प्राण-प्रतिष्ठा का अनुष्ठान सात दिन तक चला। इस दौरान राम जन्मभूमि परिसर में साढ़े पांच लाख मंत्रों का जाप किया गया। इसके लिए वाराणसी और देश के अन्य हिस्सों से 121 वैदिक कर्मकांडी ब्राह्मणों को बुलाया गया था। प्राण-प्रतिष्ठा से पहले विग्रह का द्वादश अधिवास किया।
16 जनवरी को प्रायश्चित और कर्मकूटि पूजन हुआ।17 जनवरी को रामलला के विग्रह का मंदिर परिसर में प्रवेश करवाया गया। 18 जनवरी की शाम को तीर्थ पूजन, जल यात्रा, जलाधिवास और गंधाधिवास,19 जनवरी को प्रात: औषधाधिवास, केसराधिवास, घृताधिवास हुआ जबकि शाम को धान्याधिवास किया गया। 20 जनवरी को प्रात: शर्कराधिवास, फलाधिवास तथा शाम को रामलला की प्रतिमा का पुष्पाधिवास किया गया। 21 जनवरी को प्रात: मध्याधिवास और शाम को शय्याधिवास अनुष्ठान सम्पन्न हुआ।
पहली बार ऐसे किसी आयोजन में पहाड़ों, वनों, तटीय क्षेत्रों, द्वीपों आदि के वासियों ने एक स्थान पर प्रतिभाग किया गया। शैव, वैष्णव, शाक्त, गाणपत्य, पात्य, सिख, बौद्ध, जैन, दशनाम शंकर, रामानंद, रामानुज, निम्बार्क , माध्व, विष्णु नामी, रामसनेही, घिसापंथ, गरीबदासी, गौड़ीय, कबीरपंथी, वाल्मीकि, शंकरदेव (असम), माधव देव, इस्कॉन, रामकृष्ण मिशन, चिन्मय मिशन, भारत सेवाश्रम संघ, गायत्री परिवार, अनुकूल चंद्र ठाकुर परंपरा, ओडिशा के महिमा समाज, अकाली, निरंकारी, नामधारी (पंजाब), राधास्वामी और स्वामिनारायण, वारकरी, वीर शैव इत्यादि कई सम्मानित परंपराओं के प्रतिनिधि प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में शामिल हुए।
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