‘राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक’

Published by
हितेश शंकर

उत्तर प्रदेश कैडर (1967) के सेवानिवृत्त लोकसेवक नृपेन्द्र मिश्र श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष हैं और इस नाते रामभक्तों की आस्था के अनुरूप ही मंदिर को भव्य रूप देने को प्रतिबद्ध हैं। 2014 से 2019 तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रमुख सचिव रहे श्री मिश्र पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के मुख्य सचिव भी रहे हैं। राजनीति और प्रशासन का गहरा अनुभव रखने वाले श्री मिश्र मूल्यों और निष्ठा के पक्के माने जाते हैं। प्रशासन के केंद्र और राजनीति के अत्यंत निकट रहकर लंबी यात्रा करने वाले नृपेन्द्र मिश्र पर सदा मीडिया की नजर रही, किंतु उन्होंने हमेशा खुद को पर्दे के पीछे रखा। श्रीराम मंदिर निर्माण से जुड़े विभिन्न पहलुओं के साथ-साथ राजनीति और प्रशासन पर नृपेन्द्र मिश्र से पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर की वार्ता हुई। सुदीर्घ प्रशासनिक जीवन के बाद अब तक नृपेन्द्र मिश्र का यह किसी भी मीडिया संस्थान के द्वारा पहला साक्षात्कार है-

आपने सभी राजनीतिक दलों के लोगों के साथ काम किया है। आज रामजी का काम आपके हाथ में है। ऐसे में राजनीति की बात करें तो उसमें अलग-अलग धड़ों में आप क्या अंतर महसूस करते हैं?
देखिए, मुझे जिम्मेदारी दी गई है कि अयोध्या में भगवान राम के मंदिर का निर्माण कार्य संपन्न हो। इसका आभास सभी को है, मैं भी उसमें सम्मिलित हूं। इस मंदिर का निर्माण होने से करोड़ों लोगों में श्रीराम मंदिर को लेकर एक प्रकार से दोबारा उत्साह जागा है। जहां तक मेरा प्रश्न है, तो मुझे जो कार्य दिया गया है, उस कार्य को पूर्ण करने के लिए मैं पूरी तरह कटिबद्ध हूं। इसमें किसी भी प्रकार की राजनीति नहीं है। यह केवल मंदिर निर्माण या धार्मिक अनुष्ठान मात्र नहीं है। प्रत्येक नागरिक इसको राष्ट्र से जोड़कर देखता है।  यह राष्ट्र के प्रति सभी की श्रद्धा, लगाव और प्रेम से जुड़ा मसला है। एक तरह से मंदिर निर्माण से राष्ट्र गौरव का प्रतीक बनाने के कार्य की पूर्ति होगी।

आप लंबे समय तक सत्ता के केंद्र में रहे हैं। कुछ लोग पर्दे के आगे होते हैं, और कुछ लोग पीछे से सारी चीजों को देखते-समझते हैं और नियंत्रित भी करते हैं। लिहाजा उस समय के और अब के भारत के राजनीतिक धरातल की स्थिति में क्या अंतर देखते हैं?
पहले तो राष्ट्र में जो परिवर्तन हो रहा है, हमें उसका मूल्यांकन करना होगा। आज की नवयुवकों की पीढ़ी राष्ट्र निर्माण को विकास और पूरे विश्व में देश की परिस्थिति से जोड़कर देखती है। आप देखेंगे कि देश में और देश के बाहर भी हम भारतीय आज प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। नई पीढ़ी से एक चीज और जुड़ी है, वह है टेक्नोलॉजी। इसी को आज की पीढ़ी प्रस्तुत कर रही है। वह सरकार पर पूरी तरह से निर्भर नहीं रहती। वह केवल यह चाहती है कि सरकार ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करे जिससे वह अपने सपनों को स्वत: साकार कर सके। इसलिए आज सरकार पर निर्भरता बहुत कम हो गई है। आने वाले वर्षों में इसी में सबसे बड़ा परिवर्तन दिखेगा और कुछ वर्षों में इसके परिणाम आने लगेंगे। आदरणीय प्रधानमंत्री जी भाषणों में बोलते रहे हैं कि सरकार वही है जो न्यूनतम शासन करे।

इस यात्रा में 6 दिसम्बर, 1992 का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। आज आपके पास देश की आकांक्षाओं को पूरा करने का दायित्व है। परंतु स्मृतिपटल पर अंकित 6 दिसम्बर, 1992 को आप कैसे देखते हैं?
उस समय मैं दिसम्बर से तीन महीने पहले ग्रेटर नोएडा का अध्यक्ष बना था। जिस समय यह घटना हुई, उस समय मैं लखनऊ में उपस्थित नहीं था। लेकिन अयोध्या से संबंधित पूर्व में भी घटनाएं हुई हैं। एक तरीके से सभी के मन में विश्वास था कि यहां पर श्रीराम मंदिर का पुनर्निर्माण करना है। यह एक न्यायोचित कदम था। इसलिए जो भी इस घटना का मूल्यांकन करेगा वह उस दृष्टि से मूल्यांकन करेगा कि यहां पर जो मंदिर का कार्यक्रम है, वह अपने आप में एक राष्ट्रीय योग है। विश्वसनीयता उससे जुड़ी हुई है। इसने ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर दी हैं, जिससे लोगों का सपना पूर्ण हुआ है।

देश के प्रधानमंत्री ने यह दायित्व आपको सौंपा। इस पर क्या कहेंगे?
यह उसी तरह है जैसे मुझे प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव की भूमिका प्रदान की गई थी। आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने जिस दिन मुझे प्रमुख सचिव का दायित्व सौंपने की बात की थी, उस समय तक वे मुझे नहीं जानते थे। वर्तमान दायित्व को मैं भगवान का उपहार समझता हूं। मुझे राष्ट्रीय आकांक्षा से संबंद्ध किया गया और इस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। मैं यही मानकर चलूंगा कि प्रधानमंत्री जी का विश्वास था। कहीं न कहीं जो शक्ति होती है, वह उन्हें भी प्राप्त है, जिसके कारण मुझे यह कार्य करने का सौभाग्य मिल पाया।

 राजनीति की जो कार्यपालक शक्ति होती है, आप हमेशा वहां पर रहे हैं। आपने रामजन्मभूमि आंदोलन को बड़े निकट से देखा है। आप मुलायम सिंह जी और कल्याण सिंह जी दोनों के प्रमुख सचिव थे। इन विपरीत ध्रुवों के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा? दोनों का राजनीतिक मिजाज अलग है। वोट बैंक अलग है? आप इसे कैसे देखते हैं?
जब मुलायम सिंह जी मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने मुझे इटावा में योजना बनाते देखा या मेरे बारे में सुना होगा। मेरा परिचय उस समय तक उनसे नहीं हुआ था। परंतु वे राजनीति में थे तो उनको अवश्य जानकारी हुई होगी। संभवत: उस समय दोनों में संतुलन हुआ, फिर उन्होंने मुझे सचिव के रूप में नियुक्त किया। जब कल्याण सिंह सरकार आई तब भी वही स्थिति थी कि मैं कल्याण सिंह जी को नहीं जानता था। मैंने उनको अपनी सारी नियुक्तियों के बारे में बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि आपको ऐसा तो नहीं लगा कि मैंने आपका बायोडाटा नहीं देखा है। आपसे बात करने से पहले कार्यालय से बायोडाटा आ चुका है। आपका जो अनुभव है और आप जिस कार्यालय में रहे हैं, उसका मैं लाभ उठाना चाहता हूं। इसलिए आपको इस पद पर लाना चाहता हूं। दोनों के स्वभाव बिल्कुल अलग-अलग थे। लेकिन एक चीज थी जिसकी अपेक्षा सभी करते हैं कि कार्यालय के कार्य के दौरान किसी भी प्रकार का दाग न लगा हो। मेरा इतने वर्षों का अनुभव है कि, आप देखें तो वित्त विभाग में जो देश-विदेश में कार्यरत होते हैं, जिसकी प्रतिष्ठा अच्छी हो, सकारात्मक सोच हो, उसे उसी प्रकार ढूंढकर जिम्मेदारी दी जाती है। सभी चीजों को ध्यान में रखकर इस तरह  के दायित्व दिए जाते हैं।

 कल्याण सिंह जी के निजी सचिव के तौर पर कौन-सी ऐसी बातें हैं जिनकी ज्यादा चर्चा नहीं हुई। क्या ऐसी कोई बात है जिसे साझा करना महत्वपूर्ण समझते होंं?
क्षमा कीजिए, मैंने इस विषय पर आज तक किसी से कोई चर्चा नहीं की। कुछ लोगों ने कहा कि आप अपने जीवन पर पुस्तक लिखिए, तो मैंने स्पष्ट कर दिया है कि मैं जीवन में कभी भी अपने ऊपर पुस्तक नहीं लिखूंगा।

मंदिर का अब जो ताना-बाना देखा जा रहा है वह 1000 वर्ष की दृष्टि के अनुसार देखा जा रहा है। सीमेंट नहीं लगेगा, स्टील नहीं लगेगा। अगर 1000 साल की दृष्टि समाज के सामने रखनी हो, तो कैसे रखेंगे?
इसको इस विश्वास के साथ जोड़ें कि भारतवर्ष में जो हमारे प्राचीन मंदिर हैं, जो दीर्घकाल से टिके हुए हैं, उन मंदिरों को, उनमें स्थापित इष्ट देवताओं के विग्रहों को परिपूर्ण तरीके से बना होना चाहिए। यहां जो मंदिर था, वह एक प्रकार से 500 वर्ष पहले बना था। इसलिए लोगों का कहना था कि नया मंदिर भी ऐसा बने जिसका जीवन दीर्घकालिक हो। हमने जो मापदंड रखा है उसमें यह स्पष्ट है। यह बात बातचीत में भी है और समझौता पत्र में भी लिखी गई है। मंदिर का निर्माण सर्वोत्तम गुणवत्ता का हो। दूसरी बात, राजनीति से दूर रहकर मंदिर का निर्माण हो और तीसरे, चूंकि स्टील का जीवनकाल कम होता है इसलिए हम स्टील का उपयोग नहीं करेंगे।

 

आंदोलन के समय पर जो एक रचना मन में थी लोगों के उससे यह ताना-बाना कहीं ज्यादा व्यापक है। आंदोलन के समय सबने सोचा था कि मंदिर बनेगा। मगर वह कितना विराट, कितना अनूठा होगा इसकी कल्पना नहीं थी। इन दोनों में जो अंतर था, उसको आपने कैसे आंका?
आंदोलन के समय मन में स्वाभाविक रूप से था कि यहां पर राम का मंदिर था और नया मंदिर स्थापित कर दिया जाए। लेकिन आज जब निर्माण कार्य शुरू हुआ है तो सभी ने तकनीकी से जुड़े पक्ष पर विचार किया। यह बिन्दु हर श्रद्धालु से जुड़ा हुआ है। चाहे वह उत्तर से हो, दक्षिण से, पूरब या पश्चिम से हो। मंदिर मात्र इस समय की परिकल्पना नहीं है। जिन लोगों ने रामायण पढ़ी है, उन सबने विवरण देखा तो धीरे-धीरे यह मांग उठने लगी कि मंदिर का निर्माण हो। मंदिर के आसपास का निर्माण हो और फिर अयोध्या का वैसा विकास हो। मैं इसमें स्पष्ट कर दूं कि जो 70 एकड़ में पेड़-पौधे लगने हैं उनमें मांग है कि तुलसीकृत मानस और वाल्मीकि रामायण में जिन पौधों-वृक्षों का विवरण है, वही पौधे यहां पर लगें। नेशनल बोटेनिकल गार्डन, लखनऊ ने इस पर कई वर्ष पहले शोध किया था। यही मानकर चलें कि राष्ट्र की जो इच्छा उभर कर आई है, हम उसे संवेदनशीलता से क्रियान्वित करने का प्रयास करेंगे।

आज की अयोध्या का एक अध्याय पूरा हुआ, परंतु धरातल पर एक कटु सत्य बाकी है कि जब न्यायिक फैसला आया है तो वहां भूमि अधिग्रहण, बिल्डर का आना, गठजोड़ आदि की बातें उभर रही हैं। लोगों में इसको लेकर आक्रोश है। इस चुनौती को आप कैसे देखते हैं। 
कोई अपवाद में ऐसा आया होगा परंतु मेरे समक्ष ऐसी कोई नकारात्मक बात नहीं आई। स्वाभाविक है, जब अयोध्या में मंदिर बनेगा तो श्रद्धालु आएंगे। लोगों की संख्या बढ़ेगी तो सुविधाओं की आवश्यकता होगी। होटलों की आवश्यकता होगी एवं अन्य प्रकार की सुविधाओं की आवश्यकता होगी। हो सकता है कि लोग निजी भूमि खरीदने का प्रयास कर रहे हों, क्योंकि यह बहुत प्रभावी कार्य उत्तर प्रदेश सरकार के प्रशासन से अपेक्षित है।

आज जो अयोध्या है और जिस अयोध्या का वर्णन रामायण में मिलता है, उसके अनुसार मंदिर के 200 कि.मी. तक कई स्थान हैं जहां खोज हो चुकी है। क्या इनको भी इस तंत्र में जोड़ने की कोई योजना है?
यह भी उत्तर प्रदेश सरकार के जिम्मे है। अभी कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने एक मास्टर प्लान के तहत इंटरनेशनल कंसल्टेंसी का विज्ञापन दिया है। एक वृहद अयोध्या की प्लानिंग से ट्रस्ट का कोई संबंध नहीं है। इसका दायित्व राज्य सरकार पर है।

इस पूरी यात्रा के बीच में जो आंदोलन हुआ उसका  नेतृत्व करने वाले कुछ लोग थे। क्या उन विभूतियों से संवाद-संपर्क करने का कभी मौका मिला?
हमारे ट्रस्ट में जो लोग हैं वे भी आंदोलन से जुड़े हुए थे। ट्रस्ट के अध्यक्ष नृत्यगोपाल दास जी या हमारे महामंत्री चंपत राय जी ने आंदोलन में भूमिका निभाई थी। ये दो नाम तो मैं इसलिए ले रहा हूं क्योंकि इस मुकदमे में भी कहीं न कहीं ये जुड़े रहे। अशोक सिंहल जी से भी संवाद होता रहता था, परंतु खासकर चंपत राय जी ने अशोक जी के सपनों को साकार करने में अहम भूमिका निभाई है। मेरा तो इससे पहले एक सीमित संपर्क था।

पहले आंदोलन का नामकरण होता है-राम जन्मभूमि मुक्ति समिति बनती है। फिर धर्मस्थान मुक्ति समिति बनी तो काशी, मथुरा की बात भी जुड़ी और तीसरे चरण में रामजन्मभूमि न्यास बना। किंतु फैसला आने के बाद श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट बनता है। इस पूरी यात्रा को आप कैसे देखते हैं?
मैं ईमानदारी से इसको एक-दूसरे से जुड़ा हुआ देखता हूं। वैसे इसका मैंने कभी सिंहावलोकन नहीं किया। जाहिर है कि हर किसी की एक ‘विशेष स्थिति’ होती है। सभी संगठन एक लक्ष्यपूर्ति के अंश थे। वर्तमान में मुझे जो जिम्मेदारी मिली है, राष्ट्र ने जो जिम्मेदारी दी है मेरे लिए यही पर्याप्त है कि इसकी पूर्ति करूं।

रामायण में अवधपुरी की जो कल्पना है उसमें सरयू इसकी प्राणरेखा है। उसके घाटों का सुस्पष्ट प्रबंधन था, जहां चारों वर्णों के लोग स्नान करते थे। घाट ऐसे थे जहां कीचड़ नाम के लिए भी नहीं थी। हम यह भी कह सकते हैं कि उसमें रामराज्य भी है, पारदर्शिता, स्वच्छता और प्रबंधन भी। इस मंदिर के इर्द-गिर्द की चीजें इससे कैसे जुडेंगी?
सौभाग्य से जो वर्तमान में मुख्यमंत्री हैं वे एक तरीके से कड़ी को जोड़ने के मुख्य नायक हैं। आज प्रशासनिक तंत्र उनके हाथ में है। कुछ वर्ष पहले जब यहां पर मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन चल रहे थे उसमें भी उनकी भूमिका रही है। तो यह स्वाभाविक है कि वे इस निर्माण और इसकी पूरी व्यापकता से विस्तार के प्रति वचनबद्ध हैं। कभी भी अविश्वास या अन्य किसी भी प्रकार की कमी महसूस नहीं हुई, बल्कि मेरी यह कमी है कि वे जो चाहते हैं या, कह सकते हैं सरकार जिस गति से जागी है उस गति से हम कार्य को शुरू नहीं कर पाए। हर बार राज्य सरकार की ओर से यही पूछा जाता है कि निर्माण कार्य में किसी प्रकार की कठिनाई तो नहीं। और मेरा हमेशा उत्तर होता है, कोई कठिनाई नहीं है।

2017 से अयोध्या में दीपोत्सव शुरू हुआ। आपको लगता है कि जिस तरह से राम मंदिर की चर्चा के बावजूद केंद्र में अयोध्या नहीं थी, दीपोत्सव का विश्व रिकॉर्ड बनने के बाद इस पूरी नगरी के प्रति आस्था-भाव बढ़ा है?
जब मैंने दीपोत्सव को देखा तो मन में एक उत्सुकता जागी कि क्या जो प्राचीन अयोध्या थी उसके अनुसार मुझे एक नयी अयोध्या मिलेगी, जो प्राचीन अयोध्या के अनुसार होगी! इस प्रकार से आयोजन तो बहुत से हो सकते हैं, लेकिन इस आयोजन को इतना महत्व मिला कि पुरानी अयोध्या को अपना ही भाग समझना शुरू कर दिया।

Share
Leave a Comment

Recent News