जयपुर। संयुक्त भारतीय धर्म संसद एवं अनेक संगठनों के संयुक्त तत्वावधान में सत्ताईस फरवरी को जयपुर के गोविंद देव जी मंदिर से श्री कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन का आगाज किया जाएगा। इसके तहत द्वारिका से मधुरा तक इकतालीस सौ किलोमीटर की रथ यात्रा संयुक्त भारतीय धर्म संसद के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य राजेश्वर के नेतृत्व में निकाली जाएगी।
राजस्थान पूर्वी प्रांत के प्रदेश अध्यक्ष राव प्रहलाद सिंह देवपुरा ने बताया कि यह रथ यात्रा गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली व उत्तर प्रदेश में भ्रमण करते हुए नागेश्वर, सोमनाथ, ओंकारेश्वर, त्र्यंबकेश्वर, महाकालेश्वर इन पांच ज्योतिर्लिंगों की पूजा कर मथुरा पहुंचेगी। इस यात्रा में एक करोड़ से अधिक लोग प्रत्यक्ष रूप में जुड़ेंगे। यात्रा का ढाई सौ से अधिक स्थानों पर स्वागत व ठहराव होगा। इस आंदोलन के तहत आचार्य राजेश्वर व संगठन के केंद्रीय पदाधिकारीगण देश के सौ शहरों में संपर्क सभाएं करेंगे तथा संगठन के संरक्षक भक्त कवि डॉक्टर कैलाश परवाल सरल द्वारा रचित श्री कृष्णम पर आधारित श्री कृष्ण की जीवनी पर विशेष उद्बोधन भी करेंगे । इसके साथ ही संगठन के पचास प्रदेश अध्यक्षों व जिला अध्यक्षों के नेतृत्व में लगभग सात हजार जनसंपर्क सभाएं होंगी। इस यात्रा का प्रभाव संपूर्ण भारतवर्ष में पड़े इसके लिए भारत के ख्यात नाम संतो के सानिध्य संरक्षण में यात्रा निकाली जाएगी।
यात्रा के प्रथम चरण में 31 मार्च को जयपुर के चांदपोल हनुमान मंदिर से सांगानेरी गेट हनुमान मंदिर तक संत महंत पैदल मार्च करेंगे। इसके साथ ही आचार्य राजेश्वर 5 से 7 अप्रैल को जयपुर महानगर के 251 मंदिरों में महंतों व पुजारियों से मिलकर इस आंदोलन को को सफल बनाने के लिए समर्थन व सहयोग के लिए आह्वान करेंगे। इसका शुभारंभ मोती डूंगरी गणेश मंदिर से किया जाएगा।
देवपुरा ने बताया की द्वारिका पहुंचकर द्वारकाधीश को रथ में विराजमान कर निवेदन किया जाएगा कि बहुत समय हो गया है द्वारिका में राज करते हुए अब आपको अपनी जन्मभूमि की सुध लेनी पड़ेगी और स्वयं श्री कृष्ण ही अपनी जन्मभूमि के विवाद का समाधान भी करेंगे। यात्रा मार्ग में देश के ख्यात नाम प्रसिद्ध संत महंत उद्योगपति राजनेता व अन्य क्षेत्रों के गणमान्य व्यक्ति भी समय-समय पर सम्मिलित होंगे। यात्रा को सफल बनाने के लिए संगठन के पदाधिकारी मिलकर गोवर्धन नाथ की परिक्रमा तथा बृज 84 कोस की परिक्रमा भी करेंगे। इसके बाद सभी संगठनों के प्रमुख पदाधिकारी देश के प्रधानमंत्री को एक प्रतिवेदन सौंपेंगे जिसमें भारत के पुरातन मंदिरों की सुरक्षा व प्राचीन वैभव लौटाने के लिए आवश्यक कानून बनाने के लिए निवेदन किया जाएगा।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
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