाना है, खास बात ये है कि ये अवैध मजारें संवेदनशील स्थानों पर बनी हुई हैं। हल्द्वानी में कैंट एरिया पर नजर रखने के लिए आवास विकास के पीछे विनायक संपत्ति के पास मजार बना दी गई। काठगोदाम रेलवे स्टेशन के पीछे वन भूमि पर कब्जा कर मजार और आलीशान इमारत बना दी गई, यहां वन विभाग ने नोटिस जारी किया है। हल्द्वानी के राजपुरा में एफसीआई के गोदाम में मजार बना दी गई, हल्द्वानी रेलवे स्टेशन से थोड़ा आगे बनभूलपुरा क्रॉसिंग के पास मजार बना दी गई।हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज के भीतर मजार, बरेली रोड शमा रेस्त्रां के पीछे मजार ,रामपुर रोड में पेट्रोल पंप के पास मजार, आखिर ये सवाल भी उठना लाजमी है कि हल्द्वानी में आखिर कितने कथित फकीर दफनाए गए? खास बात ये है कि देवबंदी मुस्लिम मजारों पर सजदा नहीं करते तो इन्हें किस उद्देश्य के लिए बनाया गया? हल्द्वानी को एक योजनाबद्ध तरीके से कट्टरपंथी जिहादी घेर रहे हैं, खुफिया रिपोर्ट्स में ये भी बताया गया है कि जमीयत का एक मरकज हल्द्वानी में अपना केंद्र बनाकर यहां कट्टरपंथ के बीज बो रहा है। हल्द्वानी बनभूलपुरा हिंसा मामले में भी इस बात के संकेत मिले हैं जिस पर पुलिस और अन्य खुफिया एजेंसियों ने जांच पड़ताल शुरू कर दी है।
क्या कहते हैं सीएम धामी
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। उत्तराखंड का सनातन स्वरूप है, इसे हम बिगड़ने नहीं दे सकते। अवैध कब्जे लोग नहीं छोड़ेंगे तो सख्त कार्रवाई के लिए तैयार रहें।
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