प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के भावी विकास का जो ‘ज्ञान का सम्मान’ मंत्र दिया है, इसमें अन्नदाता अर्थात् किसान प्रमुख है। उनकी कुछ नीतियों में प्रत्यक्ष और कुछ नीतियों में परोक्ष रूप से किसानों का हित चिंतन स्पष्ट दिखता है। यह केंद्र और राज्य सरकारों की किसान हितैषी नीतियों का ही परिणाम है कि आज भारत कृषि उत्पादों का निर्यातक देश बना।
इस लेख के लिखे जाने तक पंजाब, दिल्ली और हरियाणा में कुछ ‘किसान’ संगठन आंदोलनरत हैं। इनमें किसानों के वेश में कुछ ऐसे तत्व भी हैं, जो देश का वातावरण बिगाड़ना चाहते हैं। इस आंदोलन के लिए तिथियों का निर्धारण और अवसर भी साधारण नहीं है। यह एक ऐसा समय है जब भारत नई करवट ले रहा है, प्रगति की ऊंचाइयां छूने की ओर बढ़ रहा है। सामाजिक सद्भाव और समन्वय का भाव भी प्रगाढ़ हुआ है।
यही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के भावी विकास का जो ‘ज्ञान का सम्मान’ मंत्र दिया है, इसमें अन्नदाता अर्थात् किसान प्रमुख है। उनकी कुछ नीतियों में प्रत्यक्ष और कुछ नीतियों में परोक्ष रूप से किसानों का हित चिंतन स्पष्ट दिखता है। यह केंद्र और राज्य सरकारों की किसान हितैषी नीतियों का ही परिणाम है कि आज भारत कृषि उत्पादों का निर्यातक देश बना।
किसान आंदोलन के समय का चयन ही नहीं, आंदोलन करने का तरीका भी वातावरण बिगाड़कर सरकार के प्रयासों पर पानी फेरने वाला है। आंदोलन का जो स्वरूप सामने आया है,वह केवल अपनी मांगों की ओर ध्यानाकर्षण करना भर नहीं लगता। शायद ये लोग पूरी दिल्ली को ठप कर देना चाहते हैं। इसलिए दिल्ली आने के लिए पुलिस से भी टकरा रहे हैं। आंदोलन की तैयारी और तरीके से ही साफ है कि इसमें वे तत्व शामिल हैं, जो अराजकता फैलाकर देश की प्रगति को अवरुद्ध करना चाहते हैं।
जो खालिस्तान के नाम पर देश में अशांति फैलाने में सक्रिय रहे हैं, जो जेएनयू में कुख्यात आतंकवादी अफजल के समर्थन में निकाले गए जुलूस में थे। पिछले ‘किसान’ आंदोलन के समर्थन में कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में निकाली गईं रैलियों के आयोजकों में कौन थे, यह भी किसी से छिपा नहीं है। इसलिए इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस आंदोलन में भी पर्दे के पीछे वही आंदोलनजीवी हैं, जो पिछली बार थे।
भारत ने अपनी प्रगति का एक अति महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2047 तक भारत को विश्व की सर्वश्रेष्ठ आर्थिक शक्ति बनाने का संकल्प व्यक्त किया है। यह असंभव भी नहीं है। आज दुनिया के अधिकांश देश आर्थिक मंदी के दौर में हैं। भारत के लगभग सभी पड़ोसी देश घोर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं, वहीं भारत में आर्थिक स्थिरता और प्रगति की रफ्तार बढ़ी है। यह तथ्य संसार की उन सभी शक्तियों की नींद उड़ाने वाला है जो भारत की प्रगति से ईर्ष्या करते हैं। इसलिए वे दोनों दिशाओं में षड्यंत्र कर सकती हैं। भारत का सामाजिक वातावरण बिगाड़ने की दिशा में भी और अराजकता पैदा कर प्रगति की गति अवरुद्ध करने की दिशा में भी।
अयोध्या में रामलला के अपने भव्य मंदिरा में विराजमान होने से पूरे देश में एक विशेष सांस्कृतिक सद्भाव का वातावरण बना है। यह सद्भाव भारत के भावी लक्ष्य पूर्ति के लिए आवश्यक भी है, लेकिन पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम बता रहे हैं कि कोई है जो भारत में अराजक वातावरण बनाना चाहता है। इसी दृष्टि से हल्द्वानी और बरेली में कुछ घटनाएं घटीं। इसके तुरंत बाद अब यह ‘किसान’ आंदोलन आरंभ हुआ।
इस आंदोलन की तैयारी भी असाधारण है। आंदोलन में आने वाले ट्रैक्टरों पर भोजन बनाने का सामान लदा है, कुछ में टेन्ट, बिस्तर, कुर्सी, टेबल आदि हैं। कुछ ट्रैक्टरों में दीवार हटाने का ब्लेड लगा है। चालक के आगे शीशे की ऐसी पारदर्शी चादर लगी है, जो उसको आंसू गैस से बचाती है। ऐसी योजना बनाने वाले योजनाकार क्या साधारण किसान होंगे? ये प्रश्न भी उठ रहे हैं।
अपनी मांगों के प्रति सरकार का ध्यानाकर्षितकरना एक बात है, लेकिन व्यवस्था का विध्वंस करना बिल्कुल दूसरी बात। देशवासी ‘किसान’ आंदोलन की यह शैली दो वर्ष पहले देख चुके हैं। उस आंदोलन में वे चेहरे भी प्रमुखता से देखे गए थे जो खालिस्तान के नाम पर देश में अशांति फैलाने में सक्रिय रहे हैं, जो जेएनयू में कुख्यात आतंकवादी अफजल के समर्थन में निकाले गए जुलूस में थे। पिछले ‘किसान’ आंदोलन के समर्थन में कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में निकाली गईं रैलियों के आयोजकों में कौन थे, यह भी किसी से छिपा नहीं है। इसलिए इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस आंदोलन में भी पर्दे के पीछे वही आंदोलनजीवी हैं, जो पिछली बार थे।
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