झारखंड में नक्सली कर रहे हैं अफीम की खेती। नष्ट करने वाले पुलिसकर्मियों पर होते हैं हमले। यदि समय रहते इस चुनौती से नहीं निपटा गया तो यह राज्य में भी पंजाब के रास्ते पर जा सकता है।
झारखंड नक्सलियों और अफीम के लिए सबसे सुरक्षित स्थान बन चुका है। नशा और नक्सलियों का गठजोड़ इतना गहरा हो चुका है कि अब सरकार के लिए यह एक विकराल समस्या बन चुकी है जिससे उबर पाना इतना आसान नहीं होगा। पूर्व की रघुबर सरकार में नक्सली लगभग समाप्त हो चुके थे। बीते 4 साल में नक्सली संगठनों ने अपने आपको एक बार फिर से स्थापित कर लिया है। इसमें महत्वपूर्ण भूमिका नशे की खेती और उसका व्यापार है। कई मीडिया रिपोर्ट्स की अगर मानें तो बीते 4 वर्ष में ऐसा कोई दिन नहीं है, जब अफीम, चरस, गांजा और अवैध शराब से जुड़े मामले प्रकाशित न हुए हाें। इसके बाद भी ना तो सरकार जग रही है ना ही प्रशासन।
ताजा मामला चौकाने के साथ-साथ परेशान करने वाला भी है। गत दिनों चतरा जिले में अफीम की खेती को नष्ट करने गए पुलिस बलों पर अचानक हमला कर दिया गया। इस मुठभेड़ में दो सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए, जबकि 5 सुरक्षाकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए। बलिदान हुए जवानों में बिहार के गया के सिकंदर सिंह और पलामू के रहने वाले सुकन राम हैं। चतरा के अनुमंडल पुलिस अधिकारी संदीप सुमन के अनुसार मुठभेड़ में घायल जवान आकाश सिंह को उपचार के लिये हवाई मार्ग से रांची भेजा गया। इसके साथ उन्होंने बताया कि सुरक्षाकर्मी एक अभियान के बाद वापस लौट रहे थे तभी उन पर तृतीय सम्मेलन प्रस्तुति कमेटी (टीएसपीसी) के उग्रवादियों ने हमला किया।
इस मामले पर मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने कहा है कि इन सुरक्षाकर्मियों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। सरकार नक्सली गतिविधियों को रोकने के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रही है।
घटना के बारे में पता चला कि अफीम विनष्टीकरण अभियान के तहत चतरा के वशिष्ठ नगर, जोरी और सदर थाना की संयुत्तफ़ टीम वन विभाग के साथ अभियान में गई थी। अफीम नष्ट करने के बाद जब पुलिस की टीम वापस लौटने लगी तो नक्सलियों ने जोरी और सदर थाना की दो गाड़ियों पर एक साथ हमला बोल दिया।
मुठभेड़ स्थल पर मौजूद सदर थाना के एएसआई अरुण दत्त शर्मा ने मीडिया को बताया कि अचानक इतनी गोलीबारी होने लगी कि संभलने का समय नहीं मिल रहा था। हम लोगों को दो तरफ से घेर लिया गया था, और दोनों तरफ से गोलीबारी हो रही थी। उन्होंने यह भी बताया कि जब काफी गोलीबारी होने लगी तो वे किसी तरह से वहां से जान बचाकर लगभग एक किलोमीटर दूर तक भागते रहे। वहां कोई नेटवर्क काम नहीं कर रहा था। सांस फूल रही थी। जब लगभग एक किलोमीटर दूर पहुंचे तो वहां से सबसे पहले चतरा एसपी के रिडर को फोन लगाया, जो बार-बार कट जा रहा था।
चतरा पहले से भी नक्सली गतिविधि के लिए बदनाम रहा है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जिले के अधिकांश प्रखंडों में 10 हजार एकड़ से अधिक वन भूमि पर अफीम की खेती नक्सलियों की देखरेख में हो रही है। 2016 में भी अफीम की खेती के खिलाफ पुलिस की ओर से अभियान चलाया गया था। उसमें एसपी (अभियान) अश्विनी मिश्र और लगभग 60 जवान शामिल थे। उस वत्तफ़ भी नक्सलियों ने पुलिस पर गोलीबारी की थी, लेकिन पुलिस के जवानों ने मोर्चा संभाला और नक्सली भाग निकले थे।
अब सवाल यह उठता है कि जब पुलिस को यह पता था कि इस क्षेत्र में नक्सलियों की शह पर अफीम की खेती हो रही है तो बिना किसी तैयारी के पुलिस जवानों को अफीम की खेती नष्ट करने के लिए क्यों भेजा गया था? इसी क्रम में एक वीडियो भी वायरल हुआ है, जिसमें पुलिस का एक जवान बोल रहा है कि कुछ लोगों के पास हथियार हैं, जबकि आठ लोगों के पास लाठी देकर अफीम की खेती को नष्ट करने के लिए भेजा गया था। कुछ वीडियो में वह जवान यह भी कह रहा है कि ऐसी स्थिति में लाठी लेकर इतनी दूर नहीं भेजना चाहिए था।
इस मामले पर भाजपा के प्रदेश प्रवत्तफ़ा प्रतुल शाहदेव का कहना है कि अफीम नष्ट करने वाली टीम में एक तिहाई जवान के पास हथियार थे, जबकि दो तिहाई जवान के पास सिर्फ लाठी थी। अगर यह सूचना सही है तो इतनी बड़ी चूक किस स्तर से और कैसे हो गई? घोर उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र में जवानों का लाठी लेकर जाना समझ से परे है। इस मामले की जांच होनी चाहिए।
कहां-कहां होती है अफीम की खेती
झारखंड में खासतौर से चतरा, लातेहार, खूंटी, पलामू, चाईबासा, रांची, हजारीबाग, चतरा, गिरिडीह, पाकुड़, लोहरदगा, गुमला व जामताड़ा के दूरदराज के क्षेत्र अफीम की खेती के लिए कुख्यात हैं।
किस साल कितनी अफीम हुई नष्ट
झारखंड पुलिस द्वारा प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के अनुसार साल 2019 में 2500 एकड़, साल 2018 में 2160-5 एकड़, 2017 में 2676-5 एकड़, 2016 में 259-19 एकड़, 2015 में 516-69 एकड़, 2014 में 81-26 एकड़, 2013 में 247-53 एकड़, 2012 में 66-6 एकड़, व 2011 में 26-5 एकड़ जमीन से अफीम नष्ट करने की कार्रवाई की जा चुकी है।
अफीम की खेती के लिए नक्सलियों का बहुत बड़ा गिरोह काम कर रहा है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रें में ग्रामीणों को कभी लालच में तो कभी अपनी जान बचाने के लिए मजबूरन नक्सलियों की बात माननी पड़ती है।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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