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सूर्यवंशी राम पर सूर्य की आभा

राम मंदिर को इस तरह बनाया गया है कि 1,000 वर्ष तक रामनवमी के दिन सूर्य की किरणें रामलला पर पड़ेंगी

by आर.के. सिन्हा
Jan 31, 2024, 06:34 am IST
in भारत, उत्तर प्रदेश, संस्कृति, आजादी का अमृत महोत्सव
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नवनिर्मित मंदिर राजस्थान के मकराना संगमरमर की प्राचीन श्वेत शोभा से सुसज्जित है। मंदिर में देवताओं की उत्कृष्ट नक्काशी कर्नाटक के चमोर्थी बलुआ पत्थर पर की गई है, जबकि प्रवेश द्वार की भव्य आकृतियों में राजस्थान के बंसी पहाड़पुर के गुलाबी बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है।

इस समय भारत ही नहीं, बल्कि विश्वभर के रामभक्तों के मन में भावनाएं हिलोरें मार रही हैं। भारत में कश्मीर में बर्फ से ढकी ऊंची चोटियों से लेकर कन्याकुमारी में धूप से सराबोर समुद्र तटों तक राम नाम की गूंज है। यह सब उस राम मंदिर के कारण है, जिसे बनाने के लिए सनातनियों को लगभग 500 वर्ष तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। अयोध्या की सड़कों पर जो दृश्य इस वक्त दिख रहा वह तो अद्भुत है।

आर.के. सिन्हा
वरिष्ठ स्तंभकार और पूर्व सांसद

नवनिर्मित मंदिर राजस्थान के मकराना संगमरमर की प्राचीन श्वेत शोभा से सुसज्जित है। मंदिर में देवताओं की उत्कृष्ट नक्काशी कर्नाटक के चमोर्थी बलुआ पत्थर पर की गई है, जबकि प्रवेश द्वार की भव्य आकृतियों में राजस्थान के बंसी पहाड़पुर के गुलाबी बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है।

इस मंदिर के लिए भक्तों का किया गया योगदान निर्माण सामग्री से कहीं आगे तक जाता है। मंदिर में गुजरात की उदारता उपहार स्वरूप 2,100 किलोग्राम की शानदार अष्टधातु की घंटी के रूप में दिखती है। इसके साथ ही गुजरात ने एक विशेष ‘नगाड़ा’ ले जाने वाला 700 किलोग्राम का एक रथ भी दिया है। भगवान राम की मूर्ति बनाने में इस्तेमाल किया गया काला पत्थर कर्नाटक से आया है।

अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा ने जटिल नक्काशीदार लकड़ी के दरवाजे और हस्तनिर्मित संरचना भेंट की है। इस भव्य और दिव्य मंदिर के लिए योगदान की सूची यहीं खत्म नहीं होती। पीतल के बर्तन उत्तर प्रदेश से आए हैं। यहां राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी सराहना करनी होगी, जिन्होंने राम मंदिर के निर्माण कार्य की गति को बारीकी से खुद देखा। राम मंदिर की कहानी सिर्फ सामग्री और उसकी भौगोलिक उत्पत्ति के बारे में बताकर ही समाप्त नहीं होती है। यह उन अनगिनत हजारों प्रतिभाशाली शिल्पकारों और कारीगरों की भक्तिपूर्ण मेहनत की कहानी है, जिन्होंने मंदिर निर्माण के इस पवित्र प्रयास में अपना दिल, आत्मा और कौशल डाला है।

हर पत्थर, हर नक्काशी, हर घंटी, हर संरचना ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की कहानी कहती है। राम मंदिर निर्माण में सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (रुड़की), राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (हैदराबाद), इंडियन इंस्टीट्यूट आफ एस्ट्रोफिजिक्स (बेंगलूरु) और इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी का भी अहम योगदान रहा।

मंदिर के निर्माण में कहीं भी सीमेंट, लोहा या इस्पात का उपयोग नहीं किया गया है। तीन मंजिला मंदिर का संरचनात्मक डिजाइन भूकंप प्रतिरोधी बनाया गया है और यह हजार वर्ष तक रिक्टर पैमाने पर 8 तीव्रता के मजबूत भूकंपीय झटकों को बर्दाश्त कर सकता है।

कुछ आईआईटी विशेषज्ञ सलाहकार समिति का भी हिस्सा थे। मंदिर को बनाने में इसरो की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का भी उपयोग किया गया है। राम मंदिर की एक अनूठी विशेषता इसका सूर्य तिलक तंत्र है, जिसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि अगले एक हजार वर्ष तक हर वर्ष श्रीरामनवमी के दिन दोपहर 12 बजे लगभग 6 मिनट के लिए सूर्य की किरणें सीधी भगवान राम की मूर्ति के माथे पर पड़ेंगी।

Topics: मंदिर में गुजरात की उदारताEcho of Ram's nameMakrana marble of Rajasthan's newly built templeShri Ram NavamiGujarat's generosity in the templeराम नाम की गूंजनवनिर्मित मंदिर राजस्थान के मकराना संगमरमरश्रीरामनवमी
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