जब भी राम मंदिर की चर्चा होगी, दाऊदयाल खन्ना जी का नाम अवश्य आएगा। 6 मार्च, 1983 को मुजफ्फरनगर में आयोजित विराट हिन्दू सम्मेलन में दाऊदयाल खन्ना ने ही अयोध्या, मथुरा और काशी के भग्न मंदिरों को मुक्त कराने का प्रस्ताव रखा था। खन्ना कांग्रेस के नेता थे और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके थे।
इससे पहले उन्होंने यह प्रस्ताव काशीपुर में आयोजित हिंदू सम्मेलन में भी रखा था। मुजफ्फरनगर सम्मेलन में जब उन्होंने अयोध्या, काशी और मथुरा की मुक्ति का प्रस्ताव रखा तो उस मंच पर विहिप के तत्कालीन केंद्रीय महामंत्री हरिमोहन और पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नन्दा भी उपस्थित थे।
खन्ना के इस प्रस्ताव को लोगों का बहुत समर्थन मिला और इस मामले में एक ज्ञापन लेकर उन्होंने तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी मुलाकात की थी। इंदिरा गांघी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री और बूटा सिंह गृह मंत्री बने। खन्ना इन दोनों से भी मिलते रहे। इस बीच राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम तुष्टीकरण के कारण शाह बानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय पलट दिया।
इसके बाद तो पूरे देश में लोग आक्रोश में आ गए और उनके गुस्से को ठंडा करने के लिए राजीव गांधी ने 1989 में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि का शिलान्यास होने दिया। उधर, अयोध्या, काशी और मथुरा को मुक्त कराने का दाऊदयाल खन्ना का विचार लोगों में जड़ें जमाता रहा। अंतत: 7-8 मार्च, 1984 को विहिप ने दिल्ली में आयोजित धर्मसंसद में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन का शुभारंभ किया और धर्मसंसद ने खन्ना जी के प्रस्ताव को पारित किया।
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