पाठकों को अभी कुछ समय पहले का वह विवाद संज्ञान में होगा ही, जब अमेरिका में कैलिफोर्निया में हिन्दू विरोधी एक अधिनियम पर गर्वनर द्वारा वीटो लगा दिया गया था। यह अधिनियम इतना घातक था कि इससे हिन्दू धर्म के असंख्य लोगों पर खतरा मंडराने लगता। इस अधिनियम का प्रस्ताव सीनेटर आयशा वहाब ने दिया था और इसे लेकर इक्विटी लैब नामक संस्था द्वारा भूख हड़ताल भी की गई थी।
इसमें केवल हिन्दू धर्म को ही निशाना बनाया गया था और जिसे वहां के सीनेट में 31-5 के अनुपात में पारित भी कर दिया था। इसे लेकर हिन्दू अमेरिकन फाउंडेशन ने विरोध किया और कहा था कि यह हिन्दू धर्म के लिए बहुत विनाशकारी सिद्ध होगा। हालांकि, इसे कैलिफोर्निया के गवर्नर ने वीटो लगाकर निष्प्रभावी कर दिया था और कहा था कि पहले से ही यहाँ पर हर प्रकार के भेदभाव से निपटने के लिए क़ानून हैं।
क्या है पूरा मामला
यह सारा मामला दरअसल एक आईटी कम्पनी सिस्को पर राज्य द्वारा दायर किए गए एक ऐसे मुक़दमे के साथ आरम्भ हुआ था, जिसमें एक कथित रूप से दलित इंजीनियर ने यह आरोप लगाया था कि उसकी जाति को लेकर उसके साथ भेदभाव किया जा रहा है। यह कहानी वर्ष 2020 में आरम्भ हुई थी और इसके बाद हिन्दुओं पर निशाना साधने के लिए कई प्रकार के विमर्श आरम्भ किए गए और यह प्रकारांतर से स्थापित किया जाने लगा था कि जितने भी भेदभाव हैं, वह मात्र हिन्दू धर्म की ही उपज हैं। हिन्दू धर्म के शब्दों की मनमानी व्याख्याएं करने के बाद इक्विटी लैब एवं कई अन्य हिन्दू विरोधियों ने ऐसा बिल बनाया, जिसमें हिन्दू धर्म की परम्पराओं को निशाना बनाया गया था।
मगर गवर्नर द्वारा यह कहे जाने के बाद कि ऐसे भेदभावों से लड़ने के लिए पहले से ही क़ानून हैं, अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल एवं अफगानी मूल की सीनेटर आयशा वहाब का यह षड्यंत्र विफल हो गया। जब गवर्नर ने इस पर वीटो लगाकर निष्प्रभावी किया था तो इन्डियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल ने रशीद अहमद ने यह कहा था कि भारतीय-मुस्लिम गवर्नर के इस निर्णय से बहुत सदमे में हैं।
हालांकि, जिस मामले को लेकर यह सब विवाद हुआ था और यह बिल आया था, बीबीसी के अनुसार, उसे अप्रेल 2023 में न्यायालय के आदेश द्वारा खारिज कर दिया गया गया था। लेकिन, आज यह मामला फिर से चर्चा में क्यों है? यह मामला आज एक बार फिर से चर्चा में इसलिए है क्योंकि इसी के आधार पर हिन्दू धर्म को भेदभाव करने वाला साबित करने का दुष्प्रचार आरम्भ हुआ था और विदेश में बसे हुए लोगों ने यह स्पष्ट रूप से समझा था कि हिन्दूफोबिया वास्तव में पश्चिम में विद्यमान है।
कैलिफोर्निया राज्य सरकार के एक महत्वपूर्ण विभाग ने अब यह कहा है कि जाति एवं जाति-आधारित भेदभाव हिन्दू धर्म के अनिवार्य अंग नहीं हैं और उन्होंने सिलिकॉन वैली की एक बड़ी टेक कम्पनी के खिलाफ भेदभाव वाली शिकायत में बदलाव किए हैं।
हिन्दू अमेरिकन फाउंडेशन द्वारा मंगलवार को जारी एक वक्तव्य में कैलिफोर्निया सिविल राइट्स विभाग ने दिसम्बर के पहले सप्ताह में स्वैछिक रूप से एक मोशन दायर किया, जिसमें उन्होंने सिस्को सिस्टम्स के खिलाफ अपनी उस शिकायत को संशोधित किया है, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि कंपनी में जातिगत भेदभाव होता है।
हिन्दू अमेरिकन फाउंडेशन के अनुसार यह एक जीत है, जिसमें यह त्रुटिपूर्ण एवं असवैंधानिक वक्तव्य हटाया गया है कि जाति एवं जातिगत भेदभाव हिन्दू धर्म की शिक्षाओं एवं परम्पराओं का अनिवार्य अंग है। मगर फाउंडेशन के अनुसार अभी भी वक्तव्य के कई हिस्से समस्यापूर्ण हैं क्योंकि यह वक्तव्य इक्विटी लैब नामक संस्था द्वारा कराए गए शरारतपूर्ण एवं गलत आंकड़ों वाले सर्वे पर आधारित हैं।
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एचएएफ ने आरोप लगाया कि इस सर्वेक्षण पर विशेष रूप से कार्नेगी एंडोमेंट, पेन और जॉन्स हॉपकिंस के अकादमिक शोधकर्ताओं द्वारा सवाल उठाया गया है, जिन्होनें अपने कामों में पाया कि अमेरिका में जातिगत भेदभाव वास्तव में बहुत दुर्लभ था।
इतना ही नहीं इक्विटी लैब की ओर से ऐसा भी विमर्श आरम्भ किया जा रहा है कि भारत में जातिप्रथा दरअसल त्वचा के रंग के आधार पर है, और यह अमेरिका में प्रचलित त्वचा के रंग पर आधारित भेदभाव के समानांतर स्थापित करने का कुटिल षड्यंत्र है।
फिर भी इस पूरे मामले में और पश्चिम की अकादमिक दुनिया एवं विमर्श की दुनिया में बढ़ते हिन्दूफोबिया के समय में यह एक छोटी और महत्वपूर्ण जीत कही जा सकती है, जिसे लेकर हिन्दू अमेरिकन फाउंडेशन एवं कई अन्य हिन्दू संस्थाएं लगातार लड़ाई लड़ रही हैं।
यह भी बहुत हैरान करने वाला विषय है कि सीनेटर आयशा वहाब पहली अफगान अमेरिकी महिला हैं, जिनका चयन अमेरिका में इतने महत्वपूर्ण ऑफिस में हुआ था, मगर ऐसा नहीं लगता कि तालिबान द्वारा अफगानी महिलाओं पर किए जा रहे अत्याचारों के विषय में उन्होंने कुछ कहा हो या फिर मुस्लिम समुदायों में विद्यमान हलाला, तीन तलाक जैसे मुद्दों पर उन्होंने कुछ कहा हो।
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