14 फरवरी 1981 फूलन देवी ने नरसंहार किया था, जिसे बेहमई काण्ड के नाम से जाना जाता है। आज बुधवार को न्यायालय से उसी तारीख 14 फरवरी 1981 को निर्णय आया। बेहमई नरसंहार के मुकदमे का फैसला 43 साल बाद आज बुधवार को एंटी डकैती कोर्ट के विशेष न्यायाधीश ने सुनाया। अभियुक्त श्याम बाबू को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और इस मुकदमे के एक अन्य अभियुक्त विश्वनाथ को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया।
न्याय की लड़ाई करीब 43 वर्ष तक चली। इन घटना की मुख्य अभियुक्त फूलन जेल से जमानत पर बाहर आई थी और लोकसभा का चुनाव जीत कर सांसद निर्वाचित हुई। मुख्य अभियुक्त फूलन देवी की 25 जुलाई वर्ष 2001 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस लंबी न्यायिक कार्यवाही के दौरान कई अभियुक्तों और गवाहों की मृत्यु हो चुकी है। यही नहीं मुकदमे का अंतिम फैसला सुनने से पहले वादी का भी स्वर्गवास हो चुका है। इस घटना के तीन अभियुक्त आज ही फरार हैं। उन तीनों अभियुक्तों को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी।
उल्लेखनीय है कि बेहमई गांव में 14 फरवरी 1981 को फूलन देवी ने सामूहिक नरसंहार की घटना को अंजाम दिया था। इस घटना में एक ही बिरादरी के 22 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी और 6 लोग घायल हुए थे। इस घटना के बाद बेहमई गांव में इस कदर दहशत थी कि कोई भी एफआईआर लिखाने को तैयार नहीं हो रहा था। काफी प्रयास के बाद उस गांव के रहने वाले राजाराम ने एफआईआर दर्ज कराई थी। फैसले की बाट जोहते राजाराम की भी मृत्यु हो चुकी है।
24 नवंबर 1982 तक इस मुकदमे के 15 अभियुक्तों की गिरफ्तारी हुई थी। इन अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी। मुकदमे की कार्यवाही इतनी लंबी चली कि इस दौरान कुछ अभियुक्तों की मौत हो गई और कुछ जमानत पाने के बाद फरार हो गए। वर्ष 2007 में अभियुक्त राम सिंह, रतीराम, भीखा एवं बाबूराम के खिलाफ आरोप तय किए गए थे। अभियोजन पक्ष ने वर्ष 2015 तक कुल 15 गवाह पेश किए थे। वर्तमान समय में श्याम बाबू और विश्वनाथ ही जीवित बचे हैं। आज न्यायालय ने श्याम बाबू को उम्र कैद की सजा सुनाई और घटना के समय नाबालिग रहे विश्वनाथ को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया।
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