22 जनवरी को अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के भव्य मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाने पर अपने विरुद्ध जारी फतवे को इमाम इल्यासी ने नकारते हुए कहा कि वतन से वफादारी ही पूरा इस्लाम
आल इंडिया इमाम आर्गेनाइजेशन के ‘चीफ’ इमाम उमैर अहमद इल्यासी अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के भव्य मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल हुए थे। इसके प्रति अपना विरोध जताने और उनके प्रति मुसलमानों में नफरत फैलाने के लिए एक मुफ्ती ने ‘कुफ्र’ का फतवा जारी किया है। भारत में ऐसा पहली बार हुआ है। वैसे कुफ्र के फतवे समय-समय पर कट्टरपंथी उलेमाओं द्वारा जारी किए जाते रहे हैं।
सर सैयद अहमद खां पर काफिर होने का फतवा जारी किया गया था, जब उन्होंने मुसलमानों का आह्वान किया था कि अंग्रेजी और आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर, अंग्रेजों को अंग्रेजों के ही हथियार से मात दें! इसी प्रकार भारत रत्न और भारत के पहले शिक्षा मंत्री मैलाना आजाद पर भी कुफ्र का फतवा जारी किया गया था, जब उन्होंने भारत विभाजन कराने वाले मुहम्मद अली जिन्ना का पाकिस्तान जाने का आह्वान ठुकराया था। आजाद ने कहा था, ‘जो चला गया, उसे भूल जा; हिंद को अपनी जन्नत बना’।
‘चीफ’ इमाम उमैर इल्यासी ने अपने विरुद्ध जारी किए गए फतवे को नकारते हुए कहा है कि उन्होंने राम मंदिर जाकर इस्लाम और भारत, दोनों की उदार प्रवृत्ति को नमन किया है। इल्यासी ने कहा कि वे ‘अतिवादियों की धमकियों से नहीं डरते’, क्योंकि ‘वे इस्लाम के उसूल हब्बुल वतनी/निस्फुल ईमान में विश्वास रखते हैं, जिसका अर्थ है, वतन से वफादारी आधा नहीं, बल्कि पूरा इस्लाम है, क्योंकि वतन है तो मस्जिदें, खानकाहें, मकतब, मदरसे आदि हैं।’ पिछले लगभग 20 वर्ष से इमाम इल्यासी अंतरपांथिक सद्भाव व समरसता के रास्ते पर चलते हुए मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों, चर्च, सिनेगोग आदि में जाते रहे हैं।
‘अतिवादियों की धमकियों से नहीं डरते’, क्योंकि ‘वे इस्लाम के उसूल हब्बुल वतनी/निस्फुल ईमान में विश्वास रखते हैं, जिसका अर्थ है, वतन से वफादारी आधा नहीं, बल्कि पूरा इस्लाम है, क्योंकि वतन है तो मस्जिदें, खानकाहें, मकतब, मदरसे आदि हैं।’
‘‘चूंकि यह प्राण प्रतिष्ठा मात्र मंदिर की नहीं, अपितु एक नए भारत की भी थी, मैंने ही नहीं अन्य बहुत से मुस्लिमों ने भी इसका सम्मान करते हुए इसमें भाग लिया।’’
‘‘मैं इस्लाम, कुरान और हजरत मुहम्मद से सीखता हूं, न कि फतवों की क्लासों से। मैं सर तन से जुदा आदि धमकियों से कदापि नहीं घबराता, क्योंकि भारत के संविधान में मेरी पूर्ण आस्था है।’’ – इमाम इल्यासी
इमाम इल्यासी के विरुद्ध इससे पूर्व भी एक फतवा तब जारी किया गया था, जब उन्होंने एक मदरसे में रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत को आमंत्रित करके बच्चों को आशीर्वाद दिलाया था और कहा था कि ‘वे राष्ट्रपिता हैं, क्योंकि वे धर्म-पंथ से ऊपर उठकर सबकी भलाई के बारे में सोचते हैं।’ उल्लेखनीय है कि इमाम इल्यासी के पिता इमाम जमील इल्यासी के पूर्व सरसंघचालक श्री रज्जू भैया से मधुर संबंध थे।
अयोध्या जाने को लेकर इमाम इल्यासी ने आगे कहा, ‘‘चूंकि यह प्राण प्रतिष्ठा मात्र मंदिर की नहीं, अपितु एक नए भारत की भी थी, मैंने ही नहीं अन्य बहुत से मुस्लिमों ने भी इसका सम्मान करते हुए इसमें भाग लिया।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं इस्लाम, कुरान और हजरत मुहम्मद से सीखता हूं, न कि फतवों की क्लासों से। मैं सर तन से जुदा आदि धमकियों से कदापि नहीं घबराता, क्योंकि भारत के संविधान में मेरी पूर्ण आस्था है।’’
इसमें संदेह नहीं कि अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा देश की विलक्षण उपलब्धि है, जिसकी 500 वर्ष से प्रतीक्षा थी। इस समारोह में इमाम इल्यासी का सम्मिलित होना सर्वपंथ समादर की भावना ही झलकाता है। सभी पंथों की आस्था का सम्मान करना झलकाता है। यह प्राण प्रतिष्ठा देशहित में भी थी, जिसका बिरादरान-ए-वतन, हिंदू भी सैकड़ों वर्ष से इंतजार कर रहे थे, तो अधिकांश मुस्लिमों ने भी इसका पूरा सम्मान किया। हदीस में कहा गया है, ‘हुब्बूल वतनी/निसफुल ईमान’, अर्थात ‘वतन से मुहब्बत एक मुस्लिम का आधा ईमान होता है!’
प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाने का ‘चीफ’ इमाम का निर्णय वास्तव में स्वागतयोग्य था। क्योंकि कोई नहीं जानता था कि वहां इमाम की हाजिरी पर मुसलमान क्या सोचेंगे! हालांकि भारत के अधिकांश मुसलमानों को प्राण प्रतिष्ठा से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन कुछ मुसलमान हैं, जो इसे हजम नहीं कर पा रहे हैं।
इमाम इल्यासी इस इस्लामी उसूल में भी विश्वास रखते हैं कि किसी के दिल को ठेस पहुंचाना या दुखाना बहुत बड़ा गुनाह है, अत: जब उन्हें राम जन्मभूमि न्यास की ओर से प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण मिला तो यह उनका इस्लामी हक भी था कि इसका पूरा सम्मान करें और यह पैगाम दें कि भारत का राष्ट्र-धर्म साझी विरासत है, भले ही भारतवासी विभिन्न पंथों को मानते हों! भारत के इसी अंतरपांथिक सद्भाव और समरसता का तो दुनिया लोहा मानती है!
भारत रत्न और भारत के पहले शिक्षा मंत्री मैलाना आजाद पर भी कुफ्र का फतवा जारी किया गया था, जब उन्होंने भारत विभाजन कराने वाले मुहम्मद अली जिन्ना का पाकिस्तान जाने का आह्वान ठुकराया था।
आजाद ने कहा था, ‘जो चला गया, उसे भूल जा; हिंद को अपनी जन्नत बना’।
इमाम इल्यासी ने सरसंघचालक श्री भागवत की इस बात की खुलकर प्रशंसा की कि जिस प्रकार से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सत्य, करुणा, त्याग और तपस्या का जीवन्त उदाहरण रखते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त किया है, वह तप मात्र उन तक सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि प्रत्येक भारतवासी को उसी मार्ग को अपनाकर देश को विश्व गुरु बनाने के लिए जुट जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी के संबंध में इमाम इल्यासी का कहना है कि वे वास्तव में अंतरपांथिक सद्भाव का सम्मान करते हुए सही मायनों में ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ के मंत्र पर चल रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में ‘चीफ’ इमाम कहते हैं कि उन्होंने अपने शासन काल में समाज में इस प्रकार का वातावरण बनाया है कि जहां सब साथ मिलकर आपसी प्रेम से रहते हैं। इमाम ने धैर्य और आपसी भाईचारे को राम राज्य की बुनियाद बताया जिसमें सभी लोग सुख, चैन और शांति से रह सकें।
इमाम इल्यासी को इस बात से अत्यंत खुशी मिली है कि कुछ समय पूर्व जहां रामलला टेंट में बैैठा करते थे, अब पांच सदियों के बाद अपनी जन्मस्थली में भव्य मंदिर में विराजे हैं। भारत में प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर जनता में जो उल्लास नजर आया, वह असाधारण था। अयोध्या में लोगों की खुशी का पारावार नहीं था। इमाम का मानना है कि प्राण प्रतिष्ठा का सुफल भारत तक ही सीमित न रहकर पूरी दुनिया तक पहुंचेगा। वर्तमान भारत कैसा होगा, इस बारे में इमाम इल्यासी यूसुफ खान निजामी का यह शेर दोहराते हैं:
‘हिन्दुस्तान पे रहमत-ए-परवरदिगार है,
कृपा श्री राम की, कान्हा का प्यार है!’
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