रामचंद्र परमहंस जी ने कह दिया था कि विहिप ने जिस स्थान को शिलान्यास स्थल घोषित कर रखा है, उसे बदला नहीं जाएगा। सरकार चाहती थी कि साथ वाले भूखंड पर शिलान्यास हो जाए, लेकिन विहिप इसके लिए तैयार नहीं थी।
न जन्म का पता, न उम्र का। बस इतना पता है कि देवरहा बाबा के रूप में नश्वर शरीर के साथ उनकी यात्रा कब संपन्न हुई- 19 जून,1990 को योगिनी एकादशी के दिन। राम मंदिर की निर्माण यात्रा में देवरहा बाबा की भी भूमिका थी। ताला खोले जाने से लेकर शिलान्यास तक के लिए देवरहा बाबा की प्रेरणा भी काम कर रही थी।
कहा जाता है कि श्रीराम भूमि जन्मस्थल पर लगे ताले को खोलने की याचिका पर सुनवाई पूरी होने के बाद निर्णय को सुरक्षित रखकर जज जब अपने निवास पर पहुंचे, तो उन्हें किसी की आवाज सुनाई दी- ‘बच्चा! हिम्मत करो, अब नहीं तो कब करोगे?’ ताला खुलने के बाद न्यायाधीश महोदय की जब देवरहा बाबा से भेंट हुई तो बाबा ने उनसे प्रश्न किया- ‘बच्चा! हिम्मत क्यों नहीं कर रहा था?’
जब शिलान्यास की बात हुई, तो भी कुछ ऐसा ही हुआ। रामचंद्र परमहंस जी ने कह दिया था कि विहिप ने जिस स्थान को शिलान्यास स्थल घोषित कर रखा है, उसे बदला नहीं जाएगा। सरकार चाहती थी कि साथ वाले भूखंड पर शिलान्यास हो जाए, लेकिन विहिप इसके लिए तैयार नहीं थी।
केंद्र की राजीव गांधी सरकार तब दबाव में थी। ऐसे समय राजीव गांधी ने देवरहा बाबा से मिलना उचित समझा। उनकी मां इंदिरा गांधी भी मुसीबत में बाबा का आशीर्वाद लेती थीं। 6 नवंबर, 1989 को राजीव बाबा से मिलने गए। कहते हैं, बाबा ने राजीव को समझाते हुए कि शिलान्यास की जगह नहीं बदली जाए, कहा- ‘बच्चा हो जाने दो।’ फिर वही हुआ।
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