कश्मीर में बेशक आज पत्थरबाज शांत हैं। लेकिन 2004 से लेकर 2014 के बीच इन पत्थरबाजों का स्थानीय प्रशासन और लोगों में इतना खौफ था कि वे अपने मन के मुताबिक अधिकारियों के तबादले तक करवा देते थे, आम लोगों की तो बिसात ही क्या थी! लेकिन शायद अधिकांश देशवासियों को नहीं पता होगा कि तब भारत सरकार की एक परियोजना चलती थी पूर्व आईएएस अधिकारी हर्षमंदर की कमान में। यह परियोजना जिन इलाकों में चलती थी, अलगाववादी तत्व वहीं सबसे ज्य़ादा पत्थरबाजी करते थे। ‘बच्चों के कल्याण’ के नाम पर इस परियोजना को चलाने के लिए हर्षमंदर ने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक छात्र तनवीर अहमद डार को चुना था, यह वही डार है, जो जेके वेलफेयर सोसाइटी नाम का एक संगठन चलाता है। इस संगठन को केंद्र सरकार से पैसा जाता था और उस पैसे का इस्तेमाल वह पत्थरबाज तैयार करने के लिए कर रहा था।
यह सिर्फ पहला और आखिरी मामला नहीं था, जिसमें सेकुलर बिरादरी का चहेता वह पूर्व आईएएस अधिकारी हर्षमंदर सिविल सोसाइटी का चोला ओढ़कर देश के खिलाफ अभियान चला रहा था। हर्षमंदर ने दिल्ली के शाहीन बाग में सीएए और एनआरसी के विरोध के नाम पर चले इस्लामी आंदोलन में ना सिर्फ लोगों को भड़काया, बल्कि अपने एनजीओ के बालगृहों से बच्चों को भी इस आंदोलन में भेजा। इसकी जांच अभी चल ही रही थी कि एक एनजीओ, जो बच्चों के अधिकारों के लिए काम करता है, वह कैसे बच्चों को किसी विशेष आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए कैसे भेज रहा है, कि शाहीन बाग आंदोलन के दौरान एक नवजात की मौत के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसका संज्ञान लिया था और इस पर नोटिस जारी किया था।
देश में सिविल सोसाइटी के नाम पर चलने वाले सभी बड़े आंदोलनों में हर्षमंदर किसी ना किसी तौर पर शामिल रहा है। नर्मदा नदी पर बन रहे बांध को बनने देने से रोकने, कोयला खदानों को बंद कराने, पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर परियोजनाओं में बाधा डालने से लेकर सीएए विरोधी आंदोलन तक, लगभग सभी आंदोलनों में हर्षमंदर आंदोलनजीवियों में सबसे आगे रहता था। उसके साथ पूरा आंदोलनजीवी गुट मिलकर अलग अलग परियोजनाओं को रुकवाने का काम करता था।
इसी आईएएस अधिकारी हर्षमंदर की एनजीओ के बिहार में चल रहे एक बालगृह में बच्चों को यह पढ़ाया जा रहा था कि अगर वे एनआरसी और सीएए का विरोध नहीं करेंगे तो पुलिस उन्हें परेशान करेगी, उनको 12 अलग-अलग तरह के कागज दिखाने पड़ेंगे। खुद एनसीपीसीआर की टीम ने छापे के दौरान वहां के बच्चों की कापियों में यह सब लिखा पाया। इसको लेकर इस एनजीओ के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज की गई थी।
हर्षमंदर के एनजीओ किस तरह से अपनी ‘ताकत’ का खुलेआम इस्तेमाल करते थे, इसकी एक बानगी और देखिए। राजधानी दिल्ली में हर्षमंदर के दो एनजीओ हैं, इनमें से एक ‘उम्मीद अमन घर’ में एक छोटी बच्ची का बलात्कार हुआ था। बाद में उस बच्ची की मां ने अपने बच्ची को वापस ले जाना चाहा तो एनजीओ ने उसे ले जाने नहीं दिया। इस मामले पर हर्षमंदर ने पुलिस रिपोर्ट भी नहीं होने दी। ऐसे में पीड़िता बच्ची की मां एनसीपीसीआर में पहुंची तो भी हर्षमंदर और उसके एनजीओ को क्लिनचिट दे दी गई। हालत यह थी कि महिला को उच्च न्यायालय में याचिका लगाकर अपनी बच्ची हर्षमंदर के एनजीओ से किसी तरह निकाला।
लगातार मिलतीं शिकायतों के बाद जब हर्षमंदर और उससे जुड़े एनजीओ की जांच की गई तो एक सनसनीखेज खुलासा हुआ, जिससे देश की प्रमुख एजेंसियों की नींद उड़ गई। कभी सोनिया गांधी के प्रमुख सलाहकार और देश की नीतियां बनाने में हिस्सेदार रहा हर्षमंदर देश में 53 से ज्य़ादा बालगृह चला रहा है। इनसे करीब 10 हजार बच्चे जुड़े हुए हैं। इसके अलावा देश में सिविल सोसाइटी के नाम पर चलने वाले सभी बड़े आंदोलनों में हर्षमंदर किसी ना किसी तौर पर शामिल रहा है। नर्मदा नदी पर बन रहे बांध को बनने देने से रोकने, कोयला खदानों को बंद कराने, पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर परियोजनाओं में बाधा डालने से लेकर सीएए विरोधी आंदोलन तक, लगभग सभी आंदोलनों में हर्षमंदर आंदोलनजीवियों में सबसे आगे रहता था। उसके साथ पूरा आंदोलनजीवी गुट मिलकर अलग अलग परियोजनाओं को रुकवाने का काम करता था।
इस पूरे गुट को सबसे ज्य़ादा फंडिंग जॉर्ज सोरोस और फोर्ड फाउंडेशन से मिला करती थी। अधिकांश बार हर्षमंदर और उसका गुट उस फंडिंग को अपने एनजीओ गैंग में बांट दिया करते थे। इनके तार कई विदेशी एजेंसियों से भी अपरोक्ष तौर पर जुड़े हुए थे। रायगढ़ में इस आंदोलनजीवी गैंग के साथ काम करने वाले, एनजीओ चला रहे एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 2014 से पहले उन्हें कई अलग अलग एनजीओ से प्रोजेक्ट मिलते रहते थे, फेलोशिप भी मिला करती थी। इससे हम बहुत से लोगों को कामों में लगाया करते और समय-समय पर परियोजनाओं के विरुद्ध आंदोलन चलाया करते थे। लेकिन अब प्रोजेक्ट आने बिल्कुल बंद हो गए हैं।
‘हर्षमंदर जैसे व्यक्ति ने देश के बच्चों को देश के खिलाफ इस्तेमाल करने की कोशिश की है, एक तरह से वह हजारों बच्चों में देशविरोधी जहर रोपते रहे थे। उनके इस घृणित काम के लिए उनको सजा मिलनी ही चाहिए, हम पूरा प्रयास करेंगे’।
-प्रियंक कानूनगो, राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष
हर्षमंदर और उसके ठिकानों पर गत दिनों हुई सीबीआई की छापेमारी के बाद, इस आंदोलनजीवी गैंग के साथ जुड़े हुए करीब 250 से ज्य़ादा लोगों ने एक खुला पत्र लिखकर हर्षमंदर का समर्थन किया है। बड़ी बात यह है कि इनमें से ज्य़ादातर लोग या तो एनजीओ से जुड़े हुए हैं या इन एनजीओ के केस लड़ते हैं या फिर इस गैंग से फेलोशिप लिए हुए हैं। इन संगठनों को ज्य़ादातर फंडिंग फोर्ड फाउंडेशन से जुड़े हुए संगठनों से मिलती है। खुद हर्षमंदर भी नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया से जुड़े रहने दौरान बहुत से लोगों को फंड दिलवाया करते थे।
सीबीआई ने गत 2 फरवरी को जिस मामले में हर्षमंदर के ठिकानों पर छापेमारी की है, वह मामला कोरोना के दौरान विभिन्न जरियों से विदेशी फंड एकत्र कर उसे अवैध तरीके से अलग-अलग खातों में ट्रांसफर करने को लेकर है। इसके लिए हर्षमंदर के एनजीओ ने फर्जी बिल लगाए हैं। हर्षमंदर के एनजीओ ने कोरोना के समय लोगों की मदद के नाम पर करीब 2 करोड़ रुपये जुटाए थे। इनमें से 1.12 करोड़ रुपये का राशन बांटने की बात एनजीओ कहता है, लेकिन जांच में पता चला कि जो बिल हर्षमंदर के लोगों ने इस खर्चे को लेकर लगाए थे, वे फर्जी हैं।
हर्षमंदर के लोगों ने दिल्ली की बल्ली स्वीट नाम की एक दुकान से एक करोड़ रुपये का राशन खरीदा, जबकि वहां जांच करने पर पता चला कि उस दुकान की एक करोड़ रुपये का राशन बेचने की क्षमता ही नहीं है, बल्कि वह तो एक मिठाई की दुकान है। इसी तरह रोजाना बच्चों को दिए जाने वाले दूध और फल के बिल भी फर्जी पाए गए। यहां तक कि कुछ मामलों में जिस दुकान के बिल लगाए गए थे, उस दुकानदार ने पैसे वापस हर्षमंदर के लोगों के खातों में ट्रांसफर किए हुए हैं। इससे पहले भी विभिन्न एनजीओ पर विदेशों से पैसे लेकर उसे देश विरोधी हरकतों में और देश की महत्वपूर्ण परियोजनाओं में बाधा डालने में इस्तेमाल करने को लेकर आरोप लगते रहे हैं।
गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल करीब 20 हजार करोड़ रुपये की विदेशी फंडिंग इन एनजीओ को मिलती है। लेकिन 2014 में मोदी सरकार के आने से पहले, एनजीओ का ‘इकोसिस्टम’ बहुत मजबूत हो गया था। अमेरिका, यूरोप और चीन से बहुत सारी फंडिंग भारत में इन एनजीओ को मिल रही थी, बहुत से एनजीओ इस फंडिंग के हिसाब से देशविरोधी आंदोलन चलाते रहे हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण है, जिससे पता चलता है कि कैसे कुछ लोगों ने देश के विकास की द्ष्टि से महत्वपूर्ण इस परियोजना को लंबे समय तक रोका रखा था। इस पूरे तंत्र को हर्षमंदर अपने कुछ लोगों के साथ मिलकर चलाता था।
हर्षमंदर और उसके एनजीओ की जांच करने वाले राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने पाञ्चजन्य को बताया कि ‘हर्षमंदर जैसे व्यक्ति ने देश के बच्चों को देश के खिलाफ इस्तेमाल करने की कोशिश की है, एक तरह से वह हजारों बच्चों में देशविरोधी जहर रोपते रहे थे। उनके इस घृणित काम के लिए उनको सजा मिलनी ही चाहिए, हम पूरा प्रयास करेंगे’। अब हर्ष मंदर और उससे जुड़े एनजीओ की जांच प्रवर्तन निदेशालय, दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा और सीबीआई कर रही है। बहुत उम्मीद है कि जल्दी ही हर्षमंदर और उसके देशविरोधी संजाल की असलियत सामने आएगी और तथ्यों के आधार पर उसके अपराध साबित हो जाएंगे।
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