पूरी दुनिया में 300 से अधिक रामायण अथवा राम कथाएं प्रचलित हैं। जैसे भारत के हर प्रांत या क्षेत्र की अपनी भाषा में रामकथा मिलती है, वैसे ही संसार के अनेक देशों के विद्वानों ने अपनी स्थानीय भाषा में रामकथाएं रची हैं। कहीं कहीं नामों और घटनाक्रमों में कुछ अंतर अवश्य दिखता है, पर मूल कथा यथावत है।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम और उनकी यशगाथा रामायण भारत में नहीं अपितु पूरे संसार रची-बसी है । 20 से अधिक देशों में वहां की अपनी लोकभाषा में रामायण उपलब्ध है। अनेक देशों के पुरातात्विक अनुसंधान में राम सीता जैसी छवियां, काष्ठ की कृतियां या भीत्ति चित्र मिले हैं।
राम और रामायण की व्यापकता को समझना है तो हमें दो बातों से ऊपर ऊठना होगा । एक तो ऊपर उठना होगा संसार के वर्तमान स्वरूप की जीवन शैली एवं साहित्य से और दूसरे कुछ पश्चिमी समाज शास्त्रियों द्वारा स्थापित सामाजिक विकास के सिद्धांत से। इसका कारण यह है कि हजारों वर्ष पहले जैसी दुनिया थी, आज वैसी नहीं है । पूरा स्वरूप बदल गया है। इस बीच जो भी विचार आये, मत आये या पंथ आये उनके अनुयायियों ने पूरे संसार को अपने ढंग में ढालने का प्रयास किया।
नया स्वरूप देने के लिये अतीत के चिन्हों को पूरी तरह समाप्त करने के अभियान चले। और दूसरे, कुछ समाज शास्त्रियों ने यह सिद्धांत स्थापित करने का प्रयास किया कि आज के संसार में विकास का जो भी स्वरूप है, वह केवल पांच हजार वर्ष की यात्रा है। इसलिये अतीत के जो भी प्रतीक शोध में सामने आये या कथा साहित्य उपलब्ध हुआ उसका काल-खंड इसी अवधि के भीतर निर्धारित किया गया। और जो नहीं कर पाए उसे विश्व का आश्चर्य कह कर विराम लगाया। जबकि पुरातात्विक अन्वेषण कर्ताओं और भूवैज्ञानिकों के निष्कर्ष बहुत अलग हैं।
मोहन जोदड़ो और हड़प्पा, मिस्र की खुदाई, समन्दर में द्वारिका की खोज, कुरुक्षेत्र की खुदाई, नर्मदा घाटी में मिले मानव सभ्यता के चिन्ह कुछ अलग कहानी कहते हैं। यदि हमें रामजी और रामकथा की वैश्विकता समझनी है तो इन सबसे ऊपर उठना होगा। भारतीय वांग्मय में रामजी के अवतार का जो समय माना जाता है वह नासा द्वारा रामसेतु के काल निर्धारण के आसपास बैठता है। यदि हम इस संदर्भ में मीमांसा करेंगें तभी रामजी और रामायण की व्यापकता को समझ सकेंगे। और यह तथ्य स्वयं ही प्रमाणित हो जायेगा कि राम केवल भारत या एशिया तक सीमित नहीं हैं अपितु विश्व व्यापी हैं।
हजारों वर्ष पहले के यूरोप में भी रामजी झलक देखी जा सकती है। एक भी एशियाई देश ऐसा नहीं जहां पुरातात्विक अनुसंधान में रामजी की स्मृतियां, चित्र या साहित्य न मिला हो अपितु अनेक यूरोपीय देशों की खुदाई में निकले चित्र भी राम जी के कथानक से मेल खाते हैं। पूरी दुनिया में 300 से अधिक रामायण अथवा राम कथाएं प्रचलित हैं। जैसे भारत के हर प्रांत या क्षेत्र की अपनी भाषा में रामकथा मिलती है, वैसे ही संसार के अनेक देशों के विद्वानों ने अपनी स्थानीय भाषा में रामकथाएं तैयार की हैं। कहीं कहीं नामों और घटनाक्रमों में कुछ अंतर अवश्य आता है, ऐसा अंतर तो वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में भी है। पर मूल कथा यथावत है। रामकथा या रामायण ऐसा अद्भुत ग्रंथ है जिस पर संसार भर में सर्वाधिक मौलिक रचनाएं मिलती हैं। यद्यपि संसार में सर्वाधिक बिकने वाले पांथिक ग्रंथों में रामायण पहले स्थान पर नहीं है।
एशियाई देशों में राम और रामायण
एक समय था जब संपूर्ण एशिया में सनातन संस्कृति का परचम लहराया करता था। लेकिन आज एशियाई देशों का स्वरूप ही नहीं राजनीतिक और भौगोलिक सीमाएं भी बदल गई हैं। पंथ और जीवन की मान्यताएं ही नहीं, प्राथमिकताएं भी बदल गई हैं। अधिकांश देशों की अपनी संस्कृति और पंथ में आमूल परिवर्तन हो गया है पर उनके लोक जीवन में रामजी का व्यक्तित्व और रामायण का स्थान वैसा ही बना हुआ है। इन देशों में श्रीलंका, म्यांमार, नेपाल के अतिरिक्त इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, थाईलैंड, कंबोडिया, मंगोलिया, तुर्किस्तान, फिलीपींस आदि हैं। इन सभी देशों के साहित्य में रामकथा का प्रभाव है। कहीं कठपुतलियों के माध्यम से रामकथा का मंचन होता है तो कहीं लोक नृत्य के माध्यम से। इन सभी देशों के विद्वानों ने अपनी भाषा और शैली में रामायण या रामकथा की रचना की है।
सुदूर कंबोडिया में रामकेर्ति और रीमकेर रामायण, लाओस में फ्रलक-फ्रलाम, मलेशिया में हिकायत सेरीराम, थाईलैंड में रामकिएन तो नेपाल में रामायण नाम से ही रचना हुई है। इन देशों में रामकथा के ये ग्रंथ तो सर्वाधिक प्रचलित हैं। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य विद्वानों ने भी रामकथा लिखी है। इंडोनेशिया में 6 से अधिक रामायण या रामकथाएं प्रचलित हैं, श्रीलंका के विद्वानों ने तो संस्कृत, पाली और सिंहली भाषा में रामकथा की रचना की है। श्रीलंका में रामायण की ये रचनाएं 700 वर्ष ईसा पूर्व की हैं। श्रीलंका में संस्कृत में भी रामायण की रचना हुई है। इसके रचयिता कुमार दास हैं। श्रीलंका में सर्वाधिक लोकप्रिय ‘जानकी हरण’ संस्कृत भाषा में ही है। इसके अतिरिक्त सिंहली भाषा में ‘मलेराज की कथा’ लोकप्रिय है। यह ग्रंथ भी रामजी के जीवन पर केन्द्रित है।
म्यांमार का प्राचीन नाम ब्रह्मदेश है। वह देश कभी भारतीय जीवन और संस्कृति का अंग रहा है। उसका प्राचीनतम ग्रंथ ‘रामवत्थु’ राम कथा पर ही आधारित है। विद्वानों ने इसे वााल्मीकि रामायण को आधार मानकर ही रचा है। म्यांमार में आज भी कितने ही स्थानों के नाम रामजी से संबंधित हैं। कंबोडिया में रामकथा पर आधारित अनेक ग्रंथ रचनाएं ही नहीं मिलतीं, अपितु प्राचीन मंदिरों के पुरावशेष भी मिलते हैं, जिनमें उभरते भीत्तिचित्र रामकथा से मेल खाते हैं। कंबोडिया में सर्वाधिक लोकप्रिय फ्रलक-फ्रलाम, ख्वाय थोरफी, पोम्मचक ग्रंथ रामकथा पर ही आधारित हैं। फ्रलक-फ्रलाम का हिन्दी अनुवाद ‘रामजातक’ और ‘पोम्मचक’ का हिन्दी अनुवाद ‘ब्रह्म चक्र’ है।
इंडोनेशिया और मलयेशिया हिन्दू संस्कृति के प्राचीन देश रहे हैं, लेकिन समय के साथ इन दोनों में परिवर्तन हो गया है। आज ये दोनों देश इस्लामिक हैं, लेकिन इनके लोक जीवन में राम और रामकथा का महत्व यथावत है।
इंडोनेशिया में तो रामजी पर आधारित नाम भी मिल जाते हैं। वहां सैकड़ों ऐसे कुल कुटुम्ब हैं जो स्वयं को रामजी का वंशज मानते हैं। इंडोनेशिया के जावा में कावी भाषा में रचित रामकथा ‘रामायण काकावीन’ है। जावा में रामजी का महत्व और सम्मान राष्ट्रीय स्तर पर है। वहां एक नदी का नाम सरयू भी है। रामकथा प्रसंगों पर कठपुतलियों का नाच होता है। जावा के मंदिरों में वाल्मीकि रामायण के श्लोक भी अंकित हैं। सुमात्रा द्वीप के जनजीवन में भी रामायण रची-बसी है। मलेशिया 13वीं शताब्दी में सनातनी देश था। रामकथा पर वहां ‘मलय रामायण’ सर्वाधिक लोकप्रिय थी। 1633 में रचित इसकी पाण्डुलिपि बोडलियन पुस्तकालय में उपलब्ध है। यह मलय रामायण लगभग 100 वर्ष ईसा पूर्व की रचना है। मलेशिया में रामकथा पर एक अन्य ग्रंथ ‘हिकायत सेरीराम’ भी है। इस बात को सरलता से समझा जा सकता है कि ‘सेरिराम’ शब्द श्रीराम का ही अपभ्रंश है।
फिलीपींस में भी रामकथा पर ग्रंथ रचना हुई है। पर वहां रामकथा को कुछ तोड़-मरोड़कर नकारात्मक तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। कथा की प्रस्तुति में भले नकारात्मकता आ गई हो पर रामकथा लोकजीवन से बाहर नहीं हुई है। फिलीपींस की मारवन भाषा में ‘मसलादिया लाबन’ नाम से चर्चित इस रामकथा की खोज डॉ. जॉन आर. फ्रुकैसिस्को ने की है।
चीन के लोक जीवन में भी कभी राम आदर्श थे। चीन में ‘अनामकं जातकम्’ और ‘दशरथ कथानम्’ नाम से रामकथा जानी जाती है, पर चीनी कथा में पात्रों के कुछ नाम अलग हैं। चीन में मान्यता है कि राम जी का जन्म 7323 वर्ष ईसा पूर्व पहले हुआ था। जापान में रामकथा ‘होबुत्सुशू’ नाम से जानी जाती है। जापान में रामकथा संभवत: चीन के रास्ते पहुंची होगी। इस कथा में चीन के ‘अनामकं जातकम्’ का बहुत प्रभाव है।
मंगोलिया भी सनातन संस्कृति के प्रभाव वाला राष्ट्र रहा है, जो समय के साथ बौद्ध बना और अब के वर्तमान स्वरूप में आया। यहां भी रामकथा पर आधारित चार अलग-अलग रचनाएं मिलती हैं। ये पांडुलिपियां लेलिनग्राद (रूस) में सुरक्षित हैं। इसके अतिरिक्त लकड़ी पर उकेरे गये चित्र और हनुमानजी के प्रतीक वानर की प्रतिमाएं मिली हैं।
तुर्की (अब तुर्किए) भी ऐसा देश है जिसका पूरी तरह सांस्कृतिक और पांथिक रूपान्तरण हो चुका है। तुर्की का एक भाग खोतान के नाम से जाता है। यहां एक फ्रांसीसी शोधकर्ता एच. डब्ल्यू बेली को खोतानी रामायण मिली है जो पेरिस संग्रहालय में सुरक्षित है।
तिब्बत में रामकथा को ‘किंरस-पुंस पा’ कहा जाता है, तिब्बती रामायण की 6 प्रतियां तुन हुआंग नामक स्थान से मिली हैं। तिब्बत में बौद्ध शिक्षा और साधना केन्द्र बनने से पहले वहां के आदर्श श्रीराम और रामकथा ही रही है।
यूरोप के देशों में श्रीराम और रामकथा
निसंदेह आज भाषा-भूषा दोनों की दृष्टि से यूरोप का जीवन भारत से बिल्कुल अलग दिखता है। पर यह परिवर्तन पिछले केवल 2000 वर्ष के दौरान हुआ है। इससे पहले अंतर नहीं था। नामों में अंतर तो है पर पारलौकिक मान्यताओं की केन्द्रीय अवधारणा लगभग एक समान थी। प्राचीन यूनान के शोध में एक तथ्य यह भी सामने आया है कि वैदिक आर्यों ने रोम की नींव डाली थी। वे 200 नावों से ईरान के रास्ते वहां गए थे। इस अनुसंधान की पुष्टि रोम के प्राचीन नगरों, गावों के नामों और वहां के लोक साहित्य से होती है। वैदिक आर्यों के आदर्श श्रीराम हैं। रोम और यूरोपीय सभ्यता में रामजी की झलक ‘रोम’ नाम से भी स्पष्ट है। कहा जाता है कि रोम रोम में समाए हैं राम। स्थान परिवर्तन और समय के साथ राम शब्द के उच्चारण में अंतर आया और यह ‘रोम’ हो गया। इसके अतिरिक्त लोकगाथाओं में मान्यता है कि प्राचीन रोम की स्थापना दो भाइयों रोमुलस और रेमस ने देवताओं की सहायता से की थी। इन दोनों भाइयों के नामों में राम शब्द साफ झलक रहा है। एक अन्य तथ्य ब्रिटेन के ‘आयरलैंड’ से झलकता है। आयर शब्द ‘आर्य’ से बना होगा। इसीलिए यूनान के प्राचीन साहित्य पर रामकथा का गहरा प्रभाव है ।
इसका उदाहरण ‘इलियड’ महाकाव्य में मिलता है। इसमें नायक अकिलीज है और नायिका हेलन। रामायण भी काव्यात्मक है और नायक श्रीराम और नायिका माता सीता हैं। महाकाव्य इलियड में ट्रॉय के राजा प्रियम के पुत्र पेरिस ने स्पार्टा के राजा मेनेलॉस की पत्नी हेलेन का उसके पति की अनुपस्थिति में अपहरण कर लिया था। जैसे, रामकथा में लंका के राजा रावण ने श्रीराम की अनुपस्थिति में माता सीता का अपहरण किया था। राम ने भ्राता लक्ष्मण के साथ वानर सेना एकत्र करके लंका के विरुद्ध युद्ध किया और माता सीता वापस आईं। ठीक इसी प्रकार इलियड में मेनेलॉस ने अपने भाई आगामेम्नन के साथ सेना एकत्र करके युद्ध आरंभ किया।
विजय मिली और हेलन वापस आई। यही नहीं इस युद्ध में ट्रॉय नगर का दहन भी हो जाता है, जैसे रामकथा में लंका दहन होता है। अंतर केवल इतना है कि रामायण में लंका दहन युद्ध से पहले होता है, पर इलियड में युद्ध के समापन पर हेलन के लौटने के पहले। इसके अतिरिक्त प्राचीन यूनान की खुदाई में कुछ भीत्तिचित्र मिले हैं। वे ठीक वैसे ही हैं जैसे वनवास पर निकले श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के हैं। इसका विवरण सुप्रसिद्ध लेखक पुरुषोत्तम नागेश ओक की पुस्तक ‘वैदिक विश्व का इतिहास’ में है।
रामायण और रामकथा का विश्व व्यापी प्रभाव इसी एक बात से प्रमाणित है कि विश्व का पहला महाकाव्य वाल्मीकि रामायण है। इसे सभी शोधकर्ताओं ने स्वीकार किया है। इसके बाद संसार में महाकाव्य के माध्यम से भी कथा रचना का प्रचलन आरंभ हुआ।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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