वर्ष 2020 में मुम्बई मिरर में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी कि भारत कैसे अपने पहले शतरंज खिलाड़ी को भूल गया है? यह लेख उस भारतीय खिलाड़ी को लेकर था जिनका जन्म वर्तमान में पाकिस्तान के सरगोधा में वर्ष 1905 में हुआ था। उनके विषय में सबसे विशेष बात यह है कि वह “चतुरंगा” खेलते थे, अर्थात शतरंज का वह रूप जो विशुद्ध भारतीय है।
सुलतान खान ने भारत की ओर से खेलते हुए वर्ष 1929,1931 और 1932 में ब्रिटिश चेस चैम्पियनशिप जीती थी। वह चेस ओलंपियाड में भी खेले थे। वर्ष 1933 के बाद जब वह लंदन से वापस भारत आए उसके बाद उनके खेल का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। वर्ष 1947 में विभाजन के बाद वह पाकिस्तान में ही रहे और वर्ष 1966 में टीबी से उनकी मृत्यु हो गयी।
आज सुलतान खान की चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय चेस फाउंडेशन ने उन्हें पाकिस्तान के पहले ग्रैंड मास्टर के रूप में नवाजा है। हालांकि एफआईडीई के अनुसार वह अविभाजित भारत के समय में शतरंज खेलते थे। एफआईडीई ने लिखा है कि सरगोधा से शतरंज खिलाड़ी मीर सुलतान खान ने ब्रिटिश चेस चैम्पियनशिप वर्ष 1929, 1931 और 1932 में जीती थी।
प्रश्न यह उठता है कि वर्ष 1929, 1931 और 1932 में क्या पाकिस्तान का कोई अस्तित्व था? क्या पाकिस्तान जाने के बाद उन्होंने पाकिस्तान की ओर से कोई गेम खेला? क्या उन पर लिखी गयी किताब में पाकिस्तान की ओर से खेले जाने का उल्लेख है, यदि नहीं तो भारत की ओर से खेलने वाले खिलाड़ी को केवल इस कारण कि वह विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए थे, या उनका जन्म वर्तमान पाकिस्तान में हुआ था, पाकिस्तान का बना दिया जाएगा फिर चाहे उन्होंने पाकिस्तान के लिए खेला हो या नहीं? यदि सुलतान खान ने विभाजन के बाद पाकिस्तान जाकर पाकिस्तान से खेला जाना जारी रखा होता और पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व किया होता तो उन्हें पाकिस्तान के पहले ग्रैंड मास्टर के खिताब से नवाजा जाना उचित भी होता, मगर ऐसा नहीं हुआ, तो उन्हें पाकिस्तान का ग्रैंड मास्टर कहा जाना एक कुटिल शरारत से बढकर और कुछ नहीं है।
हालांकि उनकी पोती डॉ आतियाब सुल्तान का यह कहना है कि उनके पिता एक प्राउड पाकिस्तानी थे और जिस देश को अब भारत कहते हैं, उससे उनका कोई सम्बन्ध नहीं था। दरअसल सुलतान खान पर डेनियल किंग जो खुद एक ग्रांड मास्टर हैं, ने एक पुस्तक लिखी थी, जिसमें उनकी पहचान को इंडियन सर्वेंट के रूप में दिखाया गया था। इसे लेकर सुल्तान खान की पोती ने एक blog के माध्यम से आपत्ति दर्ज कराई थी और यह लिखा था कि सुल्तान अंग्रेजों के लिए खेलते थे और वह अपने जीवन के पहले 44 वर्षों तक ब्रिटिश प्रजा थे और उसके बाद मरने तक प्राउड पाकिस्तानी, इसलिए उनका भारत से कोई नाता नहीं है।
और इसके अलावा भी कई आपत्तियां उन्हें उस पुस्तक से थी, जिसे इस blog के अनुसार वर्ष 2023 में वापस लेने के लिए प्रकाशक तैयार हो गया था।
सुलतान खान पाकिस्तान में ही रहे थे यह सही है, परन्तु यह भी बात सच है कि उनका जन्म भारत के ही एक ऐसे प्रांत में हुआ था, जिसे बाद में विभाजन के बाद पाकिस्तान को दे दिया गया। मगर उससे यह तथ्य नहीं बदल जाता कि उनकी मूल पहचान क्या थी? उन्होंने आल इंडिया चैम्पियनशिप जीती थी और उसके बाद ही वह ब्रिटिश इंडिया की ओर से खेलने गए थे।
और यदि वे प्राउड पाकिस्तानी भी थे, तो भी उन्होंने कभी पाकिस्तान की ओर से शतरंज नहीं खेला था, और उनकी पहचान भी ब्रिटिश भारतीय की थी, इसलिए कहीं से भी उन्हें पाकिस्तानी ग्रैंड मास्टर का खिताब उचित नहीं ठहराया जा सकता है, वह भी तब जब भारत की ओर से कई संस्थाएं एफआईडीई से यह अनुरोध करती हुई पेटीशन दायर कर रही थीं कि सुलतान खान को मरणोपरांत ग्रैंड मास्टर का खिताब दिया जाए। और उस पर हजारों भारतीय इसका समर्थन भी करते हुए नजर आएं कि सुलतान खान की विरासत का आदर होना चाहिए, तो ऐसे में अविभाजित भारत के खिलाड़ी को महज इसलिए पाकिस्तानी ग्रैंड मास्टर का खिताब दे देना उचित नहीं होगा कि वह आजीवन पाकिस्तान में रहे! वह अपने जन्म के 44 वर्ष तक भारत में रहे थे और फिर चूंकि उनकी जमीन आदि पाकिस्तान वाले हिस्से में आई तो कई कारणों से उन्होंने वहीं पर रहना चुना, जैसा उनकी पोती ने लिखा कि जिन्ना के नेतृत्व में उप-महाद्वीप के मुस्लिमों ने अपने लिए अलग देश की मांग की और फिर उनके लिए पाकिस्तान बना।
It should be noted that this was long pending. In fact, ~4 years ago @ChessbaseIndia had started a petition for this https://t.co/v9ziklUGDj and around 5k people had signed it
— Virendra Sawant (@MrSawant) February 5, 2024
यदि पाकिस्तान बना तो यह जाहिर है कि यह किसी से तो टूटकर बना ही है। क्योंकि भारत का विस्तार केवल कश्मीर से कन्याकुमारी तक ही नहीं था, जैसा कि यूनानी, चीनी एवं यूरोपीय यात्रियों के यात्रा विवरणों में भारत में वर्णन से प्राप्त होता है। यह सर्विविदित तथ्य है कि भारत से ही टूटकर पाकिस्तान बना है, तो इससे वह मूल पहचान विलुप्त नहीं हो जाएगी जो सुलतान खान की थी।
एफआईडीई पर भी हालांकि कई प्रश्न उठ रहे हैं कि यह कदम क्यों उठाया गया है। स्कॉटिश ग्रैंड मास्टर जैकब आगार्ड ने इसे एक राजनीतिक कदम बताते हुए कहा कि हालांकि वह खान का आदर करते हैं और खान शतरंज में एक बहुत बड़ा नाम हैं और कोई भी इस निर्णय से असहमत नहीं होगा, मगर फिर भी यह राजनीतिक लाभ का मामला है। मुझे नहीं पता कि क्या एफआईडीई वास्तव में पाकिस्तान में शतरंज का प्रचार प्रसार करना चाहती है या फिर वह सॉफ्ट रशियन डिप्लोमैट के रूप में कार्य कर रही है।
उन्होंने एक्स पर पोस्ट लिखा कि एफआईडीई ने वर्ष 1950 में ग्रैंड मास्टर की उपाधि देना आरम्भ किया था। इस कारण कैपब्लांका, अलेखिन, लास्कर और श्री खान के युग के अन्य महान लोगों को कभी उपाधि नहीं मिली। क्योंकि वे मर चुके थे। मरे हुए लोगों को उपाधि नहीं मिलती थी। लेकिन यह भी याद रखा जाए कि किरसन ने गद्दाफी के साथ पांच मिनट तक खेलने के बाद उसे खिताब दिया था।
उन्होंने यह भी लिखा कि ग्रैंड मास्टर की उपाधि हासिल करने में दशकों तक लग जाते हैं, और फिर इसका राजनीतिक प्रयोग हो तो दुःख होता है, हालांकि उन्हें सुलतान खान पर गर्व है!
How should we react to this? Mr Khan has a big name in chess and no one would disagree with this decision on merit. He is remembered fondly despite his short career.
But this decision is not one of merit, but a matter of political favours. I have no idea if FIDE is genuinely… https://t.co/54NgqM92hb
— GM Jacob Aagaard (@GMJacobAagaard) February 5, 2024
सुलतान खान की विरासत और परम्परा पर गर्व हर कोई कर रहा है, क्योंकि वह एक महान खिलाड़ी थे, परन्तु उनकी पहचान के साथ खेल किए जाने को लेकर तमाम प्रश्न हैं। यह प्रश्न भारत की पहचान को लेकर भी है क्योंकि भारत की पहचान 1947 के बाद की नहीं है बल्कि वह अनंत काल से है, वर्ष 1947 से पहले जन्मे ऐसे किसी व्यक्ति को पाकिस्तान के साथ जोड़ना जिसने खेला अविभाजित भारत के लिए हो, और पाकिस्तान बनने के बाद नहीं, उसे पाकिस्तानी ठहरा देना, भारत की पहचान को सीमित करने का एक बहुत बड़ा षड्यंत्र है।
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