हल्द्वानी । बनभूलपुरा क्षेत्र में कट्टरपंथी दंगाइयों का उपद्रव कोई अप्रत्याशित घटना नहीं थी। इसके लिए दंगाइयों ने बहुत पहले से तैयारी की हुई थी, जब से यहां की ढोलक बस्ती, गफूर बस्ती, नई बस्ती में रेलवे, वन विभाग और राजस्व की जमीनों पर अतिक्रमण किए जाने का मामला सुर्खियो में आया है तब से ये आशंका जाहिर की जा रही थी कि एक न एक दिन ऐसा होगा।
ऐसा हुआ भी, जिस दिन प्रशासन और नगर निगम की टीम बनभूलपुरा क्षेत्र में सरकारी जमीन पर बने कथित मदरसे को हटाने पहुंची और उसके विरोध के नाम पर इस्लामिक कट्टरपंथियों ने जो उत्पात मचाया वह पूरे देश ने देखा। इस्लामिक दंगाइयों ने इस हमले की तैयारी पहले से ही कर रखी थी उन्होंने प्रशासन, नगर निगम और पत्रकारों को चारों तरफ से घेरकर हमला किया जिसके बाद कईयों की हालत गंभीर हो गई।
इस घटना का मास्टरमाइंड हाजी अब्दुल मालिक अभी तक फरार है पुलिस लगातार उसकी तलाश में दबिशें दे रही हैं. अब्दुल मालिक का अपराधों से पुराना नाता है. इससे पहले अब्दुल मलिक पूर्व में भी मर्डर और NSA में जेल जा चुका है। उस समय गिरफ्तारी के वक़्त भी इस्लामिक भीड़ ने खूब बवाल कटा था. कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया था. पुलिस पर पथराव भी किया गया था। जिसमे कई पुलिस वाले घायल हुए थे। लेकिन अब 26 साल बाद फिर वही अराजकता पूरी तैयारी की साथ पहले से ज्यादा आक्रमक होकर दोहराई गई है।
बता दें सपा नेता अब्दुल मतीन सिद्दीकी के छोटे भाई रुऊफ सिद्दीकी राजनीति में बड़ी तेजी के साथ उभर रहा था। जुझारू और मिलनसार स्वभाव की वजह से रुऊफ सिद्दीकी ने कम समय में ही अपनी पहचान बना ली थी। उस समय उसके पास समाजवादी युवजन सभा के जिलाध्यक्ष का पद था. लेकिन रुऊफ सिद्दीकी की बढ़ती लोकप्रियता ही उसकी दुश्मन बन गई जिसके चलते वह प्रतिद्वंदियों को खटकने लगा था।
लखनऊ जाते वक्त रुऊफ का मर्डर
वर्ष 1998 में 19 मार्च को अब्दुल रुऊफ सिद्दीकी अपने साथी चन्द्र मोहन सिंह और त्रिलोक बनौली के साथ कार से लखनऊ जा रहा था। रास्ते में बरेली के भोजीपुरा थाना क्षेत्र में किसी बड़े वाहन ने उसकी गाड़ी को टक्कर मार दी, टक्कर लगने से कार पलट गई और भाड़े के शूटर्स ने रुऊफ पर निशाना साधते हुए ताबड़तोड़ फायरिंग की थी। जिसमें रुऊफ सिद्दीकी की तो मौके पर ही मौत हो गई थी, जबकि चन्द्रमोहन सिंह और त्रिलोक बनौली घायल हो गए थे।
रुऊफ सिद्दीकी हत्याकांड में नामजद आरोपी था अब्दुल मलिक
रुऊफ सिद्दीकी हत्याकांड की रिपोर्ट भोजीपुरा थाने में दर्ज कराई गई थी। जिसमें अब्दुल मलिक समेत सात लोगों को नामजद कराया गया था। घटना के विरोध स्वरूप हल्द्वानी में कई दिनों तक बाजार बंद हुआ था। मामले में बरेली और हल्द्वानी पुलिस नामजद आरोपियों की धरपकड़ को संयुक्त रूप से दबिश दे रही थी, लेकिन सभी आरोपी भूमिगत हो गए थे।
गिरफ्तारी से बचने को करा दी सीबीसीआईडी जाँच
उस समय अपने ऊपर पुलिस का शिकंजा कसता देख अब्दुल मलिक ने सत्ता में ऊंची पहुंच के चलते मामले की जाँच पुलिस से सीबीसीआईडी को ट्रांसफर करा दी थी। सीबीसीआईडी जाँच के आदेश के बाद अब्दुल मलिक और अन्य नामजद आरोपी भी भूमिगत से बाहर आकर हल्द्वानी आ गए।
एसएसपी ने की कार्रवाई
इस घटना के समय उस वक्त नैनीताल के एसएसपी नासिर कमाल थे। घटना के कुछ दिनों बाद ही ईद थी। ईद पर नमाज के बाद ईदगाह में एसएसपी नासिर कमाल और अब्दुल मलिक का आमना सामना हो गया। नासिर कमाल को ये बहुत नागवार गुजरा और उन्होंने कार्रवाई करने की ठान ली।
एसएसपी नासिर कमाल ईदगाह से लौटते ही अब्दुल मलिक को गिरफ्तार करने की रणनीति में जुट गए। रुऊफ मर्डर केस सीबीआईडी के पास जाने से उसमे गिरफ्तारी नहीं हो सकती थी। तब दूसरा रास्ता अपनाया गया और एक पुराने मामले में गिरफ्तारी वारंट ले लिए गए। गिरफ्तारी की जिम्मेदारी सौपी गई बनभूलपुरा चौकी इंचार्ज योगेश दीक्षित को। लम्बी चौड़ी पर्सनालिटी वाले योगेश दीक्षित बेहद कर्मठ और ईमानदार पुलिस अफसर थे।
फिल्मी अंदाज में हुई मलिक की गिरफ्तारी
ईद के अगले दिन शाम को बनभूलपुरा चौकी इंचार्ज दलबल समेत अब्दुल मलिक के घर पहुंच गए। सीबीसीआईडी जाँच के आदेश के बाद अब्दुल मलिक बेफिक्र थे और लाइन नंबर आठ आजादनगर में अपने घर पर ही थे। योगेश दीक्षित ने गिरफ्तारी वारंट दिखाया तो वह अवाक रह गए। इसके बाद योगेश दीक्षित अब्दुल मलिक को लेकर खुद ही जिप्सी से चल दिए।
मुस्लिम समर्थकों ने जमकर मचाया उपद्रव
वहीं जैसे ही मलिक के घर पुलिस पहुंचने की जानकारी मलिक के समुदाय के लोगों को हुई सब इकठ्ठा होना शुरू हो गए और गिरफ्तारी का विरोध जताते हुए लाइन नंबर आठ के ज्यादातर लोग सड़क पर आ गए।
फिर क्या था देखते ही देखते पुलिस के विरोध में नारेबाजी होने लगी और ये नारेबाजी जैसे ही मजहबी नारों में बड़ी उसके बाद तो पुलिस टीम पर पथराव होना शुरू हो गया. पुलिस टीम भाग ना पाए इसलिए सड़कों पर ठेले, दुकानों की बेंच, लकड़ी के मोटे मोटे गट्टे इत्यादि डाल कार अवरोध पैदा कर दिया गया। लेकिन चुँकि इंचार्ज दीक्षित इन सबसे जूझते हुए मलिक को लेकर कोतवाली पहुंच गए। हालांकि इस दौरान उनकी जिप्सी बुरी तरह डैमेज हुई थी, उसमें पत्थर भर गए थे।
कई वाहनों में लगा दी गई आग
इधर अब्दुल मलिक के समर्थकों ने घंटों बवाल किया, सड़कों पर आ-आ कर खुलेआम पत्थरबाजी की कई वाहनों को आग लगा दी गई और सार्वजानिक संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचाया। कट्टरपंथियों के इस उपद्रव में तत्कालीन एसपी सिटी पुष्कर सैलाल समेत कई पुलिसकर्मी गंभीर चोटिल हुए और कई वाहन भी क्षतिग्रस्त हुए थे।
गवर्नर के साथ पहुंचा था लखनऊ
अब्दुल मलिक की सत्ता में ऊपर तक का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उस समय हरियाणा के सूरजभान को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बनाया गया था। लेकिन जब वह राज्यपाल बन्ने के बाद पहली बार उत्तर प्रदेश पहुंचे तो उनके साथ सरकारी हैलीकॉप्टर में अब्दुल मलिक भी मौजूद था।
अमौसी हवाई अड्डे पर तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह जी ने नए राज्यपाल कि अगवानी की थी। इसी दौरान राज्यपाल के साथ अब्दुल मलिक की तस्वीरें भी अखबारों में छप गईं थीं। राज्यपाल और मुख्यमंत्री के साथ हत्यारोपी कि तस्वीर को अख़बार में देखकर शासन प्रशासन में हड़कंप मंच गया। जिसके बाद शासन ने तत्काल इसका संज्ञान लेते हुए सीबीसीआईडी जाँच का आदेश निरस्त कर दिया था।
देखिए अब्दुल मलिक का अपराधिक इतिहास
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