आगे बढ़ो, जोर से बोलो- जन्मभूमि का ताला खोलो। 1985 में कर्नाटक के उडुपी में दूसरी धर्मसंसद में उन्होंने घोषणा की कि अगले साल 8 मार्च की शिवरात्रि से पहले यदि मंदिर का ताला नहीं खुला तो वह ‘ताला तोड़ो’ आंदोलन शुरू कर देंगे।
अयोध्या आंदोलन को नई धार देने वाले महंत रामचंद्र परमहंस का जीवन पूरा राममय था। साधु-संन्यासियों को आकांक्षा होती है मोक्ष की, लेकिन महंत परमहंस की कामना राम मंदिर की थी। पहली बार सीतामढ़ी से अयोध्या तक राम-जानकी यात्रा निकाली गई, तो स्वामी परमहंस ने लोगों से जन्मभूमि का ताला खोलने के लिए आंदोलन करने को कहा।
उन्होंने कहा: आगे बढ़ो, जोर से बोलो- जन्मभूमि का ताला खोलो। 1985 में कर्नाटक के उडुपी में दूसरी धर्मसंसद में उन्होंने घोषणा की कि अगले साल 8 मार्च की शिवरात्रि से पहले यदि मंदिर का ताला नहीं खुला तो वह ‘ताला तोड़ो’ आंदोलन शुरू कर देंगे।
अगले साल 1 फरवरी को ताला खोल दिया गया। तीसरी धर्म संसद 1989 में प्रयाग महाकुंभ के दौरान हुई। रामचंद्र परमहंस के नेतृत्व में हुई इस धर्म संसद में शिला पूजन और शिलान्यास का संकल्प लिया गया और आंदोलन तेजी से आगे बढ़ा।
अंतत: 9 नवंबर को जन्मभूमि पर शिलान्यास भी हुआ। स्वामीजी ने राम मंदिर की पहली ईंट एक दलित युवक से रखवाई थी। उन्होंने जन्मस्थान पर पूजा करने के लिए 1950 में लिए याचिका दायर की थी। उसी समय मुस्लिमों की तरफ से हाशमी अंसारी खड़े हुए। उनकी मृत्यु के बाद इकबाल अंसारी पक्षकार बन गए।
बाद में परमहंस और इकबाल अंसारी की दोस्ती का उदाहरण दिया जाने लगा। उनके तरकश में ज्ञान से लिपटे तर्क के एक से बढ़कर एक बाण थे। एक बार उत्तर भारत से कुछ लोग इस आग्रह के साथ शृंगेरी के शंकराचार्य से मिले कि वे राम मंदिर आंदोलन का समर्थन करें। साथ में परमहंस भी थे।
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