जब उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू किया गया था, तभी असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी एक बयान दिया था कि असम में भी UCC लागू होकर रहेगा। अब उन्होंने इस ओर कदम भी बढ़ा दिया है। इसके पहले चरण में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने 89 साल पुराने मुस्लिम विवाह अधिनियम को खत्म कर दिया है।
इस बात की जानकारी खुद जयंत मल्ला बरुआ ने दी है। उन्होंने कहा कि सीएम सरमा ने पहले ही प्रदेश में यूसीसी लागू करने की बात कही थी और इसी कदम के तहत हमने असम मुस्लिम विवाह, तलाक रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1935 को समाप्त कर दिया है। असम में वर्तमान में 94 ऐसे व्यक्ति हैं जो कि मुस्लिम विवाह औऱ तलाक का रजिस्ट्रेशन करने के लिए अधिकृत हैं, लेकिन कैबिनेट के फैसले के बाद जिला कलेक्टर के आदेश जारी करते ही उनका ये अधिकार खत्म हो जाएगा। इसके साथ ही बरुआ ने कहा कि चूंकि ये लोग तलाक और रजिस्ट्रेशन के जरिए अपनी आजीविका कमा रहे थे। इसलिए इन 94 लोगों को सरकार 2-2 लाख रुपए का मुआवजा देगी।
मंत्री ने कहा कि समान नागरिक संहिता की दिशा में आगे बढ़ते हुए कैबिनेट ने ये महसूस किया है कि मुस्लिम विवाह अधिनियमों को निरस्त करना जरूर है, क्योंकि ये अंग्रेजों के शासनकाल से चला आ रहा है औऱ मौजूदा परिस्थितियों से मेल नहीं खाता है। इसका इस्तेमाल कम उम्र के लड़के और लड़कियों का निकाह करने के लिए किया जा रहा था।
वहीं मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने आधी रात को एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, “23.2.2024 को असम कैबिनेट ने सदियों पुराने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम को निरस्त करने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया। इस अधिनियम में विवाह पंजीकरण की अनुमति देने वाले प्रावधान शामिल थे, भले ही दूल्हा और दुल्हन 18 और 21 वर्ष की कानूनी उम्र तक नहीं पहुंचे हों, जैसा कि कानून में जरूरी है। यह कदम असम में बाल विवाह पर रोक लगाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है।”
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