एक वर्ष पहले एनसीपीसीआर ने 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर अवैध मदरसों और उसमें पढ़ने वाले गैर-मुस्लिम बच्चों की पहचान करने को कहा था। कोई कार्रवाई नहीं करने पर मुख्य सचिवों को किया तलब
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने मदरसों में मदरसों में गैर-मुस्लिम छात्रों के दाखिले को लेकर 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश के मुख्य सचिवों को नोटिस भेजकर अलग-अलग तारीखों पर आयोग के सामने पेश होने को कहा है। आयोग ने मुख्य सचिवों से लगभग एक वर्ष पहले इस मामले में कार्रवाई करने के लिए कहा था। राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से गैर मान्यता प्राप्त मदरसों की पहचान करने और वहां पढ़ रहे बच्चों को बुनियादी शिक्षा उपलब्ध कराने की व्यवस्था करने के लिए कहा था। साथ ही, कहा था कि मदरसे बच्चों को मजहबी शिक्षा देते है। यह भी पता चला है कि सरकार द्वारा वित्त पोषित या मान्यता प्राप्त मदरसे भी बच्चों को मजहबी शिक्षा दे रहे हैं।
आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा कि बीते एक वर्ष से एनसीपीसीआर लगातार सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से मदरसों में पढ़ने वाले या रहने वाले हिंदू व अन्य गैर-मुस्लिम बच्चों की पहचान कर उन्हें स्कूलों में स्थानांतरित करने के लिए कह रहा है। लेकिन आयोग के नोटिस के बावजूद उस पर कार्रवाई नहीं की गई। मुख्य सचिवों को भेजे गए नोटिस में आयोग ने कहा था कि मदरसों में गैर-मुस्लिम बच्चों का दाखिला संविधान के अनुच्छेद 28(3) का उल्लंघन है। इस अनुच्छेद के अनुसार शैक्षणिक संस्थानों को माता-पिता की सहमति के बिना बच्चों को किसी भी मजहबी कार्यक्रम में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।
चाइल्डलाइन इंडिया फाउंडेशन देशभर के एनजीओ के सहयोग से बेसहारा व गरीब बच्चों के राहत एवं पुनर्वास का काम करती रही थी। लेकिन पिछले वर्ष केंद्र सरकार ने चाइल्डलाइन 1098 का अधिग्रहण कर गृहमंत्रालय के इमरजेंसी रिस्पॉन्स नंबर 112 के साथ एकीकृत कर दिया। इसी संस्था के माध्यम से भोपाल में जिस एनजीओ को चाइल्डलाइन संचालन का काम दिया गया था, उसके कर्मचारी जरूरतमंद बच्चों की मदद करने के बजाए चर्च के साथ मिलकर उनका कन्वर्जन करा रहे थे। आंचल चिल्ड्रन होम पर छापेमारी में आयोग को इसके सबूत मिले हैं।
आयोग ने जिन राज्यों के मुख्य सचिवों को तलब किया है, उनमें हरियाणा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, अंदमान एवं निकोबार द्वीप समूह, गोवा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, मेघालय और तेलंगाना के मुख्य सचिव शामिल हैं। आयोग ने हरियाणा, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिवों को 12 जनवरी, अंदमान एवं निकोबार द्वीप समूह और गोवा के मुख्य सचिवों को 15 जनवरी, झारखंड के मुख्य सचिव को 16 जनवरी, कर्नाटक व केरल के मुख्य सचिव को 17 जनवरी तथा मध्य प्रदेश, मेघालय व तेलंगाना के मुख्य सचिव को 18 जनवरी को बुलाया है।
मध्य प्रदेश में कन्वर्जन
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में तो चाइल्ड हेल्पलाइन में काम करने वाले ही वर्षों से गरीब और बेसहारा बच्चों को ईसाई बना रहे थे। इनके निशाने पर हिंदू बच्चे होते थे। हाल ही में एनसीपीसीआर और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) की ‘आंचल चिल्ड्रन होम’ में की गई संयुक्त छापेमारी में इसका खुलासा हुआ। अवैध रूप से संचालित इस बाल गृह में 6 से 18 वर्ष की 68 बच्चियां पंजीकृत थीं, लेकिन आयोग के निरीक्षण के दौरान 41 बच्चियां ही वहां मिलीं, शेष लापता थीं। हालांकि बाद में लापता बच्चियां बरामद कर ली गईं। पंजीकृत बच्चियों में अधिकतर हिंदू हैं।
दरअसल, चाइल्डलाइन इंडिया फाउंडेशन देशभर के एनजीओ के सहयोग से बेसहारा व गरीब बच्चों के राहत एवं पुनर्वास का काम करती रही थी। लेकिन पिछले वर्ष केंद्र सरकार ने चाइल्डलाइन 1098 का अधिग्रहण कर गृहमंत्रालय के इमरजेंसी रिस्पॉन्स नंबर 112 के साथ एकीकृत कर दिया। इसी संस्था के माध्यम से भोपाल में जिस एनजीओ को चाइल्डलाइन संचालन का काम दिया गया था, उसके कर्मचारी जरूरतमंद बच्चों की मदद करने के बजाए चर्च के साथ मिलकर उनका कन्वर्जन करा रहे थे। आंचल चिल्ड्रन होम पर छापेमारी में आयोग को इसके सबूत मिले हैं। मिशनरी द्वारा संचालित इस अवैध बाल गृह को विदेश से धन भी मिल रहा था।
एनसीपीसीआर के अध्यक्ष ने बताया कि बाल गृह की संचालक एनजीओ हाल तक सरकारी एजेंसी की तरह चाइल्डलाइन सहयोगी के रूप में काम करती रही है। लेकिन सरकारी प्रतिनिधि के तौर पर इसने जिन भटकते बच्चों को बचाया, उनकी सूचना सरकार को दिए बिना अवैध तरीके से संचालित अपने बाल गृह में रख कर उनका कन्वर्जन करा रही है। काफी मशक्कत के बाद पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की। आंचल चिल्ड्रन होम की अधीक्षक, चाइल्डलाइन की निदेशक भी थी। प्रियंक कानूनगो ने कहा कि ऐसी संस्थाओं को चाइल्डलाइन का काम सौंपा जाना खतरनाक है। आयोग ने इस बाबत मुख्य सचिव वीरा राणा से 7 दिन में जांच रिपोर्ट मांगा है। इस मामले को मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी गंभीरता से लिया है।
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