10 नवंबर, 1989 को अयोध्या में श्रीराम मंदिर के शिलान्यास समारोह के समापन सत्र को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस ने संबोधित किया था। उनका यह उद्बोधन पाञ्चजन्य (19 नवंबर, 1989) में प्रकाशित हुआ था। उसका संपादित स्वरूप यहां पुन: प्रकाशित किया जा रहा है
उन लाखों हिन्दू हुतात्माओं का स्मरण करता हूं, जो राष्ट्र के महान नायक भगवान श्रीराम के मंदिर की पुन: प्रतिष्ठापना एवं राम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए गत अनेक शतकों से बलिदान देते आए हैं। हमने 1947 में राजनीतिक स्वाधीनता प्राप्त की थी, किन्तु आज भी हम अपनी वैचारिक एवं सांस्कृतिक स्वतंत्रता प्राप्ति की प्रक्रिया में हैं।
श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति हमारे राष्ट्रीय गौरव की पुनस्स्थापना का वैसा ही प्रतीक है जैसा कि सोमनाथ मंदिर का पुनरुद्धार हमारे राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक रहा।
जब महात्मा गांधी जी ने अपने देश की स्वतंत्रता के बारे में दूरदृष्टि से सोचा, तब उन्होंने अपने उस स्वप्न को राम-राज्य के रूप में देखा और वैसा ही उसे परिभाषित किया। उनके संपूर्ण जीवन का प्रेरणास्रोत श्रीराम ही थे। तब कोई यह नहीं कह सकता कि उनका दृष्टिकोण संकुचित या सांप्रदायिक था।
और जो लोग, आज दिन-रात महात्माजी का नाम रटते रहते हैं, वे ही शिलान्यास कार्यक्रम में बाधाएं उत्पन्न करने वाले ढोंगी-सेक्युलरिस्टों व कट्टर-सांप्रदायिक तत्वों के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं।
राष्ट्रवादी शक्तियों ने, विशेषकर विश्व विहिप द्वारा समर्थित तथा योगीराज देवराहा बाबा से आशीर्वाद प्राप्त श्रीराम जन्मभूमि यज्ञ समिति ने सब प्रकार के सरकारी तथा अन्य स्वार्थ-प्रेरित तत्वों के दबावों को ठुकराकर अद्भुत दृढ़ निश्चय का परिचय दिया है।
वास्तव में, देशभर में लाखों स्थानों पर हुए रामशिला पूजन कार्यक्रमों में करोड़ों हिन्दुओं के सहयोग से तथा हजारों पूज्य साधु महात्माओं के सक्रियतापूर्ण सहभाग से जो जबर्दस्त तीव्र दबाव पैदा हुआ। देश की एकता और अखंडता के प्रतीक राष्टÑनायक श्रीराम जी के मंदिर-निर्माण हेतु समिति द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सफलता की मैं कामना करता हूं।
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