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राम मंदिर आंदोलन के दौरान बहा कारसेवकों का रक्त अपने साथ क्रांति लाया था- आलोक कुमार

इस आन्दोलन की एक खास बात थी की कोई भी कारसेवक राम नाम की धुन को टूटने नहीं दे रहा था। लोग अपने अंतिम क्षण में भी रक्त से राम राम लिख रहे थे।

by SHIVAM DIXIT
Jan 15, 2024, 06:15 pm IST
in भारत
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राष्ट्रीय साप्ताहिक ‘पाञ्चजन्य’ (PANCHJANYA) अपनी यात्रा के 77वें वर्ष को मना रहा है। इसके तहत आज यानि सोमवार को दिल्ली के होटल अशोक में “बात भारत की” Confluence कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें विश्व हिंदू परिषद के कार्याध्यक्ष आलोक कुमार जी शामिल हुए।

उन्होंने राममंदिर आन्दोलन को लेकर अपनी बात रखी इस दौरान उन्होंने कहा मैंने महाभारत में कहीं सुना था कि युधिष्ठिर अज्ञातवास में कहीं रहे थे। वहां उस राजा को गुस्सा आया और राजा ने कुछ उनको फेंक के मारा तो उनके माथे पर से खून निकलने लगा जिसे द्रोपदी ने पाने आंचल में समेत लिया। उसके बाद द्रोपदी ने कहा- अगर ऐसे महापुरुष की एक खून की एक बूंद भी जमीन पर गिर जाती है तो पता नहीं कितना बड़ा भूचाल होता।

ठीक इस तरह अशोक सिंघल जी के सर पर पत्थर लगा खून बहा और वह बहता हुआ खून उनके कुर्ते पर आया और कुर्ते से धोती को लाल कर गया लेकिन अशोक जी को अपने कष्ट का पता भी नहीं था उनको बस दो ही बातें ध्यान में थी सरकार का अहंकार और सामने खड़ा बाबरी ढांचा। वो बहा हुआ रक्त अपने साथ क्रांति को लेकर आया था।

जहां तक कोठारी बन्धुओं का जिक्र है। उनको घर से अयोध्या में जहां रुके हुए थे उस घर से निकालकर गोली मारी गई। जिस समय उस दोनों भाईयों को गोली मारी गई उस समय वहां पास में ही एक माली था और वह आंसू गैस के गोलों को नाली में डाल रहा था। दोनों भाईयों को उसके सामने कपाल में गोली मरी गई।

इस आन्दोलन की एक खास बात थी की कोई भी कारसेवक राम नाम की धुन को टूटने नहीं दे रहा था। एक व्यक्ति के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाई लेकिन जब उसको गोली मारी गई तो उस समय भी उसने अपने अंतिम पलों में अपने खून से सड़कों पर जय श्री राम लिखा।

ऐसे ही उस समय हमने एक दिन सुबह 4:00 बजे हमने चार लोगों की बैठक बुलाई उसमे दिल्ली के चार हिस्सों के प्रमुख थे। बैठक में उनमें से एक ने कहा भाई साहब मेरा सब काम ठीक है घर की स्थिति भी सही है ऐसा है। घर पर सारी चीज सही है। तो मैंने कहा मुझे क्यों बता रहे हो यह बात। उसके बाद उसने कहा कि भाई साहब मैं राम जी के काम से जा रहा हूं। मैंने अपने घर के सभी लोगों को इकट्ठा किया और कहा चुनौती बड़ी है, चुनौती सरकार की है, और सरकार संकल्प है कि वह सफल हो। देखो अगर मैं लौट कर आ गया तो ठीक है और अगर नहीं आया तो समझ लेना राम जी के काम में आ गया।

इस बैठक में शामिल बाकी तीन लोग भी किसी न किसी प्रकार से अपने परिवार से निश्चिन्त हो कर आए और अपने ने परिवार से लोगों को बता कर जा रहे थे कि “पीठ नहीं दिखाएंगे, रुकेंगे नहीं, या तो सफल होंगे या बलिदान होंगे”

कुछ समय पहले मैं अयोध्या गया तो वहां से लखनऊ आना था लखनऊ से दिल्ली आना था हम कार में थे मेरी पत्नी को कार में थकान होती है। जब यह बात उन्होंने मुझसे कही तो मेरे ध्यान में 1990 आया उस समय तो लखनऊ के बाद से सभी गाड़ियां रोक दी जाती थी। बॉर्डर पर 40 फीट गड्ढे खोदकर उनमें पानी भर दिया गया। सड़कों पर 10000 लोगों ने कहा हम जाएंगे और पैदल जाएंगे। 135 किलोमीटर लखनऊ से अयोध्या लोग पैदल गए। लोग सुबह से लेकर के शाम तक चलते थे गांव के रास्ते से जाते थे, नदियां पार करके जाते थे, नाले पार करके जाते थे, जंगलों में होकर जा रहे थे लेकिन जा रहे थे। उनके संकल्प ने उनसे 135 किलोमीटर की यह राम यात्रा कराई थी।

मैं यह मानता हूं जिस दिन और एक ही दिन में ढांचा गिरा तो हिंदू का सेकुलरिज्म भी ध्वस्त हो गया। हिंदुओं में होड़ मची हुई है। राम मंदिर को देखने के लिए। 22 जनवरी को सब लोग घर पर बच्चे से लेकर बुजुर्ग को साथ भव्य राम मंदिर के निर्माण को देखना। जब रामलाल की आरती होगी तो सभी अपने-अपने निर्धारित स्थानों पर खड़े होकर के आरती गाना है।

समस्त विश्व के हिंदुओं की आस्था प्रभु रामलाल की प्रतिमा में उनके प्राण को स्थापित करेगी। जब भगवान राम लला अपने मंदिर में आएंगे तो हमारे हृदय में भी विराजेंगे। इसके बाद हिंदू जीवन क्या है यह सबको पता लगेगा।

Topics: alok kumarआलोक कुमारवीएचपीPanchjanya Confluenceविश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्षExecutive Chairman of Vishwa Hindu Parishadvhp
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