‘जय मां सीता’ से भाषण शुरू करने वाली साध्वी ऋतंभरा राम मंदिर आंदोलन का जाना-माना चेहरा रहीं। साध्वी अपने भाषणों में देश-समाज में महिलाओं की भूमिका और उनके दायित्वों की बात करतीं और उन्हें आगे बढ़कर ‘राम के काम’ में योगदान के लिए प्रेरित करतीं। लेकिन वह महिलाओं की ही नहीं, पूरे आंदोलन की नेता थीं। लोग आज साध्वी ऋतंभरा को ‘दीदी मां’ के रूप में जानते हैं जो धर्म उपदेशक हैं, समाजसेवी हैं और आध्यात्मिक गुरु भी।
हिंदुओं का बार-बार अपना रक्त बहाना और स्वतंत्रता के बाद भी उदार मुसलमानों का समुदाय के कट्टरपंथियों के आगे हथियार डाल देना उन्हें बेचैन करता था। उनके शब्दों में इसकी कड़वाहट स्पष्ट दिखती रही। अब वह फिर से हिंदुत्व जागरण और समाजसेवा में पूरी तरह सक्रिय हो चुकी हैं, जिसके लिए छोटी-सी उम्र में संन्यास लिया था।
1964 में पंजाब में लुधियाना के मंडी दौराहा में जन्मीं ऋतंभरा ने 16 वर्ष की छोटी उम्र में ही हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार और समाज सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। 1991 में दिल्ली की जनसभा में उन्होंने घोषणा की थी कि राम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण को दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती।
वह महिलाओं को समझातीं कि उनके कई धर्म होंगे- जैसे पति धर्म, पुत्र धर्म, स्त्री धर्म इत्यादि। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है राष्ट्र धर्म। हिंदुओं का आह्वान करतीं कि राम मंदिर के लिए जात-पात, ऊंच-नीच जैसे भेदभावों को छोड़कर एकजुट हो जाएं। इसके लिए वह श्रीराम के जीवन से ही उदाहरण दिया करतीं थीं।
मंदिरों पर मुस्लिम आक्रांताओं के हमले, इनके लिए हिंदुओं का बार-बार अपना रक्त बहाना और स्वतंत्रता के बाद भी उदार मुसलमानों का समुदाय के कट्टरपंथियों के आगे हथियार डाल देना उन्हें बेचैन करता था। उनके शब्दों में इसकी कड़वाहट स्पष्ट दिखती रही। अब वह फिर से हिंदुत्व जागरण और समाजसेवा में पूरी तरह सक्रिय हो चुकी हैं, जिसके लिए छोटी-सी उम्र में संन्यास लिया था।
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