वाराणसी। ज्ञानव्यापी परिसर में स्थित व्यास जी के तहखाने में आज प्रातः पूजा पाठ शुरू हो गई। वाराणसी न्यायालय के आदेश के बाद 1993 के बाद आज पूजा शुरू हुई। जिलाधिकारी और पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में पूजा शुरू की गई। बुधवार को वाराणसी जिला जज ने अपने आदेश में कहा कि जिला मजिस्ट्रेट, वाराणसी / रिसीवर को निर्देश दिया जाता है कि यह सेटेलमेण्ट रकबा नंबर -9130 थाना-चौक, जिला वाराणसी में स्थित भवन के दक्षिण की तरफ स्थित तहखाने जो कि वादग्रस्त सम्पत्ति है, वादी तथा काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड के द्वारा नाम निर्दिष्ट पुजारी से पूजा, राग-भोग, तहखाने में स्थित मूर्तियों का कराएं और इस उद्देश्य के लिए 7 दिन के भीतर लोहे की बाड़ आदि में उचित प्रबंध करें।
मुकदमे के वादी के अधिवक्ता ने बहस करते हुए तर्क दिया था कि न्यायालय ने दिनांक 17 जनवरी 2024 को यह आदेश पारित किया था कि जिला मजिस्ट्रेट वाराणसी को रकबा नंबर 9130 थाना-चौक, जिला वाराणसी में स्थित भवन के दक्षिण की तरफ स्थित तहखाने (वादग्रस्त सम्पत्ति) का रिसीवर नियुक्त किया जाता है। रिसीवर जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया जाता है कि वादग्रस्त सम्पत्ति को दौरान वाद अपनी अभिरक्षा और नियंत्रण में और सुरक्षित रखें और दौरान वाद उसकी स्थिति में कोई परिवर्तन न होने दें।
प्रार्थना पत्र में यह उल्लेख किया गया कि मंदिर भवन के दक्षिण दिशा में स्थित तहखाने में मूर्ति की पूजा होती थी। माह दिसम्बर 1993 के बाद पुजारी श्री व्यास जी को उक्त प्रांगण के बेरिकेट वाले क्षेत्र में प्रवेश करने से रोक दिया गया। इस कारण तहखाने में होने वाले राग-भोग आदि संस्कार भी रूक गये। इस बात के पर्याप्त आधार है कि वंशानुगत आधार पर पुजारी श्री व्यास जी ब्रिटिश शासन काल में भी वहाँ कब्जे में थे और उन्होंने माह दिसम्बर 1993 तक यहाँ प्रश्नगत भवन में पूजा अर्चना की है। बाद में तहखाने का दरवाजा हटा दिया गया। हिन्दू धर्म की पूजा से सम्बन्धित सामग्री बहुत सी प्राचीन मूर्तियों और धार्मिक महत्व की अन्य सामग्री उक्त तहखाने में मौजूद हैं। तहखाने में मौजूद मूर्तियों की पूजा नियमित रूप से की जानी आवश्यक है। राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने बगैर किसी विधिक अधिकार के तहखाने के भीतर पूजा माह दिसम्बर 1993 से रोक दी थी ।
प्रार्थना पत्र के विरुद्ध प्रतिवादी ने आपत्ति पत्र प्रस्तुत किया था जिसमें कहा था कि व्यास परिवार के किसी भी व्यक्ति ने कभी उक्त तहखाने में कोई पूजा नहीं की। अतः माह दिसम्बर 1993 के बाद पूजा करने से रोकने का सवाल ही नहीं उठता। उक्त स्थान पर कभी भी कोई तथाकथित मूर्ति नहीं थी। वादी का यह कहना असत्य है कि खानदानी पूजारी व्यास परिवार के लोग तहखाने पर काबिज थे। तहखाना प्रतिवादी के कब्जे में चला आ रहा है। तहखाने में किसी देवी देवता की मूर्ति नहीं थी. ऐसी हालत में किसी रिसीवर को तहखाने में प्रबन्ध व पूजा कराने का निर्देश दिया जाना उचित नहीं है। दीवानी वाद संख्या-62/1930 दीन मुहम्मद बनाम सकेटरी ऑफ स्टेट में भी व्यास परिवार के ऐसे किसी अधिकार का उल्लेख नहीं किया गया है। इन कथनों के साथ प्रतिवादी ने प्रार्थना पत्र का विरोध किया गया।
दरअसल, वर्ष 1991 में हिन्दुओं की तरफ से पंडित सोमनाथ व्यास, डा.रागरंग शर्मा एवं हरिहर पाण्डेय के द्वारा ज्ञानवापी परिसर के स्वामित्व की याचिका योजित की गई थी। वाद में कहा गया कि वर्ष 18 अप्रैल 1669 में औरंगजेब ने फरमान जारी करके मंदिर को तोड़ा था। यह पूरी सम्पत्ति आदि विशेश्वर भगवान की है। उस परिसर को पूर्ण रूप से हिन्दुओं को सौंप दिया जाना चाहिए। वहां पर अन्य किसी का कोई दावा नहीं बनता है। बीतते समय के साथ तीनों वादकारियों की मृत्यु हो गई। सोमनाथ व्यास के नाती शैलेन्द्र पाठक अब इस मुकदमे के पक्षकार बनने की पैरवी कर रहे हैं। यह मुकदमा वर्ष 1991 में दाखिल हुआ था। करीब सात वर्ष बाद वर्ष 1998 में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वर्ष 1998 में इस मुकदमे में स्थगन आदेश पारित किया था। अधिवक्ता मदन मोहन बताते हैं कि “नवंबर 2018 में इस मुकदमे में एक नया मोड़ आया। उच्चतम न्यायालय ने एशियन सर्फेसिंग कंपनी के एक मुकदमे की सुनवाई करते हुए निर्णय दिया कि अगर किसी स्थगन आदेश का विधि सम्मत कारण नहीं है तो वह स्थगन आदेश 6 महीने के बाद स्वत: निष्प्रभावी हो जाएगा। उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय का हवाला देते हुए मैंने सिविल जज सीनियर डिवीजन, वाराणसी जनपद के न्यायालय में प्रार्थना पत्र दिया गया और मुकदमे का विचारण आरंभ हुआ। सिविल जज सीनियर डिवीजन ने सुनवाई के बाद 8 अप्रैल 2021 को एएसआई सर्वे का आदेश दिया। इसके बाद अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में उस आदेश को चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने सर्वे के आदेश को स्टे कर दिया। उसके बाद गत 19 दिसंबर 2023 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष की सभी पांचों याचिकाओं को खारिज कर दिया। इसके बाद मुकदमे की सुनवाई का रास्ता साफ हो गया।”
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