आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के सरदार बदरुद्दीन अजमल ने मुस्लिम महिलाओं के लिए वही नियम जरूरी बताए हैं, जिन्हें लेकर ईरान और अफगानिस्तान में मुस्लिम महिलाओं का जीवन संघर्ष में बीत रहा है। जिनका विरोध करने पर हाल ही में ईरान में विद्रोहों की एक लहर दौड़ी थी और ईरान में हाल ही में एक 23 वर्षीय युवक मुहम्मद गोबद्लू को फांसी पर चढ़ा दिया है, क्योंकि उसने महसा अमीनी की पुलिस कस्टडी में हुई मौत पर आन्दोलन किया था।
महसा अमीनी की मृत्यु क्यों हुई थी, वह सभी को पता है और वह नियम था अनिवार्य हिजाब का नियम। महसा अमीनी का हिजाब शायद उचित तरीके से नहीं था, तो उसे मॉरल पुलिस द्वारा हिरासत में लिया गया था और फिर उसकी मौत हो गयी थी। उसके बाद विरोध प्रदर्शन करने वाली मुस्लिम महिलाओं और युवकों के साथ जो हुआ, वह पूरे विश्व ने देखा और उसकी निंदा भी यदा कदा होती है। परन्तु भारत में मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा तबका ऐसा है, जिसे अपनी ही महिलाओं की मूलभूत आजादी से लेनादेना नहीं है।
वह मुस्लिम पहचान के नाम पर मुस्लिम लड़कियों के लिए हिजाब आवश्यक बताते हैं। अब असम के मुस्लिम नेता बदरुद्दीन अजमल का बयान सामने आया है जिसमें उन्होंने मुस्लिम लड़कियों से यह कहा है कि लड़कियों को पढ़ाई करनी चाहिए, विज्ञान पढ़ना चाहिए, डॉक्टर बनना चाहिए, आईएएस बनना चाहिए या फिर पुलिस आदि में जाना चाहिए, मगर किसी भी पेशे में जाएं, उन्हें मुस्लिम पहचान के लिए हिजाब जरूर पहनना चाहिए।
अजमल ने कहा कि अगर आप लोग ऐसा नहीं करेंगी कि तो हम कैसे जानेंगे कि कौन हमारे मुस्लिम डॉक्टर्स, आईपीएस ऑफिसर या एपीएस ऑफिसर्स हैं? हम अंतर कैसे करेंगे?”
उन्होंने यह भी कहा कि काम पर जाते समय खुले बाल शैतान की रस्सी होते हैं और मेकअप शैतान का काम होता है। उन्होंने यह कहा कि असम में मुस्लिम लड़कियां हिजाब पहनकर नहीं चलती हैं, सर के बाल छुपाकर रखना इस्लाम में कहा गया है।
हालांकि मुस्लिम पहचान को लेकर लोगों को भड़काने वाला काम बदरुद्दीन आज पहली बार नहीं कर रहे हैं, बल्कि काफी बार कर चुके हैं। पिछले ही वर्ष उन्होंने यह कहा था कि “ज्यादातर मुसलमान आपराधिक प्रवृति के पृष्ठभूमि के क्यों हैं? डकैती, बलात्कार, लूट जैसे अपराधों में मुसलमान नंबर वन क्यों हैं? हम जेल जाने में नंबर वन क्यों हैं? क्योंकि ज्यादातर मुस्लिम पढ़ाई नहीं करना चाहते हैं।”
हालांकि बाद में सफाई देते हुए यह भी कहा था कि उन्होंने पढ़ाई के महत्व को बताने के लिए यह कहा था। यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि जहां भारत में हिन्दू नेतृत्व हमेशा ही समावेशी विकास की बात और भारतीय पहचान की बात करते पाया जाता है, वहीं मुस्लिम नेतृत्व हमेशा ही मुस्लिम पहचान के लिए संघर्ष करता है। भारतीय पहचान से परे मुस्लिम पहचान की बात करता है।
जहां असम में बदरुद्दीन मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब जरूरी बताते हुए मुस्लिम पहचान पर जोर दे रहे हैं वही पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान में एक बार फिर से मुस्लिम महिलाओं की बची खुची आजादी पर हमला करते हुए तालिबान दिखाई दे रहे हैं। याद रहे कि हिजाब के मामले में अभी हाल ही में अफगानिस्तान में लड़कियों को गिरफ्तार किया गया था कि उन्होंने “सही तरीके से” या “गुड हिजाब” नहीं पहना है।
बैड हिजाब पहनने वाली कई लड़कियों को हिरासत में लेकर कहाँ ले जाया गया था, वह अज्ञात है। हालांकि इसके पीछे कई लोगों का यह भी कहना है कि काबुल और कई अन्य स्थानों पर “बैड हिजाब अर्थात खराब हिजाब” पहनने वाली लड़कियों की गिरफ्तारी के पीछे शायद इन महिलाओं को निकाह या सेक्स कनीज बनाना हो सकता है। ऐसी आशंका अफगानिस्तान वीमेन एंड चिल्ड्रेन एस।डब्ल्यू।ओ। द्वारा एक्स पोस्ट के द्वारा व्यक्त की गयी थी। जिसमें यह कहा गया था कि पिछले सप्ताह शुरू हुई इन गिरफ्तारियों में कई लड़कियों और महिलाओं को कई स्थानों पर हिरासत में लिया गया था जैसे शौपिंग सेंटर, क्लासेस और सड़कों पर लगने वाले बाजारों में। इस संस्था का यह भी कहना है कि तालिबान मुस्लिम महिलाओं को कैद करके उनके दिल में डर भर रहा है, जिससे वह उनके इशारों पर चलें।
निकाह को लेकर इस संस्था की आशंका कहीं न कहीं सच ही दिखाई देती है क्योंकि अब तालिबान की ओर से मुस्लिम महिलाओं के लिए यह फ़तवा आया है कि हेल्थकेयर के क्षेत्र में काम करने वाली गैर-शादीशुदा लड़कियां तब तक बाहर निकलकर काम नहीं कर सकती हैं, जब तक उनका निकाह न हो जाए।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित हालिया रिपोर्ट में तालिबान ने कुंवारी अफगानी लड़कियों पर अपने हुकुम का चाबुक चला दिया है जो स्वास्थ्य देखभाल परिसरों में नौकरी कर रही हैं, कि जब तक वह शादी नहीं करती हैं, तब तक काम पर नहीं आ सकती हैं।
बदरुद्दीन अजमल से लेकर तालिबान तक जो भी नियम और क़ानून मुस्लिम महिलाओं के लिए दिए गए हैं या लगातार दिए जाते रहते हैं, उन सभी में एक बात कॉमन है और वह है मुस्लिम पहचान!
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