कर्पूरी ठाकुर : भारत के रत्न, जन के नायक

जननायक कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती पर केंद्र सरकार ने उन्हें भारतरत्न सम्मान

Published by
संजीव कुमार

कर्पूरी ठाकुर ऐसी विभूति थे, जो सही मायनों में जननायक थे। समाज के पिछड़ों, वंचितों और हाशिए पर खड़े जन की पीड़ा को दूर करने में उनका कोई सानी नहीं था

बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रहे जननायक कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती से एक दिन पहले यानी 23 जनवरी को केंद्र सरकार ने उन्हें भारतरत्न सम्मान देने की घोषणा की। इसके बाद दिल्ली से पटना तक कांग्रेस, राजद आदि दलों के नेताओं ने जो बयानबाजी की, वह उनकी हताशा को ही दिखा गई। जयराम रमेश ने कहा कि इस घोषणा से केन्द्र सरकार पाखंड कर रही है। यह उस पार्टी के नेता का बयान है, जिसके दो नेताओं, जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने तो प्रधानमंत्री रहते हुए खुद को भारतरत्न से सम्मानित कर लिया था। ऐसे ही राजीव गांधी के निधन के दो महीने के अंदर उन्हें भारतरत्न दे दिया गया था।

अब कांग्रेस उन कर्पूरी ठाकुर को भारतरत्न देने को पाखंड बता रही है, जिन्होंने अपने लिए एक घर तक नहीं बनवाया। जबकि वे दो बार मुख्यमंत्री, एक बार उप मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक रहे। उनकी सादगी ऐसी थी कि कई बार वे लंबी यात्राओं के क्रम में एक ही कपड़ा पहने होते, जब नहाते तो उसे ही सुखाकर फिर पहन लेते थे। उन्हें गांव और गरीबों के बीच ही रहना पसंद था। कर्पूरी ठाकुर रिक्शे से ही चलते थे, क्योंकि उनकी वास्तविक आय कार खरीदने और उसका खर्च वहन करने की अनुमति नहीं देती थी।

आज जब कर्पूरी ठाकुर को सम्मान मिला है, तो राजद अध्यक्ष लालू यादव ने कहा है कि इसके लिए उनकी पार्टी ने लंबे समय तक संषर्घ किया है। जबकि इन्हीं लालू ने 1980 के दशक में कर्पूरी ठाकुर को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया था। वे उन्हें ‘कपटी ठाकुर’ कहते थे। वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर ने अपनी किताब ‘ब्रदर्स बिहारी’ में इसका उल्लेख किया है। वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र मिश्र कहते हैं कि लालू प्रसाद कर्पूरी ठाकुर को कभी पसंद नहीं करते थे।

कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर के पितौझिया गांव (अब कर्पूरी ग्राम) में हुआ था। 1942 में वे कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर गांधी जी के आह्वान पर भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े थे। आठ भाई-बहनों में कर्पूरी ठाकुर सबसे बड़े थे। कर्पूरी जी गरीबी में पले-बढ़े। गरीबी ऐसी थी कि सातवीं कक्षा तक उन्हें चप्पल तक नसीब नहीं हुई थी।
भारत की स्वतंत्रता के बाद कर्पूरी जी 1952 में पहली बार विधायक बने। उसके बाद लगातार जन प्रतिनिधि बनकर सेवा की। केवल 1984 में वे चुनाव हारे थे।

ठकैता डोम को दी थी मुखाग्नि

कर्पूरी ठाकुर के स्मृति-ग्रंथ में मो. आबिद हुसैन ने ‘जननायक’ के कई किस्सों को शामिल किया है। एक किस्सा नगर निगम के सफाईकर्मी ठकैता डोम की मौत का भी है। 1977 की बात है। उस समय कर्पूरी जी मुख्यमंत्री थे। उन्हीं दिनों ठकैता डोम की पुलिस हिरासत में मौत हो गई। कर्पूरी ठाकुर की खासियत थी कि गरीब-गुरबों पर कहीं भी जुल्म होता था, तो वे तुरंत पहुंच जाते थे।

ठकैता की कोई संतान नहीं थी। उन्हें कोई मुखाग्नि देने वाला नहीं था। इस सूचना ने ठाकुर को भावुक कर दिया। उनकी आंखें भर आईं। वह बेहिचक ठकैता डोम के गांव पहुंचे और उनके शव को मुखाग्नि दी। इसके साथ ही उन्होंने इस मौत के लिए पुलिस की गलती मानी और अपनी सरकार की नाकामी को स्वीकार किया। ऐसी विभूति को तो बहुत पहले ही भारतरत्न मिलना चाहिए था। खैर, यह कार्य भी मोदी सरकार के हिस्से ही था। अब जब मोदी सरकार ने उन्हें यह सम्मान दे दिया है तो कुछ लोग झूठा श्रेय लेने के लिए निकल पड़े हैं। लेकिन इन नेताओं को पता होना चाहिए कि जनता सब देख रही है।

Share
Leave a Comment

Recent News