सबके संवैधानिक अधिकार बने रहेंगे, इसमें कोई संशय नहीं – पुष्कर सिंह धामी

Published by
दिनेश मानसेरा

आठ फरवरी का दिन उत्तराखंड के इतिहास में अभूतपूर्व दिन के रूप में जाना जाएगा। यहां समान नागरिक संहिता विधेयक पारित हुआ है और जल्दी ही एक ऐसा कानून बनने जा रहा है, जो सभी नागरिकों के लिए समाज जीवन के सभी आयामों पर समान अधिकारों की बात करेगा। समान नागरिक संहिता को केंद्र में रखते हुए राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पाञ्चजन्य के ब्यूरो प्रमुख दिनेश मानसेरा से विशेष बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:- 

समान नागरिक संहिता विधेयक पारित हुआ है। राज्य सरकार द्वारा उठाए गए इस ऐतिहासिक कदम पर आपका क्या कहना है?
यह भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय संकल्प है। उससे पहले भारतीय जनसंघ के एजेंडे में भी समान नागरिक कानून पर दृढ़ मत रहा है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने देश में सबसे पहले एक राष्ट्र एक कानून का मंत्र दिया था। उनका बलिदान ही कश्मीर में दो विधान को समाप्त करने के लिए हुआ था। उनका यह भी कहना था कि देश के हर नागरिक के लिए एक ही कानून होना चाहिए। भारतरत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी भी समान नागरिक संहिता पर मुखर रहे। संसद का इतिहास देखेंगे तो वहां भी संविधान निर्माताओं ने समान नागरिक संहिता की पैरवी की है। देश में कांग्रेस की सरकारों ने मत-पंथ और जाति के आधार पर अलग-अलग कानून बनाए। वोट की राजनीति करके लगातार अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण किया। हालात ये हो गए थे कि उत्तराखंड की मुस्लिम महिला सायरा बानो को तीन तलाक पर अपनी लड़ाई सर्वोच्च न्यायालय में लंबे समय तक लड़नी पड़ी। ऐसे कई विषय सामने आने से सर्वोच्च न्यायालय को भी भारत सरकार से, राज्य की सरकारों से यह कहना पड़ा कि समान नागरिक संहिता को आप लागू कर सकते हैं। उत्तराखंड सरकार ने उसी दिशा में कदम बढ़ाया है। ऐसे में इस संकल्प को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह के मार्गदर्शन में हमारी सरकार ने पूरा किया है।

इसे लागू करने के विचार पर किस प्रकार की तैयारी की?
पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के सामने मैंने यह विचार रखा कि हम उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता बिल लेकर आना चाहते हैं। इसके बाद इस विषय पर गहन चिंतन-मंथन किया गया। पार्टी से इसके लिए स्वीकृति मिली, क्योंकि यह विषय राष्ट्रीय संकल्प का भी हिस्सा है। उत्तराखंड राज्य में इसे लागू करना है, इसका स्वरूप कैसा होगा आदि विषयों पर विधिक राय ली। इसके बाद हमने कहा कि राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार वापस आते ही हम समान नागरिक संहिता लागू करेंगे। उत्तराखंड की देवतुल्य जनता ने हमें समान नागरिक संहिता पर जनादेश दिया और हमने पहली कैबिनेट बैठक में पहला निर्णय इस कानून को लागू करने का लिया। पूर्व जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में समान नागरिक संहिता का खाका तैयार करने के लिए समिति का गठन किया। उसी समिति द्वारा सुझाए गए बिंदुओं पर पूरा मसौदा तैयार किया गया।

इस कानून से महिलाओं के अधिकारों को मजूबती मिलेगी। बहु विवाह प्रथा पर रोक लगेगी। महिलाओं को भी अपने माता-पिता की चल-अचल संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलेगा। विवाह विच्छेद, हर मत-पंथ के लिए प्रतिबंधित होगा और इसमें न्यायिक व्यवस्था से तलाक दिया जा सकेगा। मुस्लिमों में तीन तलाक मान्य नहीं होगा।

राज्य में यह कानून के रूप में कब तक लागू हो जाएगा? 
देखिए, विधानसभा ने पास कर दिया है। अब राज्यपाल से होते हुए यह राष्ट्रपति के पास जाएगा। जब वहां से इसे स्वीकृति मिल जाएगी, तब गजट नोटिफिकेशन होगा। मैं मानता हूं कि बहुत जल्द यह कानून का रूप ले लेगा। मुझे विश्वास है कि एक माह में हम इसे लागू कर देंगे।
अब समान नागरिक संहिता विधेयक पारित होकर कानून बनने जा रहा है तो आप इसे किस रूप में देखते हैं?
एक पंक्ति में कहूं तो ‘‘राम राज्य आ रहा है।’’ इसमें एक बात और जोड़ देता हूं कि जब प्रधानमंत्री मोदी जी ने अयोध्या में प्रभु श्रीरामलला को विराजमान करने के बाद यह कहा कि ‘‘हमारे राम आ गए हैं’’ तो ऐसा लगा कि देश में सच में राम राज्य लौट रहा है। मैं कहना चाहता हूं कि समान नागरिक संहिता कानून भी रामराज्य की परिकल्पना को साकार स्वरूप प्रदान करेगा। देवभूमि उत्तराखंड में रहने वाली देवतुल्य जनता के लिए एक समान।  नागरिक कानून होगा और यही तो राम राज्य है। इसमें सबके अधिकार सुरक्षित किए जा रहे हैं, खासतौर पर महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों के अधिकारों को संरक्षण मिलेगा। चाहें वे किसी भी मत-पंथ जाति के क्यों न हों।

इस विधेयक को लेकर कुछ लोगों में संंशय बना हुआ है। उनको आप क्या कहेंगे?
जिन जनजातियों के 342 एक्ट के तहत संवैधानिक अधिकार हैं, उनमें कोई बदलाव नहीं करेंगे। रहा सवाल मुस्लिम समाज का तो बताना चाहूंगा कि दुनिया के कई इस्लामिक राष्ट्रों में जैसे-इंडोनेशिया, तुर्की आदि में भी कॉमन सिविल कोड व्यवस्था लागू है। वहां भी लड़कियों के निकाह की उम्र को लेकर प्रावधान किए गए हैं। मैं स्पष्ट बताना चाहता हूं कि समान नागरिक संहिता से तीन तलाक, हलाला जैसी कुरीतियों से मुस्लिम महिलाओं को छुटकारा मिलता है। इस पर सर्वोच्च न्यायालय भी फैसला दे चुका है। हम निकाह, आनंद कारज या विवाह संस्कारों में कोई बदलाव नहीं कर रहे हैं। अब संविधान के अनुसार हर विवाह का पंजीकरण वैसे भी जरूरी था, आगे भी रहेगा।

यह कानून खासकर महिला अधिकारों को कैसे सुरक्षित करेगा? 
इस कानून से महिलाओं के अधिकारों को निश्चित रूप से मजूबती मिलेगी। बहु विवाह प्रथा पर रोक लगेगी। महिलाओं को भी अपने माता-पिता की चल-अचल संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलेगा। विवाह विच्छेद, हर मत-पंथ के लिए प्रतिबंधित होगा और इसमें न्यायिक व्यवस्था से ही तलाक दिया जा सकेगा। मुस्लिमों में तीन तलाक मान्य नहीं होगा। उन्हे भी कोर्ट से ही तलाक मिलेगा और ये तो अब सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय भी है। इससे मुस्लिम महिलाओं के उत्पीड़न के मामले भी कम होंगे। ऐसे कई प्रावधान समान नागरिक संहिता में हैं, जिससे महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार दिए जाएंगे।

‘लिव इन रिलेशन’ के विषय को भी आपने इस विधेयक में छुआ है। इस विषय पर समान नागरिक संहिता में क्या प्रावधान है?
भारतीय संस्कृति में लिव इन रिलेशन, समाज के लिए एक बुराई ही मानी गई है। फिर भी इस पर सर्वोच्च न्यायालय से फैसले आए हंै। समान नागरिक संहिता यह कहती है कि दो वयस्क यानी एक महिला और एक पुरुष, एक साथ रह सकते हैं, किंतु इसके लिए पंजीकरण अनिवार्य होगा और इसकी सूचना दोनों के अभिभावकों को दी जाएगी। इनसे कोई बच्चा होता है तो उसके अधिकार भी सुरक्षित किए गए हैं। मेरे विचार से यह गलत भी नहीं है। इसमें पुरुष, महिला, बच्चे सभी के अधिकारों को सुरक्षा मिलती है।

Share
Leave a Comment