8 फरवरी को वहां हुए आम चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न मिलना। न तो लंदन से लौटे पूर्व प्रधानमंत्री मियां नवाज शरीफ की पार्टी, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) को जनता ने सिर-माथे बैठाया है, न ही पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के पुत्र, मियां बिलावल भुट्टो की पार्टी, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) को इतनी सीटें जिताई हैं कि वे अपने बूते इस्लामाबाद के तख्त पर जा बैठें।
पड़ोसी इस्लामी देश की राजधानी इस्लामाबाद के सियासी गलियारों में एक बार फिर से किसी तरह कुर्सी तक पहुंचकर, देश पर फिर से ‘राज’ करने की कवायद पूरे जोर-शोर से चल रही है। वजह है 8 फरवरी को वहां हुए आम चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न मिलना। न तो लंदन से लौटे पूर्व प्रधानमंत्री मियां नवाज शरीफ की पार्टी, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) को जनता ने सिर-माथे बैठाया है, न ही पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के पुत्र, मियां बिलावल भुट्टो की पार्टी, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) को इतनी सीटें जिताई हैं कि वे अपने बूते इस्लामाबाद के तख्त पर जा बैठें। लेकिन हां, पाकिस्तानी अवाम ने चुनाव चिन्ह जब्त करवा चुके, भ्रष्टाचार के ढेरों मामलों में उलझे और फिलहाल जेल में बंद इमरान खान की पार्टी, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवारों के नाते चुनाव लड़ने वाले उसी के नेताओं को सबसे ज्यादा (लेकिन बहुमत से कम) सीटें जितवा कर चुनाव नतीजों को हैरानी का पुट दे दिया है।
पाकिस्तान की नेशनल असेंबली की कुल 336 सीटों में से 265 पर चुनाव हुआ। शेष 70 सीटें आरक्षित हैं। एक सीट पर चुनाव टाल दिया गया तो एक पर आगे (15 फरवरी) चुनाव कराया गया। सरकार बनाने के लिए 134 सीटें चाहिए थीं। लेकिन घोषित नतीजों में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ समर्थित निर्दलियों को 93, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज को 75 तो पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को सिर्फ 54 सीटें ही मिलीं। एमक्यूएम को 17 तो जेयूआई को सिर्फ4 सीटों से संतोष करना पड़ा। लेकिन, पाकिस्तान का यह आम चुनाव भी एक माखौल सा ही साबित होता दिख रहा है।
’47 के बाद, इन चुनावों से पहले भी ‘लोकतांत्रिक पद्धति’ से हुए 11 आम चुनाव में से अधिकांश को एक दिखावा मात्र कहा जा सकता है। जिनमें से कम से कम 5 आम चुनाव तो ऐसे रहे हैं कि जिन्हें चुनाव न कहकर ‘सत्ता का जुगाड़’ कहना ज्यादा सही होगा। लगभग सभी चुनावों में भ्रष्टाचार और अपराधियों के पोषक माने जाने वाले सियासी नेताओं ने खुलेआम धांधलियां कराकर आंकड़ों को अपने पाले में किया। पाकिस्तान की सेना वहां के सत्ता अधिष्ठान पर हावी रहने को लेकर कुख्यात है ही। बेनजीर जब सेना की पकड़ से बाहर होती दिखीं तो नवाज शरीफ को आगे करके पीएमएल-एन को खड़ा किया गया। इसी तरह नवाज जब काबू से बाहर जाते दिखे तो पूर्व क्रिकेट कप्तान इमरान खान को आगे करके पीटीआई तैयार की गई। पाकिस्तान में शायद ही कोई चुनावी जानकार होगा जो यह नहीं जानता होगा कि 2018 में पीटीआई को खड़ा करने के लिए सैन्य जनरलों ने रातोंरात मुख्य पार्टियों के नेताओं को व्यवसायी जहांगीर तरीन के प्राइवेट जेट से ‘अगवा’ करा लिया था और तब तक रिहा नहीं किया था जब तक कि उन्होंने इमरान की पार्टी में जाने की हामी नहीं भर दी थी!
पहले के चुनावों की तरह इस बार के चुनाव और इसके परिणाम भी सियासी दलों ने ‘हाइजैक’ कर लिया है। इस बात को बारीकी से समझने के लिए घटनाक्रम पर नजर डालिए।
‘‘…ऐसे रहस्यमय परिणाम पहली बार नहीं दिखे हैं, 2018 के चुनाव में भी हम यह देख चुके हैं। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि सैन्य अधिष्ठान का पसंदीदा कौन है। बेशक, पिछले चुनाव में ‘ऊपर वाले के हाथ’ का फायदा उठाने वालों में मुख्य रूप से पीटीआई थी।’’
-स्तम्भकार जाहिद हुसैन
16वीं नेशनल असेम्बली के सदस्य चुनने के लिए 8 फरवरी को चुनाव हुआ। नतीजे अगले 24 घंटे के बाद आने शुरू होने चाहिए थे, लेकिन वे आने शुरू हुए 48 घंटों के बाद! पूरा परिणाम आने में 72 घंटे से ज्यादा का समय लगा। इतना वक्त क्यों लगा? कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवारुल हक काकर की इस दलील का कोई खरीदार नहीं है कि मतपत्र पर हुए चुनाव में मतों की गिनती में वक्त लग गया! जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के नेता फजलुर्रहमान को छोड़कर कोई नेता खुलकर नहीं कह रहा कि चुनावों में कोई धांधली नहीं हुई है।
पंजाब, खैबर पख्तूनख्वा, सिंध, बलूचिस्तान आदि सूबों में तो विशेष रूप से नतीजे बहुत देर में घोषित किए गए या ‘दोबारा’ मतगणना के बाद, जीते उम्मीदवार हारे बताए गए और हारे उम्मीदवारों को विजेता घोषित कर दिया गया। बलूचिस्तान में तो 10 फरवरी से ही लोग गुस्से से भरे सड़कें जाम करके बैठे हैं, दुकान-बाजार सब बंद हैं। पख्तूनख्वा नेशनल अवामी पार्टी के अध्यक्ष खुशाल खान काकर को एनए-251 से जीता बताने के बाद जेयूआई-एफ के उम्मीदवार को विजयी घोषित किया गया। सीधा आरोप है कि ऐसा सेना के दबाव में किया गया है। कुछ स्थानों पर तो सरकार के लिए धांधली को छुपाना मुश्किल हो गया और दोबारा चुनाव कराने पड़ रहे हैं। खुशाब, घोटकी और कोहाट में फिर से चुनाव हुए हैं।
उबल रहा बलूचिस्तान
पूरा बलूचिस्तान गत दिनों आम चुनावों में कथित धांधली के विरुद्ध सड़कों पर था। राजधानी क्वेटा सहित बलूचिस्तान के कई इलाकों में पूर्ण हड़ताल देखने में आई। यह विरोध प्रदर्शन और हड़ताल नेशनल पार्टी, हजारा डेमोक्रेटिक पार्टी (एचडीपी), बीएनपी-मेंगल और पीकेएमएपी के गठबंधन की अपील पर आयोजित की गई थी। क्वेटा में डिप्टी कमिश्नर (जो जिला चुनाव अधिकारी भी थे) के कार्यालय के बाहर लोग धरने पर बैठे रहे, इनमें महिलाओं की तादाद ज्यादा थी।
समाचारों के अनुसार, ग्वादर, तुरबत, पंजगुर, नुश्की, कलात, मस्तुंग, खुजदार, लोरलाई, पिशिन, किला सैफुल्लाह, चमन, किला अब्दुल्ला, झोब, डेरा बुगती, कोहलू, सिबी, नसीराबाद, डेरा जैसे स्थानों पर भी पूर्ण हड़ताल रही। मुराद जमाली, जियारत, बरखान जैसे शहरों में लोग आक्रोशित नजर आए।
सेना की जोर-जबरदस्ती का पलड़ा इस बार कथित रूप से नवाज शरीफ की पार्टी की ओर झुका दिखा। पीटीआई के प्रवक्ता रऊफ हसन ने सीधा आरोप लगाया है कि इमरान खान की पार्टी चुनाव न जीत पाए, इसके लिए पूरी सियायी सांठगांठ की गई थी। हसन ने खुलकर कहा कि सेना उनकी पार्टी को सत्ता में न लौटने देने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रही है। लेकिन चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली तो हुई है, जिसकी भनक व्हाइट हाउस से होते हुए जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र के दफ्तर तक पहुंची है और दोनों की ओर से पाकिस्तान को आगाह किया गया है कि ‘लोकतांत्रिक प्रक्रिया को निष्पक्षता के साथ पूरा किया जाए’।
इन पंक्तियों के लिखे जाते वक्त राजधानी इस्लामाबाद के लगभग सभी दलों के बड़े नेताओं, विशेषकर पीएमएल-एन और पीपीपी के बीच गठबंधन के ‘कायदों’, सत्ता की ‘बंदरबांट’ पर ‘गहन चर्चाएं’ चल रहीं थीं। पीएमएल-एन के नेता नवाज शरीफ ने खुद की बजाय अपने छोटे भाई पूर्व प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। उनके खुद इस पद से दूर होने की वजह पीपीपी के साथ इस बात की रजामंदी बताई जा रही है कि उनकी बेटी मरियम औरंगजेब को पंजाब सूबे की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने दिया जाएगा। राष्ट्रपति पद के लिए पीपीपी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो के अब्बा उन पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी का नाम तय होता दिख रहा है जिनके सिर पर महाभ्रष्टाचारी होने के आरोपों के चलते ‘मिस्टर 10 परसेंट’ का लेबल चस्पां है। उधर इमरान खान के जेल से सरकार बनाने के दावे बहरे कानों से टकराकर लौट चुके हैं। इमरान ‘लोकतंत्र की हत्या’ के आरोप लगा रहे हैं।
पाकिस्तान के अंग्रेजी दैनिक द डॉन में 14 फरवरी, 2024 के अपने आलेख में स्तम्भकार जाहिद हुसैन लिखते हैं, ‘‘…ऐसे रहस्यमय परिणाम पहली बार नहीं दिखे हैं, 2018 के चुनाव में भी हम यह देख चुके हैं। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि सैन्य अधिष्ठान का पसंदीदा कौन है। बेशक, पिछले चुनाव में ‘ऊपर वाले के हाथ’ का फायदा उठाने वालों में मुख्य रूप से पीटीआई थी।’’
एकाध दिन में साफ हो जाएगा कि इस बार के चुनावों में सेना, आईएसआई और जिहादी तंजीमों का पसंदीदा कौन है, क्योंकि प्रधानमंत्री कोई बने, रणनीतियां तो जनरलों ने ही तय करनी हैं। इस कड़वे सच को फिलहाल अदियाला जेल में अपनी बीवी बुशरा के साथ कैद ‘कप्तान’ इमरान खान से बेहतर कौन जानता होगा?
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