वाराणसी जिला जज ने अपने आदेश में कहा कि जिला मजिस्ट्रेट, वाराणसी / रिसीवर को निर्देश दिया जाता है कि यह सेटेलमेण्ट रकबा नंबर -9130 थाना-चौक, जिला वाराणसी में स्थित भवन के दक्षिण की तरफ स्थित तहखाने जो कि वादग्रस्त सम्पत्ति है, वादी तथा काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड के द्वारा नाम निर्दिष्ट पुजारी से पूजा, राग-भोग, तहखाने में स्थित मूर्तियों का कराएं और इस उद्देश्य के लिए 7 दिन के भीतर लोहे की बाड़ आदि में उचित प्रबंध करें।
वादी का तर्क
मुकदमे के वादी के अधिवक्ता ने बहस करते हुए तर्क दिया कि न्यायालय ने दिनांक 17 जनवरी 2024 को यह आदेश पारित किया था कि जिला मजिस्ट्रेट वाराणसी को रकबा नंबर 9130 थाना-चौक, जिला वाराणसी में स्थित भवन के दक्षिण की तरफ स्थित तहखाने (वादग्रस्त सम्पत्ति) का रिसीवर नियुक्त किया जाता है। रिसीवर जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया जाता है कि वादग्रस्त सम्पत्ति को दौरान वाद अपनी अभिरक्षा और नियंत्रण में और सुरक्षित रखें और दौरान वाद उसकी स्थिति में कोई परिवर्तन न होने दें।
प्रार्थना पत्र में यह उल्लेख किया गया कि मंदिर भवन के दक्षिण दिशा में स्थित तहखाने में मूर्ति की पूजा होती थी। माह दिसम्बर 1993 के बाद पुजारी श्री व्यास जी को उक्त प्रांगण के बेरिकेट वाले क्षेत्र में प्रवेश करने से रोक दिया गया। इस कारण तहखाने में होने वाले राग-भोग आदि संस्कार भी रुक गये। इस बात के पर्याप्त आधार है कि वंशानुगत आधार पर पुजारी श्री व्यास जी ब्रिटिश शासन काल में भी वहाँ कब्जे में थे और उन्होंने माह दिसम्बर 1993 तक यहाँ प्रश्नगत भवन में पूजा अर्चना की है। बाद में तहखाने का दरवाजा हटा दिया गया। हिन्दू धर्म की पूजा से सम्बन्धित सामग्री बहुत सी प्राचीन मूर्तियों और धार्मिक महत्व की अन्य सामग्री उक्त तहखाने में मौजूद हैं। तहखाने में मौजूद मूर्तियों की पूजा नियमित रूप से की जानी आवश्यक है। राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने बगैर किसी विधिक अधिकार के तहखाने के भीतर पूजा माह दिसम्बर 1993 से रोक दी थी।
प्रतिवादी का तर्क
प्रार्थना पत्र के विरुद्ध प्रतिवादी ने आपत्ति पत्र प्रस्तुत किया था, जिसमें कहा था कि व्यास परिवार के किसी भी व्यक्ति ने कभी उक्त तहखाने में कोई पूजा नहीं किया। अतः माह दिसम्बर 1993 के बाद पूजा करने से रोकने का सवाल ही नहीं उठता। उक्त स्थान पर कभी भी कोई तथाकथित मूर्ति नहीं थी। वादी का यह कहना असत्य है कि खानदानी पुजारी व्यास परिवार के लोग तहखाने पर काबिज थे। तहखाना प्रतिवादी के कब्जे में चला आ रहा है। तहखाने में किसी देवी-देवता की मूर्ति नहीं थी। ऐसी हालत में किसी रिसीवर को तहखाने में प्रबन्ध व पूजा कराने का निर्देश दिया जाना उचित नहीं है। दीवानी वाद संख्या-62/1930 दीन मुहम्मद बनाम सकेटरी ऑफ स्टेट में भी व्यास परिवार के ऐसे किसी अधिकार का उल्लेख नहीं किया गया है। इन कथनों के साथ प्रतिवादी ने प्रार्थना पत्र का विरोध किया गया था।
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