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आधुनिक भारत का प्रतिनिधित्व करेगी अयोध्या

पुराणों और प्राचीन शास्त्रों में उल्लिखित कथाओं में अयोध्या को भारत के सात पवित्र नगरों में सर्वोत्तम माना गया है। अयोध्या का अर्थ है अ-युध, जिससे युद्ध नहीं किया जा सकता, जो अजेय है, अमरत्व का प्रतीक है।

by डेविड फ्रॉले उपाख्य पं. वामदेव शास्त्री
Jan 28, 2024, 12:03 pm IST
in भारत, उत्तर प्रदेश, संस्कृति
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अयोध्या विभिन्न प्राचीन मंदिरों और ऐतिहासिक स्थलों के अतिरिक्त उद्यानों, घाटों, प्रदर्शनी स्थलों, संग्रहालयों, अनुसंधान केंद्रों और वैदिक विद्यालयों सहित एक आधुनिक सांस्कृतिक केंद्र बन सकती है

पुराणों और प्राचीन शास्त्रों में उल्लिखित कथाओं में अयोध्या को भारत के सात पवित्र नगरों में सर्वोत्तम माना गया है। अयोध्या का अर्थ है अ-युध, जिससे युद्ध नहीं किया जा सकता, जो अजेय है, अमरत्व का प्रतीक है।

डेविड फ्रॉले उपाख्य पं. वामदेव शास्त्री
प्रणेता, योग और वेद अध्ययन संस्थान, अमेरिका

आज राम जन्मभूमि मंदिर के पुनर्निर्माण के साथ अयोध्या का भी पुनरोद्धार हो रहा है। वह फिर से प्राचीन भारत की पावन नगरी का साकार स्वरूप बन जाएगी जो विदेशी शासन के ग्रहण और औपनिवेशिक प्रभावों से मुक्त होकर अपनी शाश्वत और सांस्कृतिक पहचान के साथ विश्व गुरु के रूप में पूरी दुनिया के लिए आध्यात्मिक मार्गनिर्देशक की भूमिका निभाने वाले आधुनिक भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए तैयार होगी।

अयोध्या का प्रतीक

‘अयोध्या’ का सबसे पहला उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है। यह पहला शहर है जिसे वैदिक ग्रंथों में नाम से संबोधित किया गया है। ऋग्वेद में सौ ‘पुरों’ (नगरों) का वर्णन मिलता है, लेकिन इनमें किसी भी नगर को नाम विशेष से संबोधित नहीं किया गया।
अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या।
तस्यां हिरण्ययं: कोश: स्वर्गो ज्योतिषावृत:।।
अथर्ववेद
अर्थात ‘आठ चक्रों वाली स्वर्णिम नगरी अयोध्या देवों की पुरी है जिसके नौ द्वार सदा प्रकाशमान रहते हैं’। अयोध्या की यह छवि श्रीयंत्र की तरह ब्रह्मांडीय ऊर्जा का एक पुंज है। हिरण्मय कोष वह आध्यात्मिक हृदय है जिसमें अमर आत्मा वास करती है। अयोध्या उस परमात्मा का निवास स्थान है जिसने श्रीराम के रूप में जन्म लिया। वैदिक आख्यानों में श्रीराम को सूर्य का अवतार माना गया है। आज जरूरी है कि अयोध्या को वैदिक शिक्षा का केंद्र बनाया जाए, क्योंकि यह श्रीराम की नगरी है जिन्होंने गुरु वशिष्ठ के मार्गदर्शन में परम ज्ञान हासिल किया था।

अयोध्या और इक्ष्वाकु वंश

अयोध्या और इक्ष्वाकुओं का इतिहास पौराणिक नदी सरयू की तरह ही प्राचीन है, जिसके तट पर अयोध्या नगरी बसी है। अयोध्या को इक्ष्वाकुओं की राजधानी कहा जाता है। मनु द्वारा स्थापित सूर्य वंश के पहले राजा थे इक्ष्वाकु। ऋग्वेद में इक्ष्वाकुओं को ऋषि अगस्त्य से संबंधित बताया गया है जिनके प्रखर शासन की तुलना सूर्य से की गई है। कहते हैं कि ऋषि वशिष्ठ और उनके गोत्र अयोध्या के पुरोहित थे। अगस्त्य वेदों में वशिष्ठ के बड़े भाई बताए गए हैं।

ऋग्वेद में जिस ऋषि पर सबसे अधिक श्लोक लिखे गए हैं, वे वशिष्ठ ही हैं। अगस्त्य श्रीराम को सूर्य की स्तुति के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र देते हैं जो उन्हें रावण को परास्त करने में सहायक होता है। अयोध्या को वैदिक शिक्षा के केंद्र के रूप में भी विकसित करने की जरूरत है जहां वैदिक मंत्रों पर नए शोध हों, क्योंकि इन मंत्रों के गूढ़ योग संकेतों को हम आज भी उपयुक्त तरीके से नहीं समझ पाए हैं।

अयोध्या विभिन्न प्राचीन मंदिरों और ऐतिहासिक स्थलों के अतिरिक्त उद्यानों, घाटों, प्रदर्शनी स्थलों, संग्रहालयों, अनुसंधान केंद्रों और वैदिक विद्यालयों के साथ एक विशाल आधुनिक सांस्कृतिक केंद्र बन सकती है। भारत के लिए नई शताब्दी, नई सहस्राब्दी में अपनी प्राचीन विरासत को पुन: स्थापित करने का एक माध्यम बन सकती है। अयोध्या की पुनर्स्थापना समस्त मानवता के लिए हमारे सर्वोच्च सभ्यतागत मूल्यों और प्रथाओं के मूलदर्शन अर्थात योग-वेदांत ज्ञान की पुनर्स्थापना है। पूरी दुनिया और समस्त मानवता अपने अंत:करण को जागृत करने और आत्मिक मार्ग प्रशस्त करने के लिए अयोध्या की महिमा पहचाने और उसका सम्मान करे! 

इक्ष्वाकु वंश के कई राजाओं का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है जिनमें प्रमुख हैं मांधाता, पुरुकुत्स और त्रसदस्यु। विदेह के पुरोहित गौतम ऋषियों में से एक वामदेव ने ऋग्वेद में त्रसदस्यु को अंशावतार के रूप में चित्रित किया है। विदेह का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण की एक कथा में मिलता है, जब विदेह के राजा मथवा ऋषि गौतम के साथ एक नए प्रदेश की स्थापना के लिए नदियों को पार करते हुए पूर्व दिशा की ओर बढ़ते हैं। संभवत: यह सरस्वती नदी के सूख जाने की स्थिति को दर्शाता है। अयोध्या के राजाओं की तुलना में पुराण में वर्णित विदेह राजाओं की सूची अपेक्षाकृत छोटी है जबकि ये दोनों एक ही सूर्यवंश से संबंधित थे। संभवत: इसका कारण यह है कि विदेह की स्थापना बाद में हुई थी। विदेह के सभी राजा जनक कहलाते थे। सदी दर सदी बीतने के साथ अयोध्या की प्रसिद्धि कोरिया और इंडोनेशिया तक फैली और इसी के साथ रामायण एशिया-संभवत: पूरी दुनिया-का महाकाव्य और संस्कृत साहित्य का आदि काव्य बनी।

श्रीकृष्ण और इक्ष्वाकु: अयोध्या और कुरुक्षेत्र

श्रीभगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि उन्होंने सूर्य देवता विवस्वान को महायोग का ज्ञान दिया जो विरासत में मनु और इक्ष्वाकु को मिला और इस तरह श्रीकृष्ण का अविनाशी योग ज्ञान इक्ष्वाकुओं की वंशावली के साथ आगे बढ़ा। अत: एक पवित्र नगरी और हमारी काया में स्थित अंत:करण के प्रतीक के तौर पर अयोध्या योग ज्ञान का भंडार है। अयोध्या और कुरुक्षेत्र में बड़ा निकट संबंध है-जहां कुरुक्षेत्र में सूर्य कुंड है तो अयोध्या सूर्य और सूर्यवंशियों की नगरी है।

समस्त मानवता के लिए अयोध्या

आज अयोध्या नगरी भरत की सनातन विरासत और सभी धार्मिक परंपराओं का प्रतिनिधित्व करने वाला एक वैश्विक धार्मिक-सांस्कृतिक केंद्र बन सकती है। बौद्ध धर्मावलंबी श्रीराम को ‘प्रत्येक बुद्ध’ या बुद्ध का विशेष अवतार मानते हैं। अयोध्या अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत और प्रभाव को पुन: प्राप्त कर सकती है और भारत की उन धार्मिक परंपराओं का केंद्र बन सकती है जो अब दुनियाभर में प्रचलित और सम्मानित हैं।

अयोध्या विभिन्न प्राचीन मंदिरों और ऐतिहासिक स्थलों के अतिरिक्त उद्यानों, घाटों, प्रदर्शनी स्थलों, संग्रहालयों, अनुसंधान केंद्रों और वैदिक विद्यालयों के साथ एक विशाल आधुनिक सांस्कृतिक केंद्र बन सकती है। भारत के लिए नई शताब्दी, नई सहस्राब्दी में अपनी प्राचीन विरासत को पुन: स्थापित करने का एक माध्यम बन सकती है। अयोध्या की पुनर्स्थापना समस्त मानवता के लिए हमारे सर्वोच्च सभ्यतागत मूल्यों और प्रथाओं के मूलदर्शन अर्थात योग-वेदांत ज्ञान की पुनर्स्थापना है। पूरी दुनिया और समस्त मानवता अपने अंत:करण को जागृत करने और आत्मिक मार्ग प्रशस्त करने के लिए अयोध्या की महिमा पहचाने और उसका सम्मान करे!

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