राम का पूरा जीवन समस्त जीवों के अधिकारों की रक्षा की सीख देता है
मर्यादापुरुषोत्तम राम का पूरा जीवन मानवाधिकार और नैतिक मूल्यों को समर्पित रहा। राम ने अपने पिता राजा दशरथ का सम्मान करते हुए स्वेच्छा से वनवास जाने का निर्णय लिया। यह नैतिक आचरण और पिता के वचन के प्रति सम्मान का गहरा उदाहरण है। यह आत्म-त्याग, पारिवारिक कर्तव्य और सम्मान के लिए श्रीराम के सत्य और धर्म के सिद्धांतों के प्रति उनके अनुरूपण को दर्शाता है।
सिंहासन के अधिकारी होने के बावजूद स्वेच्छा से उनका वनवास, नैतिक अखंडता और अपने कर्तव्यों को पूरा करने के महत्व का एक शक्तिशाली उदाहरण स्थापित करता है। श्रीराम वन में शबरी की कुटिया में गए, जो वंचित जाति की महिला थीं। शबरी ने राम को फल अर्पित किए, जिन्हें उन्होंने खुद चखा था ताकि वे खट्टे न हों। राम ने उनकी भक्ति का सम्मान किया और उनके जूठे फल खाए।
वनवास के दौरान श्रीराम ने स्वयं को साधुओं और निर्दोष संन्यासियों का रक्षक बनाया, जो राक्षसों द्वारा आतंकित किए जा रहे थे। श्रीराम ने बाली द्वारा अन्यायपूर्वक छीने गए राज्य को पुन: प्राप्त करने में सुग्रीव की सहायता की। बदले में, सुग्रीव और वानरों ने सीता की खोज में राम की सहायता की। यह प्रसंग राम के न्याय और दीन-हीन लोगों के प्रति सहायता की भावना को दर्शाता है। श्रीराम का लंका के राजा रावण के विरुद्ध युद्ध, मृत्यु के उपरांत श्रीराम और लक्ष्मण का रावण के प्रति आचरण अति आधुनिक युद्ध संबंधित नियमों को भी चुनौती देता है। श्रीराम ने रावण के भाई विभीषण को अपनी सेना में स्थान दिया।
सीता की मुक्ति के बाद श्रीराम को उनकी पवित्रता के बारे में प्रश्नों का सामना करना पड़ा। कुछ लोग इसे सामाजिक मानदंडों और एक राजा के रूप में सार्वजनिक नैतिकता को बनाए रखने के कर्तव्य के रूप में देखते हैं, जबकि अन्य इसे एक ऐसे क्षण के रूप में मानते हैं, जहां राम ने व्यक्तिगत संबंधों के ऊपर अपने राजा के कर्तव्यों को प्राथमिकता दी। यह घटना शासन में व्यक्तिगत मूल्यों और सार्वजनिक जिम्मेदारियों के बीच जटिल अंतर्संबंधों को दर्शाती है।
शंबूक वध अपने आप में एक बहुत ही गंभीर घटना है, जबकि राम का संपूर्ण जीवन सामाजिक न्याय, समरसता और समानता से परिपूर्ण है। इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि यह घटना सच नहीं है। शंबूक वध को वर्णित करने वाला उत्तरकांड मूल वाल्मीकि रामायण का हिस्सा नहीं था।
राम राज्य एक आदर्श सामाजिक अवस्था का प्रतीक है, जहां सभी नागरिकों के अधिकारों और कल्याण की रक्षा की जाती है। रामायण में वर्णित ये घटनाएं राम की दया, न्याय और समतावादी गुणों को उजागर करती हैं, जिससे वे गरीबों और हाशिए पर रहने वाले लोगों के संरक्षक के रूप में उभरते हैं।
श्रीराम के कार्यों को अक्सर न्याय, धर्मनिष्ठा और नैतिक व्यवस्था की जीत के रूप में देखा जाता है। उनकी कार्यवाही संतुलन की पुनर्स्थापना और निर्दोषों की रक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को प्रतिबिंबित करती है। भारत की वर्तमान सामाजिक, न्यायिक, संवैधानिक व्यवस्था अपने आप में एक महत्वपूर्ण काम कर रही है। आशा है कि भारतीय नेतृत्व नए भारत को चित्रित करते समय श्रीराम और उनके राज्य के मूल्यों और आदर्शों को मार्गदर्शक कारक के तौर पर अपनाएगा।
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