वर्ष 1921 में जब पूरा देश अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने की तैयारी कर रहा था और साथ ही यह भी कहा जा रहा था कि हिन्दू-मुस्लिम एक साथ होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रहे थे तो ऐसे में हिन्दुओं के खिलाफ एक बहुत बड़ा षड्यंत्र भी रचा जा रहा था। मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग अंग्रेजों से लड़ने के बहाने हिन्दुओं को मारने में विश्वास कर रहा था, क्योंकि उसे मुस्लिम स्वराज चाहिए था।
मुस्लिम स्वराज अर्थात मुस्लिमों का ही देश, जहां काफ़िर न रहें। हिन्दुओं को योजनाबद्ध तरीके से हटाया जा रहा था। परन्तु इन्हें अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की संज्ञा दी जा रही थी। परन्तु लाशें झूठ नहीं बोलती हैं। लाशों ने ही अपना सच सभी को बताया था। वह सच इतना डराने वाला था कि बाबा साहेब अम्बेडकर ने भी इस कथित हिन्दू-मुस्लिम एकता पर प्रश्नचिह्न लगा दिए थे। 1921 में केरल में मालाबार में हिन्दुओं पर जो अत्याचार मोपिला मुस्लिमों ने किए थे, उन्हें देखकर एनीबेसेंट जो स्वयं कांग्रेस की सदस्य थीं उन्होंने महात्मा गांधी को लेकर कहा था कि महात्मा गांधी को मालाबार में बुलाकर अपनी आँखों से देखना चाहिए कि उनकी और उनके प्यारे भाइयों मुहम्मद और शौकत अली के भाषणों से कितने भयानक दृश्य बने हैं।
यह बात एनीबेसेंट ने कही थी, जिन्होनें वहां जाकर देखा था। मगर कई लोग ऐसे भी थे जो चमत्कारिक तरीके से बच गए थे। जो तलवार से कटकर भी नहीं कटे थे और जो लाशों के ढेर में दबकर बच गए थे। जो अपना कटा हुआ सिर लेकर भागते रहे थे।
चूंकि अगस्त 1921 से आरम्भ हुई यह कथित क्रान्ति दिसंबर 1921 तक चलती रही थी, और अंग्रेजों की सेना को कथित रूप से हटाने के बाद हिन्दुओं को मुस्लिम बनाने के लिए हत्याएं अपने चरम पर थीं। कालीकट तालुक में पुथुर इलाके में मुठुमाना इल्लोम में अवोक्केर मुसलियार ने खुद को अक्टूबर और नवम्बर 1921 में शासक घोषित कर दिया था। उसके सामने गावों से हिन्दू परिवारों को लाया जाता था।
फिर उनसे कहा जाता कि या तो इस्लाम क़ुबूल करें या फिर तलवार से काटे जाएं। इल्लोम से सटा हुआ एक उपवन था और वहां पर एक कुआँ था। जो हिन्दू इस्लाम क़ुबूल करने से इंकार कर देते थे उन्हें गर्दन कटकर उस कुँए में डाल दिया जाता था।
और इस प्रकार हिन्दुओं को ठिकाने लगाने का काम किया जा रहा था। वहां पर लगभग 50-60 हिन्दुओं की लाशें मिली थीं। मगर एक हिन्दू केलप्पन आश्चर्यजनक तरीके से बच गए थे। यह चमत्कार ही था कि उनकी जान बची और वह उस भयावह कहानी को बचाने के लिए जिंदा बचे थे।
उनकी गर्दन पर तलवार के दो प्रहार हुए थे। बाकी लोगों की गर्दन धड़ से अलग हो गयी, मगर वह बच गए थे। उनकी गर्दन आगे की ओर लटक गयी थी और मुस्लिमों ने उन्हें मरा समझकर लाशों के ढेर में उसी कुँए में फेंक दिया था। मगर जिंदा थे। जो लोग मार रहे थे उनमें से किसी को भी यह उम्मीद नहीं थी कि कोई भी लाशों के इस ढेर में जिंदा बच सकता है। उन्हें टांग से पकड़कर घसीटा और कुँए में फेंक दिया।
मगर लाशों से भरे हुए उस कुँए में केलप्पन खुद को किसी तरह बचाए रहे और लगभग दो घंटे बाद जब अन्धेरा हो गया तो वह कुँए में लटकती हुई लता का सहारा लेकर बाहर आए और खुद को पेड़ों के बीच छिपा लिया। उसी समय बारिश हुई तो उन्हें कुछ राहत मिली।
वह आधी रात की प्रतीक्षा करते रहे और फिर अपनी आगे लटकती हुई गर्दन लेकर दौड़ने लगे और वह लगभग 8-9 मील तक दौड़ते रहें। उन्हें सुबह के आठ बजे बेहोश हालत में पाया गया और एक सब इंस्पेक्टर ने उन्हें अस्पताल भेजा।
उनका इलाज एक महीने तक चला था।
यह कल्पना ही असीम वेदना से भर देती है कि एक युवक को अपनी कटी हुई गर्दन लेकर दौड़ना पड़ा था और इसी के कारण लाशों की यह कहानी बाहर आ पाई थी और मुकदमा चल सका था।
स्रोत: THE MOPLAH REBELLION, 1921, दीवान बहादुर सी गोपालन नायर
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