‘विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति। बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।’ वैसे तो रामचरितमानस की ये चौपाई तब की है जब लंका पर चढ़ाई करने जा रहे भगवान राम ने समुद्र से लंका जाने के लिए मार्ग देने का आग्रह कर रहे थे। लेकिन आज की परिस्थिति में ये संयुक्त राष्ट्र पर बखूबी फिट बैठती है। क्योंकि लंबे वक्त से UNSC की स्थायी सदस्यता की मांग कर रहे भारत को संयुक्त राष्ट्र नजरअंदाज कर रहा है। इतनी कोशिशों के बाद भी संयुक्त राष्ट्र के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है। ऐसे में भय का साक्षात्कार कराते हुए भारत ने संयुक्त राष्ट्र को दी जाने वाली फंडिंग में भारी कटौती कर दी है। कहा जा रहा है कि अब जल्द ही भारत सरकार यूएन की पीस कीपिंग फोर्स से भारतीय सैनिकों को वापस बुला सकती है।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक सीनियर मेंबर ने तो ग्लोबली चल रहे सभी शांति मिशनों से भारत सरकार से हटने का आह्वान किया है। ग्लोबल सॉफ्टवेयर एज ए सर्विस यानि कि ‘सास’ की दिग्गज कंपनी जोहो कॉर्पोरेशन के सीईओ श्रीधर वेम्बू भारत के इस कदम का स्वागत करते हुए कहते हैं कि अगर दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश को संयुक्त राष्ट्र की शक्तियां नहीं देती है तो भारत को इस निकाय के साथ अपना समय और पैसा बर्बाद नहीं करना चाहिए। बता दें कि साल 2021 में पद्म पुरस्कार से सम्मानित वेम्बू राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य हैं।
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कितनी कटौती की भारत ने
गौरतलब है कि भारत सरकार ने इस साल के अंतरिम बजट 2024-25 में संयुक्त राष्ट्र समेत कई सारे अंतरराष्ट्रीय निकायों के बजट में 35.16 फीसदी की कटौती का प्रस्ताव रखा है। अनुमान व्यक्त किया गया था कि 2024-2025 के लिए, अंतरिम बजट में बिम्सटेक, सार्क और संयुक्त राष्ट्र सहित अंतरराष्ट्रीय निकायों पर खर्च करने के लिए विदेश मंत्रालय के लिए 558.12 करोड़ रुपए आवंटित होंगे। वहीं विदेश मंत्रालय ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को आइना दिखाते हुए उसके बजट में 54% से अधिक की कटौती कर दी है। इस बार UNSC को केवल 175 करोड़ रुपए ही दिए जाएंगे। जबकि, पिछले साल भारत सरकार ने सुरक्षा निकाय को 382.54 करोड़ रुपए दिए थे।
हालांकि, इससे पहले पिछले साल 2023-2024 के संशोधित अनुमान (आरई) में वित्त मंत्रालय ने वैश्विक संस्थाओं के योगदान के लिए 866.70 करोड़ रुपए की फंडिग की थी। लेकिन इतना धन खर्च करने के बावजूद भारत को अब तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए अनुनय विनय करना पड़ा रहा है। ऐसे में अब ‘भय’ क रास्ता अपनाया गया है।
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