मुरली मनोहर जोशी का कहना है कि जिस समाज में जन्म से लेकर मृत्यु तक की यात्रा राम के नाम से शुरू होकर राम नाम पर ही संपन्न होती हो, उसे राम से विमुख नहीं किया जा सकता।
डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी अयोध्या आंदोलन के अग्रणी नेताओं में एक हैं। आंदोलन के समय लोकप्रिय नेता डॉ. जोशी अपने जोश भरे तथ्यपरक भाषणों और रुचिकर शैली के लिए लोकप्रिय थे। दस साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े मुरली मनोहर जोशी का जन्म 5 जनवरी, 1934 को दिल्ली में हुआ।
गुरु जी गोलवलकर, दीनदयाल उपाध्याय, रज्जू भैया जैसे आरएसएस के स्तंभों के सानिध्य में अपनी राजनीतिक दृष्टि को परिपक्व बनाने वाले जोशी स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय रहे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भौतिकी विभाग के प्रमुख के रूप में सेवानिवृत्त होने वाले जोशी ऐसे वैज्ञानिक थे, जिनकी सोच के मूल में भारतीय संस्कृति थी।
उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ही अध्ययन भी किया था और हिंदी में अपना शोध-पत्र लिखने वाले वह पहले व्यक्ति थे। स्वतंत्रता संघर्ष के दिनों से लेकर इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल और फिर बाबरी ध्वंस के बाद जेल जाने वाले मुरली मनोहर जोशी अयोध्या आंदोलन को भारतीय समाज की स्वाभाविक प्रतिक्रिया मानते हैं। उनका कहना है कि जिस समाज में जन्म से लेकर मृत्यु तक की यात्रा राम के नाम से शुरू होकर राम नाम पर ही संपन्न होती हो, उसे राम से विमुख नहीं किया जा सकता।
आक्रांताओं ने अयोध्या में राम का घर उजाड़ा, तो समाज ने अपने आराध्य को मन में बसा लिया। लेकिन इस संकल्प के साथ कि एक दिन उस भौतिक चिन्ह को पूरी मर्यादा, पूरे सम्मान के साथ पुनर्स्थापित करेंगे। आज वहां भव्य मंदिर बन रहा है तो इसका श्रेय लाखों लोगों का बलिदान देकर भी मंदिर वहीं बनाने के प्रण को जाता है। डॉ. जोशी ने संगठन में अध्यक्ष से लेकर सरकार में विभिन्न मंत्रालयों का दायित्व संभाला।
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