स्वामी दीपांकर सनातनी
पाञ्चजन्य के स्थापना दिवस कार्यक्रम को स्वामी दीपांकर सनातनी का भी आशीर्वाद मिला। कुछ समय पहले इन्होंने जातियों में विभाजित हिंदू समाज को जोड़ने के लिए भिक्षा यात्रा निकाली थी। उनका कहना है कि हिंदू जाति से ऊपर उठें
जब बात भारत की होती है तो बहुत ही प्रसन्नता होती है। सबसे खुशी की बात यह है कि 22 जनवरी को हम सब रामलला के दर्शन कर पाएंगे। पहले तुलसी का पत्ता भी वहां तक पहुंचते हुए बासी हो जाता था, अगर तंबू बदलना होता था तो दंडाधिकारी की अनुमति लेनी पड़ती थी। वस्त्र बदलने के लिए चार बार सोचना पड़ता था, लेकिन आज मेरे रामलला टाट से ठाठ में जा रहे हैं।
यह यात्रा अपनों को जोड़ने की है, क्योंकि मैं समझता हूं कि किसी भी धर्मग्रंथ में जाति का जिक्र नहीं है। इसके बाद भी हमारा समाज जातियों में विभक्त है। आज जब चुनावों का विश्लेषण होता है, तो एकमुश्त बताया जाता है कि मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र इतने हैं, लेकिन वहीं जब हिंदुओं की बात होती है तो ठाकुर, ब्राह्मण, जाट, यादव, गुर्जर आदि जातियों की बात की जाती है। मेरा निवेदन है कि कम से कम हम लोगों को हिंदू ही कह कर संबोधित किया जाए। जातियों में बांटकर न देखा जाए।
जब हम अपने गर्व को दोहराते हैं, उसको जीते हैं तो हम लोग अपने को सशक्त, मजबूत और ताकतवर पाते हैं। एक मात्र हमारी ही संस्कृति है,जो वैज्ञानिक है। यहां से सूर्य की दूरी नापेंगे तो करीब 15 लाख किलोमीटर कुछ मील है और सूर्य के व्यास से इस संख्या को भाग दें तो 108 आता है। चंद्रमा की दूरी को चंद्रमा के व्यास से भाग करें तो भी संख्या 108 निकलती है। सूर्य आत्मा और चंद्रमा मन का प्रतीक है और दोनों को साधने की माला का मनका भी 108 होता है।
हमारी इतनी संपन्न और सुसंस्कृत संस्कृति है। इसे बचाने के लिए हम लोगों को जाति, प्रांत, भाषा और अन्य मतभेदों से ऊपर उठकर केवल और केवल हिंदू के नाते अपने को सशक्त करना होगा। इसी से हमारा और भारत माता का कल्याण होगा।
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