बरेली। मुस्लिम तुष्टीकरण का सच अगर जानना है तो कांग्रेस, सपा, बसपा, आप के करीबी मौलाना तौकीर रजा खान का इतिहास एक बार पढ़ लेना जरूरी है। अब लोकसभा चुनाव सिर पर है तो इत्तहादे मिल्लत काउंसिल नाम से जिला बरेली में पार्टी चलाने वाले मौलाना तौकीर फिर जहर उगलने लगे हैं। बात इतनी गंभीर कि विवादित मौलाना तौकीर देश में गृहयुद्ध और अपने दुश्मनों को मार डालने की धमकी दे रहे हैं। साथ ही पीएम मोदी, सीएम योगी के साथ सबसे पहले उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने वाले मुख्यमंत्री धामी के खिलाफ बेहद असभ्य तरीके से बयानबाजी कर रहे हैं। मौलाना यह पूरा ड्रामा ऐसे वक्त में कर रहे हैं, जब बरेली के पड़ोस में हल्द्वानी शहर में मुस्लिम दंगाई थाने-चौकी फूंक रहे हैं और पुलिस-पत्रकारों पर हमले कर रहे हैं।
मौलाना तौकीर के बारे में जगजाहिर है कि जब-जब चुनाव आता है तो अपनी नफरती जुबान से आरएसएस, भाजपा, पीएम मोदी, सीएम योगी के खिलाफ आग उगलने लगते हैं। इसके बदले में वह कभी सपा तो कभी कांग्रेस, बसपा और आप से अपनी-अपनी तरह का इनाम पाने में कामयाब हो जाते हैं। अयोध्या धाम में श्रीराम मंदिर निर्माण- उद्घाटन, काशी में हिन्दुओं को ज्ञानवापी मस्जिद के व्यास तहखाने में पूजा का अधिकार मिलने, बागपत के बरनावा लाक्षागृह के स्वामित्व का अधिकार हिन्दू पक्ष को मिलने से कांग्रेस-सपा के करीबी मौलाना तौकीर की बौखलाहट साफ नजर आ रही है।
इस बीच उत्तराखंड की धामी सरकार ने देश में सबसे पहले राज्य में समान नागरिक संहिता बिल पारित कर दिया तो मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाली कांग्रेस-सपा सहित दूसरी पार्टियां बौखला गई हैं। ऐसे में हमेशा की तरह मौलाना तौकीर फिर ऐसी पार्टियों के मोहरा बनते दिखाई दे रहे हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि 2012 से पहले उत्तर प्रदेश की पहचान दंगा प्रदेश की ज्यादा थी। सपा सरकार में पश्चिमी यूपी किस तरह दंगों की आग में जला था, अतीत का वह सच सबके सामने है। 2017 में यूपी में योगी सरकार बनने के बाद यूपी से दंगों का दाग मिट गया, तो विरोधी पार्टियां और उनके मोहरों को राज्य में शांति-व्यवस्था एवं विकास की रफ्तार देखकर ऐसी ईष्या हो रही है कि माहौल बिगाड़ने के रोज नए षडयंत्र किए जा रहे हैं।
बरेली में यह काम आईएमसी अध्यक्ष मौलाना तौकीर कर रहे हैं और चुनाव से पहले पुलिस-प्रशासन की टेंशन बढ़ा रहे हैं। सभी जानते हैं कि अयोध्या, काशी, बागपत में हिन्दुओं की जीत कानूनी कसौटी पर हुई है मगर वर्ग विशेष को गुमराह करने के लिए मौलाना तरह-तरह की कहानियां गढ़ रहे हैं। ये वही मौलाना तौकीर हैं जो 2000 तक धार्मिक चोला पहने नजर आते थे मगर राजनैतिक महत्वकांक्षा बढ़ने पर 2001 में उन्होंने इत्तहादे मिल्लत काउंसिल नाम से अपनी राजनैतिक पार्टी बना ली थी। उसके बाद से 22 साल का समय बीत चुका है मगर सिवाय सपा, बसपा, कांग्रेस, आप से चुनावी दोस्ती गांठने के मौलाना तौकीर खुद हर बार हाशिए पर ही दिखते रहे हैं।
मौलाना तौकीर ने 2009 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को समर्थन दिया था। बसपा सरकार में उसके बाद बरेली शहर में हुए दंगे में पुलिस ने मौलाना तौकीर को गिरफ्तार कर जेल भेजा था। मगर बाद में बसपा सरकार दबाव में आ गई और पुलिस ने केस वापस लेकर मौलाना को जेल से रिहा करा दिया। इसके बाद 2012 में सपा सरकार बनी। मौलाना तौकीर और समाजवादी पार्टी की आपसी जुगलबंदी का ही नतीजा था, जो 2012 में यूपी के अंदर सरकार बनने के बाद अखिलेश यादव ने उन्हें उपहार में लालबत्ती दी थी और दर्जा राज्यमंत्री बनाया था। 2014 लोकसभा चुनाव में मौलाना तौकीर बसपा के साथ खड़े दिखाई दिए।
इतना ही नहीं, आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल से भी मौलाना ने मेल-मिलाप का कोई मौका नहीं छोड़ा। कभी प्रियंका गांधी तो कभी कपिल सिब्बल और दिग्विजय सिंह, मौलाना तौकीर सबके साथ मंच साझा करते रहे और हमेशा की तरह पीएम मोदी, सीएम योगी, संघ, भाजपा, विहिप, हिन्दू जागरण मंच बजरंग दल पर अभद्र टिप्पणियां करते रहे। पुलिस-प्रशासन पर दबाव बनाने को वह बार-बार प्रदर्शन, पैदल मार्च, सड़कों पर नमाज पढ़ने, संसद घेरने की धमकियां देते हैं मगर प्रशासनिक सख्ती होते ही अपने घर बैठे दिखाई देते हैं।
मौलाना ने हल्द्वानी शहर में दंगे के ठीक एक दिन बाद बरेली में मुस्लिम भीड़ के साथ प्रदर्शन की कोशिश क्यों की, यह सच्चाई सभी समझते हैं। पुलिस की सख्ती के बाद मौलाना तो बगैर प्रदर्शन किए अपने घर लौट गए मगर उनके समर्थकों ने बरेली के मुस्लिम बहुल इलाके में पथराव-तोड़फोड़ कर शहर में बवाल कराने का षडयंत्र करके दिखा दिया। अपनी दोस्त कांग्रेस-समाजवादी पार्टी को फायदा पहुंचाने को मौलाना आगे और क्या–क्या करेंगे, यह चुनावी समय में सब देखेंगे। फिलहाल योगी राज में बरेली पुलिस अपना काम बखूबी कर रही है और शहर में शांति है। शायद यही शांति मौलाना तौकीर को रास नहीं आ रही !
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