उत्तराखंड में सामान नागरिक संहिता को लेकर कई प्रश्न जारी हैं, बवाल जारी है। मगर सबसे महत्वपूर्ण विषय पर बहस अधिक हो रही है और वह लिव-इन संबंधों के पंजीकरण को लेकर। यह बहुत ही हैरान करने वाली बात है कि एक ऐसे विषय पर विरोध का स्वर तेज किया जा रहा है, जिसे लेकर लगभग सभी देशों में पंजीकरण की व्यवस्था है।
बात यदि लिव-इन संबंधों की करें, तो समय-समय पर भारतीय न्यायालय द्वारा इन पर टिप्पणियाँ होती आई हैं और कई बार इस पर बात हुई है कि कैसे इन्हें परिभाषित किया जाए। बिना परिभाषा के कोई सम्बन्ध संचालित हो ही नहीं सकता। आजादी की परिभाषा में लिव-इन संबंधों को कैसे लिया जा सकता है जब इसके परिणामस्वरूप किसी सन्तान का जन्म हो सकता है और इसके चलते कई मानसिक एवं शारीरिक दुष्परिणाम भी युवाओं के जीवन में आ सकते हैं।
उत्तराखंड में लिव इन रिलेशनशिप नियम
उत्तराखंड में लिव इन को लेकर जो नियम बना है उसके अनुसार उत्तराखंड में रहने वाला कोई भी व्यक्ति यदि लिव इन संबंधों में जाने का निश्चित करता है तो उसे रजिस्ट्रार के पास यह स्टेटमेंट देना होगा कि वह लोग लिव इन में रह रहे हैं। हालांकि, यह सम्बन्ध तब प्रभावी नहीं होंगे यदि कोई व्यक्ति विवाहित है, या अनुमति को धोखे, जबरदस्ती, छल से या इस अधिनियम में वर्णित किसी और प्रावधान के प्रभाव में हासिल की गयी है।
यदि कोई जोड़ा इस सम्बन्ध से बाहर आना चाहता है तो कोई भी साथी इसे रजिस्ट्रार के पास जाकर समाप्त करने का फॉर्म भर सकता है। इन सम्बन्धों से पैदा हुआ बच्चा वैध माना जाएगा।
साथ ही यदि कोई इन संबंधों को बताता नहीं है तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा और यदि कोई युवक इसमें साथी को धोखा देता है तो दंड का प्रावधान है। लोग लिव इन संबंधों में रहना इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि इसमें उन्हें आजादी का अनुभव होता है और उन्हें ऐसा लगता है कि इसमें कोई बंधन नहीं है। जब मन न हो तो इससे बाहर निकला जा सकता है। यह एक बहुत ही अजीब सी क्रांतिकारी मानसिकता है कि विवाह नहीं करना है, और शेष सब कुछ करना है। परम्परा को तोड़ना ही है और विवाह में होने वाले सामंजस्य से लोग बचना चाहते हैं।
परन्तु क्या इन संबंधों में समायोजन नहीं होता? क्या इन संबंधों में एक दूसरे की गलत बातें साथी सहन नहीं करते हैं, बल्कि इन सम्बन्धों में ही एक दूसरे की गलत बातें अधिक स्वीकारते हैं, क्योंकि इन संबंधों में सामाजिक समर्थन नहीं होता, पारिवारिक सहयोग नहीं होता। परिवार की अवधारणा के खिलाफ ही तो यह सम्बन्ध होते हैं। इन संबंधों के कारण न केवल महिलाओं को बल्कि पुरुषों को कई प्रकार की हानि होती है और यदि इनके परिणामस्वरूप बच्चे हो जाएं तो?
ऐसे बहुत से आयाम हैं, जिन पर बात होनी चाहिए। विवाह पूर्व शारीरिक सम्बन्ध अनैतिक होते हैं, परन्तु गैर कानूनी नहीं। इसी प्रकार विवाह पूर्व संबंधों के परिणामस्वरूप पैदा हुए बच्चे गैर-कानूनी नहीं होते हैं, परन्तु एक अजीब पीड़ा से वह भरे रहते हैं। वैध नाम न मिलने की पीड़ा! मगर जिस आजादी की बात करते हुए ये सम्बन्ध बनाए जाते हैं या जिस आधुनिकता का हवाला देते हुए इन संबंधों की वकालत की जाती है, और रजिस्ट्रेशन से मना किया जा रहा है, क्या ऐसे सम्बन्ध हर देश में बिना किसी नियम के हैं या फिर कथित “आधुनिक” संबंधों के लिए “आधुनिक” देशों में भी “पिछड़े” पंजीकरण की व्यवस्था है? आइये कुछ “आधुनिक” देशों के कानूनों के विषय में जानते हैं।
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यूके में सिविल पार्टनरशिप कानून
यूके में लिव इन संबंधों में रहने वालों को कॉमन लॉ स्पाउस कहा जाता है और इन संबंधों के लिए एक अलग से क़ानून है, जिसे सिविल पार्टनरशिप एक्ट कहते हैं। इसके लिए भी नियम हैं, अर्थात इनमे जाने से पहले दोनों ही साथियों की उम्र 16 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए और साथ ही वह पहले से शादीशुदा नहीं होने चाहिए एवं साथ ही वह क़ानून के अनुसार किसी प्रतिबंधित संबंधों में नहीं होने चाहिए। इनमें लोगों को शादी के बराबर ही अधिकार मिलते हैं और सिविल पार्टनर सेम सेक्स वाले साथी भी हो सकते हैं।
अमेरिका
अमेरिका में लव इन रिलेशनशिप के लिए कोई क़ानून नहीं है जो इन संबंधों का निर्धारण करते हों, परन्तु विभिन्न राज्यों में इसके लिए कुछ नियम हैं। कैलिफोर्निया में नियम है जो साथ रहने वाले जोड़ों को घरेलू साथी के रूप में मान्यता देता है। डोमेस्टिक पार्टनर्स रजिस्ट्री के माध्यम से साथी एक दूसरे को रजिस्टर करवा सकते हैं और इसमें शादी की तुलना में काफी कम अधिकार मिलते हैं।
वाशिंगटन में भी कमिटेड इंटिमेट रिलेशनशिप होता है, जिसमें साथी की मृत्यु या अलगाव पर कुछ अधिकार मिलते हैं, परन्तु स्पाउसल मेंटिनेंस लेने के लिए उन्हें एक कानूनी कोहैबिटेशन अग्रीमेंट पर इन संबंधों के आरम्भ के दिनों में ही हस्ताक्षर करने पड़ते हैं।
स्कॉटलैंड
स्कॉटलैंड में भी लिव इन संबंधों को लेकर कानून है, परन्तु इन कानूनों को लेकर कुछ मापदंड और दायरे हैं जैसे
1- उनके साथ रहने की अवधि क्या है?
2- वह किस प्रकार के संबंधों में हैं?
3- वित्तीय व्यवस्थाओं की सीमा और प्रवृत्ति क्या है?
इन संबंधों के विफल होने पर कानून द्वारा वित्तीय सहायता की भी व्यवस्था की गयी है। इन सम्बन्धों के फलस्वरूप पैदा हुए बच्चों के विषय में न्यायालय अपने विवेक के अनुसार निर्णय लेगा।
ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया में de facto relationship एवं रजिस्टर्ड रिलेशन की व्यवस्था है और इनमें भी कुछ नियम हैं और पंजीकरण कराते समय उम्र का भी प्रावधान है।
फ्रांस
फ्रांस में ऐसे संबंधों का पंजीकरण होता है और ऐसे संबंध की व्यवस्था एक समझौते के माध्यम से होती है। को-हेबीटेशन का अर्थ होता है कि लोग साथ रह सकते हैं, सामान्य जीवन एक साथ जी सकते हैं और हर ऐसा सम्बन्ध जो शादी के रूप में पंजीकृत नहीं है, उसमें साथियों की उम्र 18 से कम नहीं होनी चाहिए। जो लोग अपने आप को इस समझौते के अंतर्गत पंजीकृत नहीं कराते हैं, उन्हें अपेक्षाकृत कम अधिकार प्राप्त होते हैं। मेंटिनेंस देने का अधिकार यहाँ पर न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है।
कनाडा
कनाडा में भी इसे लेकर कानून है। कॉमन लॉ मैरिज नाम से इन संबंधों को मान्यता प्रदान की जाती है और इसके लिए कम से कम 12 महीने साथ रहना पड़ता है, जिससे कि किसी भी प्रकार के कानूनी अधिकार प्राप्त किए जा सकें। कनाडा में इस क़ानून के अंतर्गत पंजीकृत जोड़ों को शादीशुदा जोड़ों जैसे ही अधिकार प्राप्त होते हैं।
ये तो रही अधिकाँश यूरोपीय या कहा जाए उन कथित आधुनिक देशों की बात, जिनकी तर्ज पर भारत में लिव इन संबंधों को स्वीकार्य बनाने की बात की जाती है। यह बात ध्यान रखने योग्य है कि अधिकांश देशों में बिना शादी किए रहने वालों के लिए कुछ विशेष नियम हैं और वे शादी से एकदम परे हैं। अर्थात शादी अलग है और ये संबंध अलग, परन्तु फिर भी ऐसे संबंधों के लिए पंजीकरण एवं कुछ नियम आवश्यक हैं, और इनमें उम्र का निर्धारित होना और कानून के अनुसार प्रतिबंधित संबंधों में न होना, महत्वपूर्ण पहलू हैं।
इस्लामिक देशों में ऐसे कोई सम्बन्ध बन ही नहीं सकते हैं, अर्थात बिना निकाह के एक साथ रहा ही नहीं जा सकता है, ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब अधिकांश पश्चिमी देशों में इन संबंधों के पंजीकरण को लेकर नियम हैं, इस्लामी देशों में यह लागू नहीं है तो फिर भारत जैसे देश में जहां लड़कियां आए दिन छद्म पहचान के चलते एक दूसरे ही षड्यंत्र का शिकार हो रही हैं, क्या ऐसे संबंधों के लिए कोई नियम या क़ानून नहीं होने चाहिए, जिससे पंजीकरण के समय यह पता चल सके कि जिस वह जिस अमन के साथ रहने जा रही हैं वह अमन सिंह, अमन मिश्रा, अमन कुमार आदि है या फिर अमन इकबाल?
लड़के जिस मुस्कान के साथ रहने जा रहे हैं वह मुस्कान कौन है? क्या उस मुस्कान के परिजनों की मजहबी नफरत का शिकार तो वह नहीं हो जाएगा? पंजीकरण होने के बाद न ही लड़की और न ही लड़का उस बच्चे से मुंह मोड़ सकेंगे जो एक साझी जिम्मेदारी से पैदा हुआ है। जिन लोगों को यह लगता है कि लिव इन संबंधों में कोई दायित्व नहीं होता है, वह सबसे बड़े मूर्ख होते हैं क्योंकि यही एकमात्र ऐसा सम्बन्ध है जिसमें सबसे अधिक दायित्व होते हैं, यदि बच्चा गर्भ में ठहर गया तो उसे हटाने का उत्तरदायित्व, और यदि एक ऐसे समय के बाद पता चला जब गर्भपात की कानूनी सीमा समाप्त हो गयी है तो मुकदमा करने का और एम्स आदि में जाकर क्लियरेंस का उत्तरदायित्व, और जब साथी छोड़कर चला जाए, यौन रोग हो जाएं तो उनके उपचार का दायित्व?
मानसिक रोगों के उपचार का उत्तरदायित्व एवं जब संबंधों में रहे और ऐसे समय में जो आर्थिक लेनदेन हुआ उसमें क्षति पूर्ण न होने पर उसे वापस लेने का उत्तरदायित्व और यह भी सनद रहे कि ऐसे अधिकाँश मामलों में पीड़ित महिला ही होती है, पुरुषों का अनुपात अभी भी बहुत कम है।
यह नहीं कहा जा सकता है कि लिव इन संबंधों का पंजीकरण सामाजिक परिवर्तनों को कैसे प्रभावित करेगा, परन्तु यदि इनका पंजीकरण होगा तो उत्तरदायित्व लेते समय जोड़े हर ऊंच-नीच पर बात करने के बाद ही आगे बढ़ेंगे और ऐसा होना महिला एवं पुरुष दोनों ही साथियों के लिए बेहतर होगा।
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