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टूटता और बनता रहा मंदिर

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में विश्वनाथ ज्योर्तिलिंग मंदिर का स्थान सर्वोेपरि माना जाता है। मान्यता है कि काशी ही भगवान शिव और माता पार्वती का आदिस्थान है।

by अरुण कुमार सिंह
Feb 7, 2024, 03:35 pm IST
in धर्म-संस्कृति
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काशी स्थित बाबा विश्वनाथ मंदिर को अनेक बार तोड़ा गया। इतिहास बताता है कि इसी मंदिर को तोड़कर औरंगजेब ने कथित ज्ञानवापी मस्जिद को बनवाया

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में विश्वनाथ ज्योर्तिलिंग मंदिर का स्थान सर्वोेपरि माना जाता है। मान्यता है कि काशी ही भगवान शिव और माता पार्वती का आदिस्थान है। काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण 2050 साल पहले महाराज विक्रमादित्य ने करवाया था। पहली बार 12वीं शताब्दी में इस मंदिर का विध्वंस किया गया। 1194 में मुहम्मद गोरी ने काशी में लूटपाट के बाद इस मंदिर को ध्वस्त करा दिया। गोरी के जाने के बाद इस मंदिर की मरम्मत कराई गई, लेकिन 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा इसे फिर तोड़ दिया गया।

1585 में अकबर के नौ रत्नों में शामिल राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा फिर से भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया। औरंगजेब ने 18 अप्रैल, 1669 को इसी मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया था। न्यायालय में मंदिर के पक्षकारों की ओर से 351 वर्ष पुराना एक महत्वपूर्ण अभिलेख साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह ऐतिहासिक अभिलेख 18 अप्रैल, 1669 को औरंगजेब के एक दरबारी की ओर से जारी किया गया था, जो मूल रूप में फारसी में है लेकिन इसे हिंदी में अनूदित करके न्यायालय में प्रस्तुत किया गया है।

1777 से 1780 के बीच इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने मस्जिद के समीप ही एक मंदिर का निर्माण करवाया। यही आज विश्वनाथ मंदिर है। इस मंदिर के लिए पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने 1853 में 1,000 किग्रा सोने का छत्र बनवाया, तो ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया। मंदिर की ख्याति नेपाल तक पहुंची तो महाराजा नेपाल ने मंदिर में विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करा कर इसका अंतरराष्ट्रीय महत्व स्थापित किया।

अभिलेख के अनुसार, ‘‘औरंगजेब को खबर मिली कि मुल्तान के कई सूबों और वाराणसी में कुछ लोग अपनी किताबों को पाठशालाओं में पढ़ाते हैं। इसके बाद औरंगजेब ने काफिरों के मंदिर और पाठशालाओं को गिराने का आदेश दिया। इसके बाद 2 सितंबर, 1669 को काशी विश्वनाथ मंदिर को गिरा दिया गया।’’ औरंगजेब का यह फरमान कोलकाता की ‘एशियाटिक लाइब्रेरी’ में आज भी सुरक्षित है। साफ है कि मंदिर के अवशेषों से ही ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया। मस्जिद की पिछली दीवार आज भी यह गवाही दे रही है कि इसका निर्माण मंदिर को तोड़ कर किया गया था।

विध्वंस के बाद भी इस मंदिर को पुन: निर्मित करने के कई असफल प्रयास किए गए। 1752 से 1780 के बीच सबसे पहले मराठा सरदार दत्ता जी सिंधिया व मल्हारराव होल्कर ने मंदिर की मुक्ति और निर्माण का असफल प्रयास किया। 7 अगस्त, 1770 को महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाहआलम से मंंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी कराया, परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया और मंदिर का जीर्णोद्धार नहीं हो सका।

1777 से 1780 के बीच इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने मस्जिद के समीप ही एक मंदिर का निर्माण करवाया। यही आज विश्वनाथ मंदिर है। इस मंदिर के लिए पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने 1853 में 1,000 किग्रा सोने का छत्र बनवाया, तो ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया। मंदिर की ख्याति नेपाल तक पहुंची तो महाराजा नेपाल ने मंदिर में विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करा कर इसका अंतरराष्ट्रीय महत्व स्थापित किया।

हिंदू समाज द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद को हटाने का प्रयास अनवरत किया जाता रहा है। इसी कड़ी में 1809 में काशी के हिंदुओं ने मस्जिद हटवाने के लिए जबरदस्त अभियान छेड़ा। 30 दिसंबर, 1910 को काशी के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी वाट्सन ने ‘वाइस प्रेसिडेंट इन काउंसिल’ को पत्र भेजकर ज्ञानवापी परिसर को स्थाई रूप से हिंदुओं को सौंपने को कहा था, लेकिन इस पत्र को कोई महत्व नहीं मिला।

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