व्यासजी तहखाने में हिंदू पूजा की तैयारी कर रहे थे, इधर मुस्लिम पक्ष पूजा रुकवाने की तैयारी में जुटा हुआ था। ज्ञानवापी ‘मस्जिद’ की संचालक अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से आधी रात को सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की गई।
ज्ञानवापी मामले में वाराणसी जिला अदालत ने 31 जनवरी को ऐतिहासिक निर्णय दिया। अदालत ने हिंदुओं को ज्ञानवापी परिसर स्थित सोमनाथ व्यासजी के तहखाने में नियमित पूजा-पाठ का अधिकार देने के साथ 7 दिन के अंदर वहां पूजा कराने की व्यवस्था करने का निर्देश दिया। अदालत द्वारा आदेश जारी करने के मात्र 8 घंटे के भीतर प्रशासन ने बैरिकेडिंग को काट कर तहखाने में नया दरवाजा लगा दिया और अंदर का प्रवेश मार्ग खोल दिया।
उधर, व्यासजी तहखाने में हिंदू पूजा की तैयारी कर रहे थे, इधर मुस्लिम पक्ष पूजा रुकवाने की तैयारी में जुटा हुआ था। ज्ञानवापी ‘मस्जिद’ की संचालक अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से आधी रात को सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की गई। इस पर तड़के लगभग 3 बजे मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने सुनवाई करते हुए मुस्लिम पक्ष को तत्काल राहत देने से इनकार कर दिया और उसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय जाने को कहा।
मुस्लिम पक्ष अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करने की तैयारी में है। वहीं, हिंदू पक्ष ने भी ‘कैवियेट’ दाखिल करने की बात कही है। इसमें न्यायालय से उसका पक्ष सुने बिना एकतरफा आदेश पारित नहीं करने का अनुरोध किया जाएगा। मुस्लिम पक्ष ने जिला अदालत में भी प्रार्थना-पत्र दाखिल कर जिला जज के 31 जनवरी के आदेश पर रोक लगाने की मांग की है। इस पर अपर जिला जज ने कहा कि वर्तमान समय में जिला जज ‘चार्ज’ पर नहीं हैं। उनके आने पर सुनवाई होगी।
जिस दिन अदालत का निर्णय आया, उसी रात 11 बजे वाराणसी के जिलाधिकारी और पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में पूजा-आरती की गई। इसी के साथ बीते वर्ष भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा जो मूर्तियां जिलाधिकारी के संरक्षण में सौंपी गई थीं, उन्हें भी तहखाने में पुन: स्थापित कर दिया गया। इनमें गंगा, पंचमुखी हनुमान, कुबेर, गणेश, शिव आदि की मूर्तियां शामिल हैं।
जिला अदालत में सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने कहा कि व्यास परिवार के किसी भी व्यक्ति ने व्यासजी तहखाने में कभी कोई पूजा नहीं की, क्योंकि वहां कोई मूर्ति ही नहीं थी। दीवानी वाद संख्या-62/1930 दीन मुहम्मद बनाम राज्य सचिव में भी व्यास परिवार के ऐसे किसी अधिकार का उल्लेख नहीं किया गया है। लेकिन हिंदू पक्ष ने मुस्लिम पक्ष के दावे को झूठा करार देते हुए कहा कि खानदानी पुजारी सोमनाथ व्यास परिवार के पास तहखाने का मालिकाना हक था।
‘‘नवंबर 2018 में इस मुकदमे में एक नया मोड़ आया। सर्वोच्च न्यायालय ने एशियन सर्फेसिंग कंपनी के एक मुकदमे की सुनवाई करते हुए निर्णय दिया था कि अगर किसी स्थगन आदेश का विधि सम्मत कारण नहीं है, तो वह स्थगन आदेश 6 महीने के बाद स्वत: निष्प्रभावी हो जाएगा। इसी निर्णय का हवाला देते हुए हमने सिविल जज न्यायालय में प्रार्थना-पत्र दिया और मुकदमे पर सुनवाई शुरू हुई। न्यायालय ने 8 अप्रैल, 2021 को एएसआई से सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया, जिसे अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने सर्वेक्षण के आदेश पर रोक लगा दी। 19 दिसंबर, 2023 को उच्च न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष की सभी पांचों याचिकाओं को खारिज कर दिया। इसके बाद स्वामित्व के वाद की सुनवाई फिर से जिला अदालत में शुरू हो गई है।’’ -अधिवक्ता मदन मोहन यादव
कई वर्षों से तहखाना प्रतिवादी के कब्जे में है। ऐसी स्थिति में किसी रिसीवर को तहखाने में पूजा-प्रबंध कराने का निर्देश देना उचित नहीं है। वादी शैलेंद्र पाठक की ओर से अधिवक्ता मदन मोहन यादव ने कहा कि मंदिर भवन के दक्षिण में स्थित तहखाने में पूजा होती थी। लेकिन दिसंबर 1993 के बाद पुजारी व्यासजी को उस प्रांगण के बैरिकेड वाले क्षेत्र में प्रवेश करने से रोक दिया गया, जिससे तहखाने में होने वाले राग-भोग आदि संस्कार भी रुक गए।
इस बात के पर्याप्त आधार हैं कि वंशानुगत आधार पर व्यासजी ब्रिटिश शासन काल में भी वहां पर पूजा-अर्चना करते थे। उन्होंने दिसंबर 1993 तक प्रश्नगत भवन में पूजा-अर्चना की थी। बाद में तहखाने का दरवाजा हटा दिया गया। तहखाने में बहुत सी प्राचीन मूर्तियां और धार्मिक महत्व की अन्य चीजें मौजूद हैं।
25 सितंबर, 2023 को जिला अदालत में दाखिल याचिका में शैलेंद्र पाठक ने कहा था कि व्यासजी के तहखाने पर अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी जबरन कब्जा कर सकती है। अधिवक्ता मदन मोहन यादव ने बताया कि जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने सोमनाथ व्यास के नाती शैलेंद्र पाठक को तहखाने में पूजा-अर्चना करने का अधिकार दिया है। अब काशी विश्वनाथ ट्रस्ट के तहत तहखाने में पूजा की जाएगी।
पंडित सोमनाथ व्यास, डॉ. रागरंग शर्मा एवं हरिहर पांडेय ने ज्ञानवापी परिसर के स्वामित्व की मांग को लेकर 1991 में याचिका दाखिल की थी। लेकिन बाद में तीनों वादियों की मृत्यु हो गई। 1991 में शैलेंद्र पाठक ने मूल मुकदमे में पक्षकार बनने के लिए अदालत में प्रार्थना पत्र दिया। 1998 में अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की, जिस पर उच्च न्यायालय ने स्थगन आदेश दिया था।
अधिवक्ता मदन मोहन यादव बताते हैं, ‘‘नवंबर 2018 में इस मुकदमे में एक नया मोड़ आया। सर्वोच्च न्यायालय ने एशियन सर्फेसिंग कंपनी के एक मुकदमे की सुनवाई करते हुए निर्णय दिया था कि अगर किसी स्थगन आदेश का विधि सम्मत कारण नहीं है, तो वह स्थगन आदेश 6 महीने के बाद स्वत: निष्प्रभावी हो जाएगा। इसी निर्णय का हवाला देते हुए हमने सिविल जज न्यायालय में प्रार्थना-पत्र दिया और मुकदमे पर सुनवाई शुरू हुई। न्यायालय ने 8 अप्रैल, 2021 को एएसआई से सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया, जिसे अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने सर्वेक्षण के आदेश पर रोक लगा दी। 19 दिसंबर, 2023 को उच्च न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष की सभी पांचों याचिकाओं को खारिज कर दिया। इसके बाद स्वामित्व के वाद की सुनवाई फिर से जिला अदालत में शुरू हो गई है।’’
बहरहाल, 31 वर्ष के लंबे इंतजार के बाद हिंदुओं को व्यासजी के तहखाने में पूजा का अधिकार मिला है। तहखाने के बाहर लोहे की ग्रिल लगाकर श्रद्धालुओं को दर्शन-पूजन कराने की व्यवस्था की जा रही है।
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