देश में हिंदू आस्था केंद्रों पर हमले, तोड़फोड़ और मस्जिद-मजारों के अवैध निर्माण को लेकर कट्टरपंथी मुस्लिमों का झूठ फिर साबित हुआ है। कानून की कसौटी पर मुस्लिम पक्ष को बागपत लाक्षागृह मामले में भी हार का मुंह देखना पड़ा है। 53 वर्ष के दौरान 5,000 तारीखों तक चली सुनवाई के बाद न्यायालय ने बरनावा (वारणावत), बागपत में महाभारतकालीन लाक्षागृह का स्वामित्व हिंदू पक्ष को सौंप दिया है।
अयोध्या और काशी के बाद बागपत से हिंदू आस्था की विजय का शुभ समाचार आया है। देश में हिंदू आस्था केंद्रों पर हमले, तोड़फोड़ और मस्जिद-मजारों के अवैध निर्माण को लेकर कट्टरपंथी मुस्लिमों का झूठ फिर साबित हुआ है। कानून की कसौटी पर मुस्लिम पक्ष को बागपत लाक्षागृह मामले में भी हार का मुंह देखना पड़ा है। 53 वर्ष के दौरान 5,000 तारीखों तक चली सुनवाई के बाद न्यायालय ने बरनावा (वारणावत), बागपत में महाभारतकालीन लाक्षागृह का स्वामित्व हिंदू पक्ष को सौंप दिया है।
1970 से जारी मुकदमे में जैसे ही सिविल न्यायाधीश शिवम द्विवेदी ने फैसला सुनाया तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश क्या, पूरे देश में सनातनी खुशी से झूम उठे। बता दें कि हिंदू आस्था केंद्रों पर अतिक्रमण के गहरे षड्यंत्र के साथ बरनावा के रहने वाले मुकीम खान ने खुद को वक्फ बोर्ड का पदाधिकारी बताते हुए लाक्षागृह मामले में केस दर्ज कराया था। इसके जवाब में एक स्थानीय गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज ने हिंदू समाज की ओर से मोर्चा संभाला और अकाट्य प्रमाणों के साथ मुकदमे में पैरवी शुरू की थी।
‘‘आधी सदी से भी अधिक समय तक चली सुनवाई में हिंदू और मुस्लिम पक्ष के 10 से अधिक पैरोकारों की मौत हो गई थी। कृष्णदत्त महाराज का स्वर्गवास हो गया। मुस्लिम पक्ष के पैरोकार मुकीम खान भी दुनिया छोड़ गए। अगस्त, 2023 के बाद से मुकदमे में तेजी से सुनवाई हो रही थी। सुनवाई के दौरान सात गवाह प्रस्तुत हुए। इनमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी की गवाही भी शामिल रही। सुनवाई के बाद न्यायाधीश ने मुस्लिम पक्ष के दावे को खारिज कर दिया। यह हिंदू पक्ष की बड़ी जीत है। जमीन लाक्षागृह की ही है।’’ – वकील रणबीर सिंह तोमर
मुस्लिम पक्ष ने लाक्षागृह की जमीन पर वक्फ बोर्ड का मालिकाना अधिकार बताया था, वहां शेख बदरुद्दीन की मजार और कब्रिस्तान होने की बात कही थी। शुरुआत में मुकदमा मेरठ के सरधना न्यायालय में चला और वहां से बागपत न्यायालय पहुंचा। बागपत के साथ ही मेरठ और मुजफ्फरनगर के लोग मुकदमे में गवाह बने थे। इसके बाद फैसले की घड़ी आई और हिंदू पक्ष को न्यायालय में ऐतिहासिक विजय प्राप्त हुई।
हिंदू पक्ष की ओर से पैरवी करने वाले वकील रणबीर सिंह तोमर ने बताया, ‘‘आधी सदी से भी अधिक समय तक चली सुनवाई में हिंदू और मुस्लिम पक्ष के 10 से अधिक पैरोकारों की मौत हो गई थी। कृष्णदत्त महाराज का स्वर्गवास हो गया। मुस्लिम पक्ष के पैरोकार मुकीम खान भी दुनिया छोड़ गए। अगस्त, 2023 के बाद से मुकदमे में तेजी से सुनवाई हो रही थी। सुनवाई के दौरान सात गवाह प्रस्तुत हुए। इनमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी की गवाही भी शामिल रही। सुनवाई के बाद न्यायाधीश ने मुस्लिम पक्ष के दावे को खारिज कर दिया। यह हिंदू पक्ष की बड़ी जीत है। जमीन लाक्षागृह की ही है।’’
सच तो यह है कि लाक्षागृह मामले में मुस्लिम पक्ष की हार से फिर यह बात साबित हो गई है कि मुगल आक्रमणकारियों ने हिंदू आस्था केंद्रों पर लगातार हमले किए थे और वहां अतिक्रमण कर मस्जिद-मजारें बनाने के गहरे षड्यंत्र किए। लाक्षागृह भूमि के स्वामित्व का अधिकार हिंदू पक्ष को मिलने पर संस्कृत महाविद्यालय, लाक्षागृह के सभी आचार्यों व ब्रह्मचारियों ने मिठाइयां बांटकर खुशियां मनाईं।
महाभारत काल से मिली पहचान
बरनावा स्थित यह वही भूमि है, जहां महाभारत काल में कौरवों ने लाक्षागृह बनाया था और पांडवों को इसी जगह पर जलाकर मारने का षड्यंत्र किया था। इसके लिए वारणावत (अब बरनावा) में पुरोचन नाम के शिल्पी से ज्वलनशील पदार्थ लाख और मोम आदि से भवन तैयार कराया गया था। कौरवों ने भवन में आग लगवा दी। पांडवों को इसकी सूचना पहले ही मिल गई थी और वे सभी सुरंग से होकर सुरक्षित बाहर निकल गए।
यह सुरंग हिंडन नदी के किनारे खुलती है और इसके अवशेष आज भी मिलते हैं। बरनावा को पहचान महाभारत में वर्णित वारणावत से ही मिली है। इस गांव के दक्षिण में लगभग 100 फीट ऊंचा और 30 एकड़ भूमि पर फैला हुआ विशाल टीला है, यह लाक्षागृह का पुरावशेष माना जाता है। टीले के नीचे एक गुफा स्थित है। माना जाता है कि पांडवों ने लाक्षागृह में आग से बचने के लिए इस टीले के नीचे स्थित सुरंग का प्रयोग किया था।
महाभारत काल के पुरावशेष
1952 में हस्तिनापुर में ए.एस.आई. के तत्कालीन महानिदेशक प्रो. देवीलाल के निर्देशन में उत्खनन कार्य हुआ था। उस दौरान प्राप्त हुए पुरावशेष अपने आप में दुर्लभ थे। यहां चित्रित धूसर मृद्भांड प्राप्त हुए थे। कार्बन डेटिंग से स्पष्ट हुआ कि ये मृद्भांड महाभारतकालीन थे। बरनावा लाक्षागृह की ऊपरी सतह पर उत्खनन से पहले किए गए प्रारंभिक सर्वेक्षण में भी यहां से चित्रित धूसर मृद्भांड मिले थे। इससे स्पष्ट होता है कि यहां प्राप्त होने वाले पुरावशेष भी 4500-5000 साल पुराने थे और यही समय महाभारत का रहा है। 10 जनवरी, 2018 को ए.एस.आई. द्वारा बड़े स्तर पर इस टीले पर उत्खनन शुरू किया गया था। तब पुरातत्वविदों को यहां से 5,000 साल पुरानी संस्कृति के पुरावशेष, मानव कंकाल, एक विशाल एवं सुदृढ़ महल की दीवारें और मानव बस्ती मिली थी।
‘उद्योग पर्व’ में लाक्षागृह का वर्णन
इतिहासकार डॉ. के.के. शर्मा बताते हैं कि महाभारत के ‘उद्योग पर्व’ में वारणावत लाक्षागृह का वर्णन है। भगवान श्रीकृष्ण जब महाभारत युद्ध से पहले संधि का प्रस्ताव लेकर दुर्योधन के पास हस्तिनापुर गए थे तो उन्होंने पांडवों के लिए पांच गांव मांगे थे। उनमें वारणावत (बरनावा) भी था। बरनावा गांव में हिंडन व कृष्णा नदी के संगम पर महाभारतकालीन लाक्षागृह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। ए.एस.आई. की ओर से यहां संरक्षित क्षेत्र की चारदीवारी का निर्माण करा अवशेष को नक्काशीदार पत्थर लगाकर संवारा गया है। जीर्णोद्धार का कार्य भी हो चुका है। यहां हर साल लाखों पर्यटक पहुंचते हैं। उत्तर प्रदेश का पर्यटन एवं संस्कृति विभाग लाक्षागृह को महाभारत सर्किट योजना से जोड़कर इसका सौंदर्यीकरण करा चुका है। इसमें सुरंगों का सौन्दर्यीकरण, सभा कक्ष, पर्यटकों के लिए शेड, फुटपाथ, सीढ़ियां आदि शामिल हैं।
न्यायालय का निर्णय आने के बाद लाक्षागृह की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। आशा है कि जल्दी ही यह स्थल एक बार फिर से अपनी प्राचीन पहचान को प्राप्त करेगा।
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