सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की प्रस्तावना से ‘पंथनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों को हटाने की मांग करते हुए, भाजपा नेता सुब्रमण्यन स्वामी की याचिका को सुनने के लिए सहमति व्यक्त की। जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता ने 29 अप्रैल से शुरू होने वाले सप्ताह के लिए सुनवाई निर्धारित की है। स्वामी का तर्क है कि ये शब्द केशवानंद भारती निर्णय में स्थापित बुनियादी संरचना सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं। संविधान निर्माताओं का कभी भी लोकतांत्रिक शासन में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष अवधारणाओं को पेश करने का कोई इरादा नहीं था। याचिका में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि डॉ. भीम राव अंबेडकर ने इन शब्दों को शामिल करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि राजनीतिक विचारधाराओं को संविधान के माध्यम से नागरिकों पर नहीं थोपा जाना चाहिए। आइए समझते हैं…
पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और वकील विष्णु शंकर जैन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द हटाने की मांग की है। उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने शुक्रवार को पूछा कि क्या संविधान की प्रस्तावना को 26 नवंबर, 1949 को अंगीकार की तारीख को बरकरार रखते हुए बदलाव किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति दत्ता ने पूछा, ‘क्या अकादमिक उद्देश्य के लिए प्रस्तावना में उसे अंगीकार करने की तारीख को बदले बिना प्रस्तावना को बदला जा सकता है?’ उन्होंने कहा, ‘अगर हां, तो प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है, इसमें कोई दिक्कत नहीं है।’ स्वामी की याचिका में कहा गया है कि ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ ये शब्द 1976 के आपातकाल के दौरान 42वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के माध्यम से प्रस्तावना में जोड़े गए थे, इसलिए वे प्रसिद्ध केशवानंद भारती निर्णय में घोषित बुनियादी संरचना के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं। दो शब्द जोड़ने के बावजूद, प्रस्तावना में अभी भी कहा गया है कि इसे 26 नवंबर, 1949 को अपनाया गया था।
अभी क्या हो रहा है?
सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर 29 अप्रैल से शुरू होने वाले सप्ताह में सुनवाई करेगा।
क्या कहते हैं स्वामी?
स्वामी का तर्क ये है कि अनुच्छेद-368 के तहत यह संशोधन संसद की संशोधन शक्ति से परे था। उनकी याचिका में इस बात को साफ कहा गया है कि डॉ. बीआर अंबेडकर ने इन शब्दों को शामिल करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा था कि नागरिकों को अपनी राजनीतिक विचारधारा चुनने का अधिकार है, इसे संविधान के जरिए उन पर थोपा नहीं जा सकता।
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