केरल में पिछले दिनों दो विरोधाभासी वक्तव्य आए, जिनमें एक वक्तव्य केरल के मुख्यमंत्री का है तो वहीं दूसरा वक्तव्य केरल के मुस्लिम नेता पी के फ़िरोज़ का है। केरल के मुख्यमंत्री विजयन ने अपने प्रदेश या कहें अपने दल की सरकार की तारीफ करते हुए कहा कि धार्मिक सहिष्णुता, सह-अस्तित्व एवं भाईचारे का अंतिम किला केरल है, इसलिए सांस्कृतिक कर्मियों की यह जिम्मेदारी है कि वे देश में फासीवाद और साम्प्रदायिकता से मुकाबला करें।
मुख्यमंत्री विजयन ने यह बात प्रदेश सरकार के जनसंपर्क कार्यक्रम के दौरान सांस्कृतिक क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों से बात करते हुए कही। उन्होंने कहा कि केरल के भविष्य के लिए यह आवश्यक है उस विध्वंसात्मक साम्प्रदायिकता का मुकाबला किया जाए, जो समकालीन भारत में जड़ें जमा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि यह राजनीतिक और सांस्कृतिक भाईचारा ही है, जिसके कारण केरल अपने वर्तमान स्वरूप में है।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि कलाकारों को बने रहना है और यदि लेखन एवं लेखक बने रहना चाहते हैं तो हमें उन ताकतों को हराना होगा, जो लोगों के बीच एकता की बुनियाद को नष्ट करना चाहती हैं, जब फासीवाद हमारे दरवाजे पर दस्तक देगा तो अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के विषय में बात करने का कोई लाभ नहीं है। मगर जो उन्होंने आगे कहा वह महत्वपूर्ण है। मीडिया के अनुसार उन्होंने यह कहा कि यह कम्युनिस्ट (लेफ्टिस्ट) मानसिकता है, जिसने विकास और जीवनयापन के उच्च मापदंडों को प्रदान किया है, जो देश के अधिकांश राज्यों में नहीं है।
मगर जब केरल के मुख्यमंत्री अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मानकों की बात करते हैं तो वह एक बात भूल जाते हैं कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल तभी तक है, जब तक वह हिन्दू धर्म के विरोध में हैं। वे यह भूल जाते हैं कि जब केरल स्टोरी फिल्म बनी थी, तो उन्होंने ही अभिव्यक्ति की इस स्वतंत्रता का विरोध करते हुए लिखा था कि यह ‘प्रोपोगैंडा फिल्म’ है। वहीं मुस्लिम यूथ लीग (जो कि इन्डियन युनियन मुस्लिम लीग की ही युवा विंग है) के नेता पीके फ़िरोज़ ने यहाँ तक कहा था कि केरल स्टोरी को स्क्रीन नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह एक विशेष सम्प्रदाय के विरुद्ध है और यह मुस्लिम, केरल और लड़कियों का अपमान है।
जब केरल के मुख्यमंत्री अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं भाईचारे की बात करते हैं तो वह मुस्लिम यूथ लीग के राज्य महासचिव पीके फ़िरोज़, जिन्होनें केरल स्टोरी फिल्म को न दिखाए जाने पर जोर दिया था, उनकी इस गर्वीली स्वीकारोक्ति पर मौन कैसे रह सकते हैं कि फ़िरोज़ खुद को वरियमकुन्नन का वंशज बताता है। दरअसल यह मामला भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं उस धार्मिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता का है, जिसकी दुहाई केरल के मुख्यमंत्री ने सांस्कृतिक कर्मियों के साथ भाषण में दी थी। मगर यह धार्मिक स्वतंत्रता चूंकि हिन्दू धर्म से सम्बंधित है तो इसका विरोध करना लेफ्ट और इस्लाम के नजरिये से स्वाभाविक ही है।
यह बात बहुत पुरानी नहीं, 17 फरवरी की है। केरल के मुस्लिम यूथ लीग के राज्य महासचिव पीके फ़िरोज़ ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ के इस वक्तव्य कि काशी, मथुरा और अयोध्या तीन स्थानों पर मंदिरों पर बनी मस्जिदें हिन्दुओं की धार्मिक अस्मिता का अपमान है और वह मुस्लिम समुदाय से अनुरोध करते हैं कि वह काशी और मथुरा को शांतिपूर्वक तरीके से सौंप दें।
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हमने तो केवल तीन जगह मांगी…
श्री अयोध्या धाम का उत्सव लोगों ने देखा…
नंदी बाबा ने भी कहा कि हम काहे इंतजार करें…
हमारे कृष्ण कन्हैया कहां मानने वाले हैं… pic.twitter.com/yzqFAcicuP
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) February 7, 2024
मगर इसे लेकर केरल के मुस्लिम यूथ लीग के राज्य महासचिव पीके फ़िरोज़ ने एक भड़काने वाला बयान देते हुए कहा कि मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए मस्जिदें इबादत के लिए हैं और मस्जिदों के लिए वह अंतिम सांस तक लड़ेंगे। हिन्दू पोस्ट के अनुसार वह हाल ही में मुस्लिम यूथ लीग द्वारा आयोजित “डे-नाईट मार्च” में बोल रहा था। हिन्दूपोस्ट के अनुसार फ़िरोज़ ने कहा, “यूपी (उत्तर प्रदेश) के मुख्यमंत्री ने कहा कि अयोध्या, काशी और मथुरा हिन्दुओं की हैं। लेकिन युवा लीग को श्री योगी आदित्यनाथ से क्या कहना है, मलयाली पक्ष को क्या कहना है और केरल को क्या कहना है कि हमारे पूर्वजों ने भारत में इन मस्जिदों का निर्माण किया था। हम वरियमकुन्नन के वंशज हैं।”
उसने आगे कहा, “भारत में, मस्जिद हमारे इबादत करने के लिए बनाई गई थी। सर्वशक्तिमान अल्लाह की इबादत करने के लिए। हम मस्जिदों के लिए अपनी आखिरी सांस तक लड़ेंगे। हम एक तरफ कुरान और दूसरी तरफ संविधान के साथ लड़ेंगे। यूथ लीग यह सुनिश्चित करेगी कि चर्च ईसाई समुदाय के लिए किसी भी खतरे से सुरक्षित रहें।”
कौन है वरियमकुन्नन
अब प्रश्न यह उठता है कि वरियामकुन्नन कौन था, जिसके वंशज होने का दावा फ़िरोज़ ने किया है। वरियमकुन्नन वही कट्टरपंथी है, जिसने वर्ष 1921 में मोपला जीनोसाइड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। द प्रिंट में प्रकाशित अपने लेख में लेखक अरुण आनंद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक एवं प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे नंद कुमार के हवाले से वरियमकुन्नन के विषय में लिखते हैं कि वर्ष 1921 में हुए मालाबार हिन्दुओं के जीनोसाइड की योजना का सबसे बड़ा खलनायक कुंजाहम्मद हाजी एक मूर्तिभंजक परिवार से था। उसके अब्बा को साम्प्रदायिक दंगों को करने के कारण मक्का भेज दिया गया था।
उसने वर्ष 1921 के हिन्दू जीनोसाइड को फैलाया था, जिसमें हजारों हिन्दुओं की हत्या हुई थी, जबरन मतांतरण हुआ था, हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ था और हिन्दू सम्पत्तियों एवं मंदिरों को नष्ट किया गया था।
1921 में मोपला मुस्लिमों द्वारा लगातार 4 महीनों तक हिन्दुओं पर अत्याचार किए गए थे, जिनके विषय में पाञ्चजन्य लगातार लिखता आ रहा है, उसी जघन्य अपराध के सबसे बड़े कारक का वंशज बताने वाले फ़िरोज़ को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है, मगर केरल स्टोरी को नहीं है।
वहीं जब फ़िरोज़ चर्च की बात करता है तो इस पर भी हंसा ही जा सकता है क्योंकि वर्ष 1921 में मोपला मुस्लिमों ने जब हिन्दुओं का जीनोसाइड किया था, तो उन्होंने चर्च और ईसाइयों पर भी अत्याचार किए थे। जिसके विषय में तत्कालीन वायसराय ने भी अपने भाषण में कहा था कि ‘कुछ यूरोपीय एवं कई हिन्दू मारे गए हैं, संचार में बाधा डाली गयी है, सरकारी दफ्तरों को जला दिया गया है, लूटा गया है और रिकार्ड्स नष्ट कर दिए गए हैं, हिन्दू मंदिरों को बर्बाद किया गया है, यूरोपीयों एवं हिन्दुओं के घरों को जला दिया गया है।’ (गांधी एंड एनार्की पृष्ठ 129)
मोपला मुस्लिमों द्वारा हिन्दुओं की हत्याएं की गयी थीं और हिन्दू महिलाओं के शीलभंग और हत्या के साथ ही जबरन मतांतरण किया गया था। यह सब आधिकारिक रिकार्ड्स में दर्ज है, मगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इस जघन्य घटना को करने वाले लोगों को स्वतंत्रता सेनानी की संज्ञा दी जाती है। हिन्दुओं के घावों पर नमक छिड़का जाता है और वह भी उसी केरल में जहां पर मुख्यमंत्री सांस्कृतिक कर्मियों से यह आह्वान कर रहे हैं कि वह फासीवाद के खिलाफ लिखें।
मगर बोलने और लिखने की एकतरफा स्वंत्रतता पर मुख्यमंत्री कुछ नहीं कहते हैं, यह सब एकतरफा क्यों है? वहीं मुस्लिम नेता फ़िरोज़ के चर्च को दिए गए आश्वासन को लेकर ईसाई संस्था ने भी उत्तर दिया है। क्रिश्चियन एसोसिएशन एंड अलायन्स फॉर सोशल एक्शन ने अपने फेसबुक पेज पर इसका उत्तर देते हुए लिखा है कि ईसाई चर्चों और ईसाइयों को आपका संरक्षण नहीं चाहिए, जो खुद को इस्लामिक आतंकी/लुटेरों का वंशज बताते हैं।
इस पेज पर उन्होंने लिखा कि वर्ष 1921 में केवल हिन्दुओं को ही नहीं मारा गया था, बल्कि उस क्षेत्र में 600 ईसाई परिवार भी थे, जिनमें से केवल नौ ही परिवार इस हत्याकांड के बाद शेष रह सके थे। कुछ लोगों को तलवार के बलपर मुस्लिम बना लिया गया था तो कई लोग अपने जीवन को बचाकर भाग गए थे और शेष मारे गए थे। आप लोग वरियमकुन्नन को कितना भी पाक साफ़ बता लो, हम इसे नहीं भूले हैं और न ही भूलेंगे।
इस फेसबुक पोस्ट में संस्था ने लिखा कि केरल में जो भी चर्च और मस्जिदें हैं, उनके लिए भूमि हिन्दुओं ने ही दी थी और यह भी लिखा कि जब श्रीलंका में ईस्टर के अवसर पर उनके निर्दोष भाई बहनों को विस्फोट में मारा गया था तो क्या केरल के किसी भी मुस्लिम ने उनके लिए शोक व्यक्त किया था या फिर जब नाइजीरिया में लगातार ईसाइयों को इस्लामी आतंकवादियों द्वारा मारा जा रहा है तो क्या कोई कुछ बोलता है, इसलिए चर्चों को आपकी आवश्यकता नहीं है।
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