हल्द्वानी । बनभूलपुरा क्षेत्र में कट्टरपंथी दंगाइयों ने जो उपद्रव किया वह कोई अप्रत्याशित घटना नहीं थी। दंगाइयों ने इसकी बहुत पहले से तैयारी की हुई थी। टीम पांचजन्य इस समय हल्द्वानी में ही मौजूद है। पीड़ितों और स्थानीय नागरिकों से बात करके टीम पांचजन्य हल्द्वानी हिंसा से जुड़े हर सच को आपके सामने लाने का प्रयास कर रही है।
इसी क्रम में टीम पांचजन्य ने स्थानीय पत्रकार अतुल अग्रवाल से बात की जो घटना के समय प्रशासन और नगर निगम की कार्रवाई को कवरेज करने गए हुए थे। पत्रकार अतुल अग्रवाल ने बातचीत के दौरान कई हैरान कर देने वाले खुलासे किए।
हेलमेट ने बचाई जान
पत्रकार अतुल अग्रवाल ने इस पूरे घटनाक्रम पर बात करते हुए कहा- ये मामला पूरा का पूरा शासन प्रशासन का था। हम तो एक पत्रकार होने के नाते स्थिति का जायजा लेने गये थे। लेकिन वहां के उपद्रवियों ने ऐसा तांडव मचाया कि यदि मैं हेलमेट नहीं पहना होता तो आज मेरा सिर खुला हुआ होता और शायद मैं जिंदा भी ना होता। हेलमेट की वजह से मेरा सिर तो बच गया लेकिन लगातार ईंट, पत्थरों की बरसात में सिर को छोड़कर मेरा पूरा शरीर चोटिल हो गया। जगह जगह अंदरूनी चोट लगीं है। मेरा हाथ भी सही से काम नहीं कर रहा है।
नाम पूछकर कर हिंदू पत्रकारों को बनाया जा रहा था निशाना
पत्रकार अतुल अग्रवाल ने एक हैरान करने वाला खुलासा करते हुए बताया कि हम लोग वहां से किसी तरह से अपनी जान बचाकर कैसे भागे हैं, उसको शब्दों में बयां नहीं कर सकते। दंगे भीड़ पर इस कदर हैवानियत हावी थी की वह जिन पत्रकारों को पकड़ कर उनका नाम पूछते थे और अगर पत्रकार हिंदू होता तो उसे दौड़ा-दौड़ा ईंट, पत्थरों से मार रहे थे. दंगाई जिस हिसाब से लगातार पत्थरों की बरसात कर रहे थे ऐसा लग रहा था कि उनका मकसद बन गया हो कि सभी गैर मुस्लिम को मार दो।
हिन्दू पत्रकारों को छोड़कर किसी अन्य समुदाय के लोगों को खरोंच तक नहीं आयी है। आज हल्द्वानी के सभी अस्पतालों में हिन्दू पत्रकार ही घायल अवस्था में मिलेंगे। वो लोग नाम पूछ पूछ कर एवं आईकार्ड देखकर आक्रमण कर रहे थे। जो हिन्दू पत्रकार थे उनको सीधा जान से मारने जैसा दुव्र्यवहार किया जा रहा था। हमलोगों के साथ बहुत बड़ी क्रुरता की गई। मुस्लिम युवा वहां पर लगातार पथराव कर रहे थे। हमारे हिन्दू पत्रकार काफी संख्या में घायल हुए हैं।
रेलवे की जमीन प्रकरण में उठाया था इनका मुद्दा
पत्रकार अतुल अग्रवाल ने बताया कि पिछले साल जब रेलवे की जमीन के कब्जे का प्रकरण आया था तो हम स्थानीय पत्रकारों ने उस समय यहां के मुसलमानों का साथ दिया था हम इनके साथ खड़े थे कि ये अपने बड़े बुजुर्गों के साथ यहां से कहां जाएंगे, ये बेघर हो जाएंगे…सरकार गलत कर रही है…सरकार को पहले इनको पुर्नवास करना चाहिए…तब इनको हटाना चाहिए।
जरुरत के समय दे दिया धोखा
अतुल अग्रवाल ने बताया कि जब इनको जरुरत थी तो इनको मजबूर और लाचार समझकर हम इनके साथ खड़े थे तब आज मेरे साथ ये खड़े क्यों नहीं हुए? आज हमे इसी बात की सबसे ज्यादा पीड़ा है।
वहां पर पत्थर ऐसे आ रहे थे जैसे आंधी के बाद ओलों की बरसात आती है और पता नहीं चलता कि पानी कहां से आ रहा है, ओले किधर से गिर रहे है। वो तो ईश्वर की कृपा सीधी थी हम पर या हमने अच्छे कर्म किये होंगे जिसके कारण आज जिंदा बच गये।
आज तक नहीं देखा ऐसा मंजर
मेरी उम्र 60 वर्ष की है, मैं हल्द्वानी में ही पला बढ़ा और शुरू से यहीं पर रहा। मैंने आज तक ऐसी स्थिति कभी नहीं देखा था जो इस बार देखने को मिला है कि मुस्लिम समुदाय द्वारा चौथे स्तंभ पर इतना बड़ा हमला हुआ है।
AC कमरों से नहीं हल्द्वानी आकर देखें सच्चाई
पत्रकार अतुल अग्रवाल ने दिल्ली के कुछ कथित पत्रकारों को आईना दिखाते हुए कहा कि आप सोचिए देश के चौथे स्तंभ पर इतनी बड़ा हमला होगा तो इनसे आप क्या उम्मीद रखेंगे..? उनकी लड़ाई शासन प्रशासन से थी, हमारे उपर हमला करने का तो कोई मतलब ही नहीं बनता था। जो कुछ लोग कह रहे हैं कि ये लोग मासूम है इन्हें जान बूझकर निशाना बनाया जा रहा है. वे लोग हल्द्वानी आते और आंखों से इस घटना को देखते तब पता चलता कि ये कितने क्रूर हैं। मैं कहता हूँ आज भी ये लोग जरा बिना सुरक्षा के इनके बीच पड़ताल करने का प्रयास या कवरेज करके दिखा दें.. इन्हें असलियत पता लग जाएगी।
हमने माना भाईचारा उन्होंने भाई को बना दिया चारा
घटना वाले दिन हमने यहां पर अपनी आंखों से देखा है पूरा का पूरा मंजर हमने देखी है इनकी क्रूरता। हमसे आकर पूछो कि वहां पर कौन थे मासूम… मेरे दो बेटी और एक बेटा है भगवान का आर्शीवाद है कि आज हमारे बच्चे अनाथ होने से बच गये।
अगर हम मर जाते तो हमारे बच्चे को कौन पालता..? हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी इस तरह का मंजर देखने को मिलेगा। हम तो भाईचारा मानते थे, इन्होने तो भाई को ही चारा बना दिया. अब जब जिंदगी और मौत की बात होगी तो हमें भी भाईचारा के लिए विचार करना पड़ेगा।
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