भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी की छवि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कर्मठ कार्यकर्ता और पदाधिकारी के रूप में तो सभी जानते हैं, लेकिन उनके जीवन में सामाजिक सेवा का आरंभ पत्रकारिता के माध्यम से हुआ, यह कुछ लोगों को ही पता है। स्वयं लालकृष्ण आडवाणी जी ने वर्ष 2009 में एक आयोजन में बताया था कि उनके सामाजिक जीवन की शुरुआत पत्रकार के रूप में ‘हिन्दुस्थान समाचार’ से जुड़कर हुई है।
हिस के अध्यक्ष अरविन्द भालचंद्र मार्डीकर ने कहा कि यह हम सभी के लिए विशेषकर हमारे समूह के सभी पत्रकार साथियों के लिए गर्व का विषय है कि कभी आडवाणी जी की पत्रकार यात्रा एवं सामाजिक जीवन में सेवा कार्य के शुरुआती दिनों में ‘हिन्दुस्थान समाचार’ बहुभाषी न्यूज एजेंसी उनकी साथी रही है। निश्चित उनका तपमय जीवन अपने आप में सभी के लिए अनुकरणीय है।
उन्होंने कहा, ”आज राजनीतिक तौर पर भाजपा की यात्रा को देख सकते हैं, कभी दो सांसदों से शुरू की गई यात्रा में पिछले लोकसभा चुनाव में 303 सांसद चुनकर आए। भव्य रामलला मंदिर के निर्माण में या कश्मीर समस्या, धारा 370 के खात्मे से लेकर पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के समाधान तक ऐसे ही राष्ट्रहित से जुड़े अन्य तमाम विषयों में आडवाणी जी की महती भूमिका रही है।
इस सदी के बड़े नेताओं में हैं लालकृष्ण आडवाणी
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष और वरिष्ठ संपादक रामबहादुर राय का कहना है कि लालकृष्ण आडवाणी इस सदी के कितने बड़े राजनेता हैं, वह उनके तत्कालीन समय में लिए गए अनेक निर्णयों से पता चलता है । उनके साथ बिताए कई दिन और घण्टों में से से कुछ का जिक्र करते हुए श्रीराय ने कहा, ”1995 में बीजेपी के मुंबई अधिवेशन में अध्यक्ष रहते हुए आखिरी दिन उन्होंने भरी सभा में समापन के पूर्व घोषणा कर दी थी कि केंद्र में जब भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनेगी तो हमारे दल की ओर से अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री होंगे। निश्चित ही यह भारतीय राजनीति की अनोखी घटना है। अनोखी इसलिए है, क्योंकि रामरथ यात्रा के बाद आडवाणी जी भाजपा के नंबर 1 नेता हो गए थे। उस यात्रा के परिणाम स्वरूप 1991 में भाजपा 120 सीटें लोकसभा की जीतने में सफल रही । इस जीत का फायदा यह हुआ कि इससे पहले जो एक आम धारणा थी कि जनसंघ या भाजपा गठबंधन की राजनीति में ही सबसे अधिक फायदे में रहती है। यह धारणा मिथक साबित हुई। 1989 में भाजपा को 86 सीटें मिली थीं, जबकि रथयात्रा के बाद अकेले अपने बूते चुनाव लड़ने पर भाजपा की सीटें कम नहीं हुईं बल्कि बढ़ गईं। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अपने बूते सरकार बनाई और यह रिकार्ड तोड़ 120 सीटें पाने में सफल रही। सत्तारूढ़ पार्टी के विकल्प के रूप में एक वैकल्पिक भूमिका भाजपा की देखने को मिली।”
राय कहते हैं कि हम पत्रकार साथी, गुरुमूर्ति, दीनानाथ मिश्रा, बलवीर पुंज, तपनदास गुप्ता, चंदन मित्रा, अरुण जेटली एवं अन्य कुछ आगे उनसे समय लेकर मिलने गए। उस समय राजेंद्र शर्मा संसदीय सचिव थे, उन्होंने लोकसभा में आडवाणी जी के आते ही सूचना दी और हम सभी उनके कक्ष में मिलने पहुंचे ; यहां पहला प्रश्न आडवाणी से यही किया गया कि आपको बताना होगा कि आखिर आपने यह घोषणा क्यों की? तब वे बोले थे- भाजपा कार्यकर्ताओं, संघ के स्वयंसेवकों और आप जैसे सभी शुभचिंतकों में मेरी लोकप्रीयता ज्यादा होगी, मेरे प्रति आप सभी का श्रद्धा भाव भी अधिक होगा, मैं समझता हूं, किंतु जनता के बीच अटल बिहारी वाजपेयी ही स्वीकृत हैं, मैं नहीं। मैं जानता हूं, समाज में, जनता जनार्दन के बीच वाजपेयी जी की स्वीकार्यता ज्यादा है, इसलिए बिना किसी से पूछे अपनी ओर से यह निर्णय कर लिया। वस्तुत: राजनीति में ये जो मानक आडवाणी जी ने उपस्थित किया, ऐसा कोई दूसरा उदारहण नहीं मिलता है।
विभाजित पाकिस्तान में स्वयंसेवकों को मदद पहुंचाने जा चुके हैं आडवाणी
रामबहादुर राय ने बताया कि यह बात 2010 की है, जब मैं और पूर्व राज्यसभा सांसद आरके सिन्हा दिल्ली में प्रवासी भवन पहुंचे, वहां न्यूज एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार के महाप्रबंधक रहे बालेश्वर अग्रवाल जी के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में अभिनन्दन समारोह चल रहा था, उसमें लालकृष्ण आडवाणी जी आए हुए थे। वहां आडवानी जी ने अपने भाषण में बताया कि मैं हिन्दुस्थान समाचार का प्रतिनिधि होकर कराची गया था। वास्तविकता में पाकिस्तान में विभाजन के बाद रह रहे स्वयंसेवक परिवारों पर भारी विपदा आई हुई थी, उस समय श्रीगुरुजी ने उन्हें पाकिस्तान जाकर उनके हाल जानने और उन्हें आवश्यक मदद पहुंचाने के लिए कहा, लेकिन पाकिस्तान में जाए कौन? यह एक बड़ा प्रश्न सभी के सामने खड़ा हुआ था, तब तय हुआ कि लालकृष्ण आडवाणी को वहां भेजा जाना चाहिए, वह जाकर सभी के सही हालचाल जानेंगे और जो आगे मदद हो सकेगी वह करने का प्रयास किया जाएगा। तब आडवाणी जी पाकिस्तान गए और वहां जाकर जो-जो काम उन्हें सौंपे गए थे, वे सभी उन्होंने किए।
सामाजिक जीवन पत्रकार के नाते हुआ शुरू
रामबहादुर राय ने बताया कि लालकृष्ण आडवाणी के जीवन की यात्रा संघ के स्वयंसेवक के रूप में शुरू होती है, किंतु उनका पहला सामाजिक जीवन भारत सरकार के मान्यता प्राप्त भाषायी पत्रकार के रूप में ‘हिन्दुस्थान समाचार’ के माध्यम से शुरू हुआ है। उन्हें दिल्ली के लोग तो जानते थे, लेकिन उनकी सबसे पहले राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा तब शुरू हुई जब वे बलराज मधोक और वाजपेयी जी के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने । यहीं से उनकी अखिल भारतीय पहचान बनी। मेरा उनसे पहला संपर्क बिहार आन्दोलन के समय हुआ, तब मेरा मीसा संबंधी केस उच्चतम न्यायालय तक पहुंचा था। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में ‘हिन्दुस्थान समाचार’ में रहते हुए पत्रकारिता की ट्रेनिंग के दौरान मेरा जब उनसे मिलना हुआ तो उन्होंने मेरा परिचय अपने साथ आए मधु दण्डवते से कराया और कहा कि हम लोगों ने इन्हें चुनाव लड़ाने के लिए सोचा था, लेकिन इन्होंने अपने लिए पत्रकारिता चुनी है। मेरा उनके साथ कुछ यात्राओं में भी साथ रहना हुआ।
अविभाजित भारत के कराची में जन्म और बाम्बे से लॉ की पढ़ाई
लालकृष्ण आडवाणी का जन्म पाकिस्तान के कराची में आठ नवंबर, 1927 को हुआ था। अपनी आरंभिक शिक्षा उन्होंने कराची के सेंट पैट्रिक हाई स्कूल से ग्रहण की, आगे हैदराबाद, सिंध के डीजी नेशनल स्कूल में अध्ययन जारी रखा । भारत विभाजन की विभीषिका के बीच हिन्दुओं पर जिंदा बने रहने के आए भारी जीवन संकट के बीच विवशता में उनके परिवार को पाकिस्तान छोड़कर 1946 में भारत आना पड़ा था । तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री गुरुजी ने पाकिस्तान में रह रहे स्वयंसेवकों से कहा था कि वे भारत के उस हिस्से में आ जाएं जहां बहुसंख्यक हिन्दू रहते हैं, वहां भविष्य में कुछ भी घट सकता है। इसके बाद उनका परिवार मुंबई आकर बस गया।
मुंबई से हुई पत्रकार जीवन की शुरुआत
आडवाणी जी ने मुंबई के लॉ कॉलेज ऑफ द बॉम्बे यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई पूरी की । मुंबई में रहते हुए ही वह संघ कार्य करते रहे और यहीं पर श्री आडवानी, शिवराम शंकर आपटे उपाख्य दादासाहेब के संपर्क में आए और फिर पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को विशेषकर उनके जीवन में कष्टों और उसके निवारण के लिए अपनी कलम चलाई। उस समय अमूमन न्यूज एजेंसी की पत्रकारिता में यह आज भी है कि कई स्टोरी नाम से नहीं जाती, वह एजेंसी के नाम से ही जारी होती है। अत: लालकृष्ण आडवानी ने भी कई स्टोरी न्यूज एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार के लिए फाइल कीं। तत्कालीन समय में बापूराव लेले, रामशंकर अग्निहोत्री, नारायण राव तर्टे, बालेश्वर अग्रवाल जैसे कई मूर्धन्य पत्रकारों के साथ आपने कार्य किया ।
आर्गनाइजर के लिए भी किया काम
आडवाणी जी के पत्रकारिता जीवन को नजदीक से देख चुके माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति, वरिष्ठ पत्रकार अच्युतानंद मिश्र ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया, ”श्री आडवानी अपने समय के श्रेष्ठ पत्रकारों में रहे हैं। मैं जब पाञ्चजन्य के लिए पत्रकारिता कर रहा था, उस समय वे अंग्रेजी समाचार पत्र ऑर्गनाइजर के लिए पत्रकारिता कर रहे थे। जिस प्रकार कभी किसी ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से पूछा था कि आप यदि राजनीति में नहीं आते तो क्या करते? तब उन्होंने जो जवाब दिया था कि मैं राजनीति में नहीं आता तो पत्रकार होता, वैसे ही यही बात आडवाणी जी के जीवन पर फिट बैठती है, वे भी यदि राजनीति में नहीं आते तो आजीवन वह पत्रकार ही रहते।”
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