हरिद्वार। हरिद्वार हिंदुओं की धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है, गंगा किनारे ऋषि देव सन्यासियों मठों की इस पावन भूमि को अब मुस्लिम आबादी ने घेर लिया है। ऐसा माना जा रहा है कि गजवा ए हिंद के षड्यंत्र के तहत मुस्लिम आबादी गंगा तीर्थ स्थली और गंगा किनारे अपनी अवैध बसावट कर रही है। हरिद्वार कुंभ क्षेत्र को छोड़कर मुस्लिम आबादी ने पूरे हरिद्वार जिले को अपनी चपेट में ले लिया है। ऐसी परिस्थितियों में एक चर्चा ये भी है कि मुस्लिम संगठनों ने उत्तराखंड को गजवा हिंद के लिए एक प्रयोग शाला के रूप में अपनी गतिविधियों का केंद्र बना लिया है।
हरिद्वार जिले में गतिविधियां तेज
मिली जानकारी के अनुसार सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हरिद्वार की मुस्लिम आबादी हर 10 साल में 40 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है। ये आंकड़े चौकाने वाले हैं और पूरे जिले की डेमोग्राफी का स्वरूप बदल गया है। हरिद्वार जिले की कुल आबादी में से 40 फीसदी के करीब मुस्लिम हैं। जो राज्य बनने से पूर्व 10 फीसदी भी नहीं थी।
हरिद्वार हिन्दू सनातन धर्म का सबसे बड़े धार्मिक केंद्र के रूप में जाना जाता है। हिंदू धर्म के सभी मठ, सभी अखाड़े, आध्यात्मिक केंद्र हरिद्वार के कुंभ क्षेत्र में हैं, जहां से सनातन धार्मिक गतिविधियों का संचालन होता आया है। पितृ अस्थियों के विसर्जन से लेकर जनेऊ संस्कार पावन गंगा नदी के किनारे होते हैं। सनातन धर्म की आस्था का प्रतीक कुंभ मेला जो कि दुनिया का सबसे बड़ा धर्म मेला यहीं होता है और हर साल चार करोड़ से ज्यादा कांवड़ श्रद्धालु यहां से गंगा जल लेने आते हैं। हिन्दू धर्म की आस्था और विश्वास की इस नगरी के आसपास मुस्लिम आबादी तेज़ी से बढ़ रही है। एक तरह से कहें कि पूरे हरिद्वार शहर को मुस्लिम आबादी ने घेर लिया है और अब अवैध रूप से गंगा किनारे वन विभाग और कैनाल की जमीन पर इनकी बसावट हो रही है।
क्या वजह है कि हरिद्वार जिले में 2011 की जनसंख्या के मुताबिक मुस्लिम आबादी 2001 में 478000 (अनुमानित) से बढ़कर 648119 हो गयी थी यानी जिले की आबादी पर 34.2 फीसदी का हिस्सा मुस्लिम आबादी का था। प्रदेश में मुस्लिम आबादी 11.19 प्रतिशत से बढ़कर 13.9 प्रतिशत हो गयी थी। 2020 के अनुमान के अनुसार हरिद्वार की मुस्लिम आबादी 40 प्रतिशत के आसपास हो गयी है। हरिद्वार की आबादी इस साल के अंत तक 22 लाख के करीब हो जाएगी, जिसमें मुस्लिम आबादी आठ लाख से ज्यादा होने की बात कही जा रही है जिसकी वजह से सामाजिक राजनीतिक परिवर्तन होने शुरू हो गए हैं।
आखिर क्यों और कैसे ये आबादी बढ़ती जा रही है?
हरिद्वार जिले के साथ यूपी के बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, सहारनपुर जिले लगते हैं इन जिलों में मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में हैं। उत्तराखंड बनते ही हरिद्वार जिले में उद्योगों का जाल बिछा जिसमें लेबर सप्लाई करने वाले ठेकेदारों ने काम की तलाश में आये यूपी के जिलों के मुस्लिमों की भर्ती बड़े पैमाने में कर दी। बताया जाता है कि इसके पीछे जमीयत उलेमा ए हिंद और उसकी सहायक दारुल उलूम देवबंद योजनाबद्ध तरीके से काम कर रहा है। हाल ही में दारुल उलूम देवबंद, अपने गजवा हिंद के लिए फतवे की वजह से चर्चा में आया। उसके बाद से इस दिशा में भी चिंतन होने लगा कि कहीं मुस्लिम संगठनों ने उत्तराखंड में डेमोग्राफी चेंज के लिए अपनी प्रयोग शाला तो नहीं बना दिया।
जब राज्य बना पहले चुनाव के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी सरकार ने यहां के उद्योगों में 70 फीसदी रोजगार स्थानीय लोगों को दिए जाने का फैसला कैबिनेट और विधानसभा में लिया था, उद्योगों के लेबर ठेकेदारों ने जोकि ज्यादातर मुस्लिम थे उन्होंने योजना बद्ध तरीके से अपनी मुस्लिम लेबर को स्थानीय निवासी बना दिया और सरकारी आदेशों की खाना पूर्ति कर दी। इसके अलावा गंगा और उसकी सहायक नदियों में खनन के काम में पश्चिम यूपी, बिहार, असम से आए मुस्लिम मजदूर यहां आकर नदी किनारे अवैध रूप बसते चले गए जोकि अब यहां की वोटर लिस्ट में दर्ज हो गए, स्थानीय कांग्रेसी नेताओं विधायकों ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया।
हरिद्वार में हर साल करोड़ों लोग कांवड़ लेने आते हैं कांवड़ के सामानों के उत्पादन में पहले पड़ोसी राज्य यूपी के जिलों का दबदबा था अब इन्हें बनाने वाले यहां शिफ्ट हो गये। हरिद्वार से लेकर देहरादून, ऋषिकेश में पिछले 20 सालों में आबादी का विस्तार हुआ इमारतें बनाने वाले मजदूर बढ़ई फिटर का धंधा करने वाले कुम्भ क्षेत्र के बाहर आकर बसने लगे। हरिद्वार के ज्वालापुर क्षेत्र के बीजेपी विधायक रहे सुरेश राठौर ने अक्टूबर 2019 में सार्वजनिक रूप से ये बयान दिया था कि हरिद्वार गंगा किनारे 67 किमी तक मुस्लिम आबादी बढ़ती जा रही है, जिसकी पड़ताल होनी चाहिए कि कौन लोग यहां आकर बस गए। वो बात अलग है कि शासन- प्रशासन ने उनके बयान को कितनी गंभीरता से लिया? पिछले साल विश्व हिंदू परिषद ने भी उत्तराखंड सरकार का ध्यान इस ओर दिलाया था, विश्व हिंदू परिषद कहती है कि हरिद्वार को एक साजिश के तहत घेरा जा रहा है, अवैध बस्तियों को क्यों पनपने दिया जा रहा है?
बीजेपी को विधानसभा सीटों में मिली हार
पिछले साल विधानसभा चुनाव में बीजेपी के कट्टर हिंदू प्रत्याशी स्वामी यतिश्वेरा नंद जी चुनाव हार कैसे गए? हरिद्वार जिले में बीजेपी के प्रत्याशी सुरेश राठौर ज्वालापुर से, संजय गुप्ता लक्सर से कांग्रेस प्रत्याशियों से हार गए, जबकि खानपुर में भी बीजेपी हार गई और यहां निर्दलीय उमेश कुमार चुनाव जीते और विश्लेषक यहीं मानते हैं कि बीजेपी यहां अंदरूनी कलह से नहीं, बल्कि बढ़ती मुस्लिम वोटर संख्या से हारी। रुड़की विधायक प्रदीप बत्रा अपना 2018 चुनाव 12 हजार से ज्यादा वोट से जीते थे, जबकि 2023 में वो 2200 से ही जीते। ऐसे ही अन्य विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी लगातार पिछड़ रही है और इसकी वजह यही है कि यहां मुस्लिम आबादी उनके वोट निर्णायक हो गए हैं।
हरिद्वार में मुस्लिम आबादी ज्यादातर शहर के बाहर गंगा किनारे, रेलवे की ज़मीन, एनपीआर अवैध कब्ज़ों में बसी हुई है। कांग्रेस के शासन काल में इसमें भारी वृद्वि होती रही, लेकिन बीजेपी की सरकार आने पर इसमें कोई कमी नहीं आई, बल्कि इनके आने और बसने का सिलसिला जारी रहा, यहां तक कहा गया कि इनमें रुहेलाओं ने भी कब्ज़े जमाए हुए हैं। कांग्रेस से जुड़े नेता इनका संरक्षण करते आये हैं। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत हरिद्वार से सांसद का चुनाव लड़ते रहे हैं उनके दौर में अवैध बस्तियों को नियमित करने का खेल भी चला। कांग्रेस ने पंजाब और हरियाणा में अपने शासन में ऐसे जिले बनाये जो आज मुस्लिम बाहुल्य हो चुके हैं। वैसे ही हालात कुछ सालों बाद हिन्दू तीर्थ नगरी हरिद्वार जिले के भी हो जाएंगे और ये हालात चिंताजनक ही कहे जा सकते हैं।
हरिद्वार शहर के बाहर मस्जिद और मीनारें
हरिद्वार के कुंभ क्षेत्र से बाहर आते ही राष्ट्रीय राजमार्ग से दोनों तरफ मस्जिदें ऊंची मीनारें दिखाई देने लगी हैं, जबकि कुछ साल पहले ऐसा नहीं था। कुंभ क्षेत्र में बाजार हाट लगाने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग कई बार खुले में नमाज पढ़ते दिखाई दिए, जिनपर प्रशासन को कार्रवाई करनी पड़ी है।
खामोश हैं सनातन रक्षक अखाड़े
हरिद्वार में सनातन धर्म रक्षक के अखाड़े और देश के सभी प्रमुख साधु संतों के बड़े-बड़े आश्रम हैं मठ हैं, इसके बावजूद हरिद्वार जिले में इस्लामिक हरी चादर कैसे बिछती चली गई? ये बड़ा सवाल है। साधु संत कभी-कभी इस बारे में बयान देकर चिंता तो करते हैं, लेकिन धरातल पर उनके द्वारा कार्य किए जाने पर खामोशी ही दिखाई देती है।
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