आडवाणी जी को भारतरत्न से सम्मानित करने का कार्य निर्मल, धवल मन का कार्य है। बड़े हैं, बड़ा मानना ही चाहिए, अंतत: यही भाव संगठन को बांधे रखता है।
जैसे कमल दल पर सुबह की ओस, जैसे सरयू में स्नान कर पूजा को जाते साधु, जैसे हिमालय की नीरवता में गूंजता मंदिर का शंखनाद, कुछ वैसे ही शुद्ध मन से नरेंद्र भाई मोदी ने आडवाणी जी को भारतरत्न से सम्मानित किया। आडवाणी जी को भारतरत्न से सम्मानित करने का कार्य निर्मल, धवल मन का कार्य है। बड़े हैं, बड़ा मानना ही चाहिए, अंतत: यही भाव संगठन को बांधे रखता है। नरेंद्र भाई इस क्षण को जीकर वास्तव में हिमालय की ऊंचाई को भी छोटा कर गए। धन्यवाद। मुझे सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा का क्षण-प्रतिक्षण याद है। प्रात:कालीन पूजा, यज्ञ, और रथ पर सवार लाल जी।
हम तो उनको सदैव दादा ही कहते रहे। उस रथ में हम तीन-नरेंद्र भाई, प्रमोद महाजन (संयोजक) और मैं पाञ्चजन्य के संपादक के नाते थे। और हम सबके हितैषी मित्र, आडवाणी जी के दाहिने हाथ-निजी सहायक दीपक चोपड़ा। हम सबको स्नेहिल सूत्र में बांधे रखा प्रतिभा जी ने, जो दादा की हर क्षण चिंता, जल, भोजन आदि ही नहीं, थकान के क्षणों में विनोद के साथ विश्रांति का भी उपाय करती थीं। मुझे याद है, (और इसको पाञ्चजन्य में छापा भी था) मैंने आडवाणी जी से अगले दिन कहा था- अब आप एक दूसरे आडवाणी के रूप में अवतरित हो रहे हैं- बुद्धिजीवी, बौद्धिक वर्ग में प्रिय, पुस्तक पठन-पाठन और लेखन से कहीं अलग जन नेता, अपार जनप्रिय नेता। वे सिर्फ मुस्कुराए भर थे। और हर मील पर यह बात सत्य सिद्ध होती दिखी थी।
लालकृष्ण आडवाणी को भारतरत्न मिलना वास्तव में सम्मान का ही सम्मान है। दो से शिखर तक ले जाने वाले भाजपा के रामभक्त सेनानी नेता आडवाणी ने राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को स्थापित किया, जब उसके बारे में कहा जाता था कि यह तो ए.के. हंगल जैसे ‘साइड करैक्टर’ की तरह हो सकती है, मुख्यधारा में तो कांग्रेस और सेकुलर दल रहेंगे। आडवाणी उस समय देश के सार्वजनिक संवाद की दिशा और धारा बदलने में सफल हुए जब हिंदुओं पर हमला बोलना, उनकी आस्था की आलोचना करना ही सेकुलरवाद समझा जाता था। किसी ने उनसे पहले छद्म सेकुलरवाद की चर्चा प्रारंभ करने का साहस नहीं दिखाया था। उन्होंने विश्वास पैदा किया कि हिंदुत्व पर आधारित राजनीतिक दल देश में सबके साथ समन्वय कर सकता है। जब प्रधानमंत्री पद के लिए उनके नाम की उम्मीदवारी स्वाभाविक मानी जाती थी, तो उन्होंने भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अटल जी को प्रधानमंत्री पद हेतु घोषित कर सबको अचंभित कर दिया था।
उनके जीवन की सबसे बड़ी यात्रा सोमनाथ से अयोध्या की यात्रा रही। जहां उनकी रथ यात्रा के पहुंचने का समय रात्रि नौ बजे होता था, मार्ग में अत्यधिक उत्साह और भीड़ के कारण इतनी देरी होती थी कि वे देर रात्रि यानी अगले दिन की सुबह एक बजे पहुंच पाते थे, फिर भी हजारों लोग उनको सुनने के लिए जमे रहते थे। उनके रथ की पूजा होती थी, उनके टोयोटा रथ के टायरों की पूजा होती थी, उनको हिंदू पुनर्जागरण का अग्रदूत माना जाता था।
आडवाणी जी सहृदय और सदैव कार्यकर्ताओं के स्नेही रहे। जब-जब नरेंद्र भाई मोदी के लिए संगठन में संकट आया, उन्होंने अटल जी के सामने आग्रहपूर्वक उनका साथ दिया। नरेंद्र भाई ने भी आडवाणी जी के प्रति अपना आदर भाव सदैव बनाए रखा है। उनके साथ लंबे समय तक अंतरंग कार्य करते हुए उनके शालीन, शांत, कभी न उग्र होने वाले स्वभाव से मैं सुपरिचित हूं। उन्होंने सिंधु दर्शन कार्यक्रम के लिए पूरा सहयोग और आशीर्वाद दिया जिससे लद्दाख की रक्षा हो सकी और वहां के आर्थिक विकास के लिए असाधारण सहायता मिली।
वे शाकाहारी हैं, बहुत कम खाते हैं, और चॉकलेट के प्रिय हैं।
हास्य-विनोद, चुटकुले, और ऐसे जो सिंधियों पर भी हों, उनसे बहुत सुने और बहुत हंसे हैं हम। उनका भाषा सौष्ठव ऐसा है कि साक्षात्कार के उपरांत बहुत कम संपादन की आवश्यकता होती थी। उनको सबसे बड़ा धक्का तब लगा जब उनकी सहधर्मिणी कमला जी नहीं रहीं। कमला जी ने कभी किसी पत्रकार को साक्षात्कार नहीं दिया, केवल रथयात्रा के समय पाञ्चजन्य में उनका साक्षात्कार, उनसे बातचीत पर आधारित छपा था, जिसमें उन्होंने कहा था ‘आडवाणी मेरे राम हैं।’ वे बहुत लंबे समय तक हवाई जहाज में यात्रा नहीं कर पाती थीं, इसको ‘एयरो फोबिया’ कहते हैं। आडवाणी जी को जब भी गांधीनगर या अन्य स्थानों पर उनके साथ जाना होता था तो वे रेल में ही उनको साथ लेकर जाते थे, वायुयान छोड़ देते थे।
राजनीति में अपने सिद्धांतों पर अटल रहते हुए घनघोर शत्रु-भाव वाले दलों से भी उनका संवाद कायम रहता था। मार्क्सवादी ई. एम. एस. नम्बूदिरीपाद के देहांत पर उनकी अंत्येष्टि में भी वे शामिल हुए थे। बहुत लोगों को यह अच्छा नहीं लगा था, लेकिन वे मानते थे कि विरोध मृत्यु के बाद निरर्थक है। आडवाणी जी भारतीय राजनीति में अकेले ऐसे नेता रहे, जो विभाजन के कारण भारत आए और स्वदेश की राजनीति ही बदल दी, नया कलेवर दिया, नई प्रखर हिंदुत्व की दिशा दी। राम जन्मभूमि आंदोलन के साक्षी रथयात्रा का काल समझते हैं। उस काल का आज पुन:स्मरण भी कठिन होगा।
नई तकनीक, नई प्रौद्योगिकी, नए इलेक्ट्रॉनिक उपकरण उनको सदैव प्रिय रहे। जब इलेक्ट्रॉनिक डायरी-नोटबुक केवल खबरों में थी तो उन्होंने उसका प्रयोग प्रारंभ कर दिया था। कम्प्यूटर के विरुद्ध अनेक स्वर और कठोर स्वर होते हुए भी उन्होंने सर्वप्रथम पाञ्चजन्य में कम्प्यूटर प्रारम्भ करवाए और बाद में देश में उसका अनुकरण हुआ। पाञ्चजन्य रंगीन हो, पत्रिका आकार में छपे इसके लिए बहुत चर्चाएं चलीं, मंथन हुआ, पर अंतत: पूज्य रज्जू भैया के साथ बैठक में आडवाणी जी भी झंडेवाला आए और निर्णय हुआ, परिवर्तन करना ही चाहिए।
अनेक प्रसंग हैं, कोई पक्ष अछूता नहीं रहा हमारी आंखों से। आज तो इतना ही कहना होगा, सरयू के बेटे ने सरयू के आराधक को भारतरत्न प्रदान कर राष्ट्र अभ्यर्थना के कार्य को आगे ही बढ़ाया है।
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